कोरोना काल में भारतीय संस्कृति की जीवतंता

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भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक,सामजिक, आर्थिक,भाषागत,प्रथाएं,धार्मिक जीवन की विषमताओं के मध्य सारभूत मौलिक एकात्मकता के होते हैं दर्शन

डॉ. खुशबु गुप्ता

वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व कोविड महामारी से प्रभावित है भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है.इस आपदा से उत्पन्न संकट से जहां विश्व के विकसित देश हताहत हुए वहीं भारत में इसका प्रभाव नगण्य रहा कोरोना संकट से निपटने के लिए यदि मातृभूमि के निवासियों का मनोबल दृढ हो तो किसी भी युद्ध को जीता जा सकता है  ……

मानव संस्कृति का संबंध ज्ञान,कर्म,रचना से है जिसका निरंतर संवर्धन होता रहना चाहिए इसलिए परम्परा और संस्कृति का संस्कार सम्पन्न होना अति आवश्यक होता है।अगर हम प्राचीन भारतीय संस्कृति की बात करें तो इसका अतीत अत्यधिक गौरवमयी रहा है। संपूर्ण विश्व में प्राचीन काल से ही विभिन्न सभ्यताओं वाली भारतीय संस्कृति को बहुत आदरपूर्ण स्थान दिया गया है। हमारे वेदों में कहा गया है कि सनातन संस्कृति संपूर्ण विश्व के कल्याण के लिए है। इसके इस उत्कृष्ट भावना का ही प्रतिफल है कि जहां एक ओर समकालीन संस्कृतियां काल के गर्त में समां गई वहीं भारतीय संस्कृति वर्तमान में भी जीवंत है।   आज भी विश्व के समक्ष आदर्श प्रस्तुत कर सम्पूर्ण भारतीय जनमानस को गौरवान्वित कर रही है। भारतीय संस्कृति में निहित प्राचीनता, निरंतरता,ग्रहणशीलता,समन्वयवाद, धार्मिकसहिष्णुता,सार्वभौमिकता,वसुधैवकुटुम्बकम जैसे तत्व उसकी उत्कृष्ट विशेषताओं को परिलक्षित करते हैं।
भारतीय इतिहास उसके वर्तमान से अपृथकरूप से जुड़ा हुआ है। इसकी संस्कृति की जड़े इतनी मजबूत और स्थाई हैं कि समय का प्रवाह और आधुनिकता का प्रहार उसे कभी समाप्त नहीं कर सकता है।प्राचीनकाल से विदेशी और मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा हमारी संस्कृति पर न जाने कितनी बार प्रहार किए हुए परन्तु कुछ बदलाव के बावजूद भारतीय संस्कृति की आत्मा समान तथा अक्षुण्ण रही हैं।हमारी गौरवशाली संस्कृति की चिरस्थायिता को समझते हुए लार्ड मैकाले के अनुसार“भारतीयों को तब तक नहीं जीता जा सकता जब तक उसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत रुपी रीढ़ को न तोड़ा जाए,लार्ड मैकाले ने हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत पर प्रहार किया। इसी कारण आज लोग अंग्रेजी भाषा को अन्य देशी भाषाओँ से महान समझने लगे हैं,वे अपनी देशज जातीय परम्पराओं को भूल रहे हैं।अगर संस्कृति की निरंतरता और चिरस्थायिता को वर्तमान सन्दर्भ में देखे तो यह आज भी यह उतना ही विभूषित है जितना सनातन काल में था।
वर्तमान में संपूर्ण विश्व कोरोना महामारी से प्रभावित है और भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा।इस आपदा से उत्पन्न संकट से जहां विश्व के विकसित देश अत्यधिक हताहत हुए हैं वहीं भारत में इसका प्रभाव उतना नहीं है जबकि संसाधनों के आभाव में भारत के समक्ष इस बीमारी से निपटने के लिए चुनौतियां बहुत रही। इतना ही नहीं पिछले कोरोना काल में विश्व के कई राष्ट्र प्रमुखों के द्वारा भारत सरकार के द्वारा समय-समय पर उठाये गए कदमों तथा कुशल सूझ-बूझ की विश्व मंचों से बार-बार सराहना की गई। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय सरकार ने इन वैश्विक चुनौतियों को एक अवसर के रूप में लिया। जहां न केवल इस महामारी को समाप्त करने के लिए दृढ़ संकल्पित किया वही भारतीयों ने इस वैश्विक लड़ाई में एकात्मकता को स्थापित करने का प्रयास भी किया।
कहते हैं न कि यदि मातृभूमि के निवासियों का मनोबल दृढ़ हो तो किसी भी युद्ध को संसाधनों के अभाव में भी जीता जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इसी भावना को सुदृढ़ रखने हेतु लॉकडाउन के दौरान भारतीयों से यह अपील की कि इस भयावह संकट से निपटने के लिए जो भी कोरोना योद्धा दिन-रात लोगों की सेवा में लगे रहे उनका हम सभी देशवासियों के द्वारा आभार व्यक्त किया जाना चाहिए। सभी देशवासियों के द्वारा पिछले 22 मार्च के जनता कर्फ्यू का 5 मिनट के लिए थाली बजाकर आभार व्यक्त किया गया।इससे न केवल महामारी से लड़ने के लिए भारतीयों का मनोबल बढ़ा बल्कि विश्व की दूसरी सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश में एक प्रकार से जन जागरूकता आई। वहीं दूसरी और 5 अप्रैल को लोगों ने अपने-अपने घरों में दीपक भी जलाए। उससे देश में कोरोना योद्धाओं के प्रति प्रधानमन्त्री के द्वारा आभार प्रदर्शित करने की अपील ने देश के हर नागरिक ने पालन भी किया। लोगो के इस जज्बे ने देशवासियों के अंतःकरण में ऐसी भावना को जन्म दिया जिससे लोग कुछ न कुछ करने की ठान ली और राष्ट्र के प्रति समर्पण भाव भी प्रदर्शित किया। नागरिकों ने संकट की घड़ी में जो संकल्प शक्ति प्रदर्शित की उससे भारत में एक सकारात्मक बदलाव की शुरुआत भी हुई। आज लोगो के सामान्य नजरिए में भी व्यापक परिवर्तन दृष्टिगत हैं। पिछले कोरोना काल में देश के नागरिक बिना भेदभाव के न केवल लोगों की मदद कर रहे बल्कि सेवा कार्य में लगे पुलिसकर्मी,स्वास्थ्यकर्मी, सफाईकर्मचारी पर पुष्प वर्षा,पुलिसकर्मियों द्वारा गरीबों,जरूरतमंदों तक भोजन सुनिश्चित किया जाने से जहां पुलिसिंग का मानवीय एवं संवेदनशील पक्ष हमारे सामने आया है। निश्चित रूप से कोरोना काल के इस सेवाभाव से इन घटनाओं से भविष्य में भारतीय समाज में सकारात्मक बदलाव परिलक्षित होंगे।
सार्वभौमिकता में भारत अपनी उन्नति के साथ-साथ संपूर्ण विश्व के कल्याण की न केवल कामना करता है इस संक्रमण काल में भारत ने विश्व को यह भी सन्देश दिया कि हम भारतीय सदैव वसुधैवकुटुम्बकम की भावना रखते हैं। यही हमारी संस्कृति की अपनी थाती है जो विश्व के अन्य संस्कृतियों से भिन्न बनाती हैं। भारत स्वयं की परवाह किए बगैर अन्य देशों की जरूरतों को देखते हुए उनकी सहायता किया आखिरकार यही तो हमारी संस्कृति है।भारतीय संस्कृति का उल्लेख करते हुए इसी सन्दर्भ में माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा कि “भारत अपने संस्कारों के अनुरूप, हमारी मानसिकता के अनुरूप, हमारी संस्कृति का निर्वहन करते हुए कुछ निर्णय लिए है।संकट के इस घड़ी में समृधि देशों के लिए ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व के लिए दवाइयों का संकट बहुत ज्यादा रहा। ऐसे समय में भारत ने प्रकृति,विकृति की सोच से परे होकर भारतीय संस्कृति के अनुरूप निर्णय लिया है”असाधारण समय में एक मित्र के द्वारा सहयोग की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है और ऐसे में विश्व के कई समृद्धिशाली देशों को भारत ने दवा आपूर्ति कराकर सेवाभाव को प्रदर्शित किया है जो हम भारतीय के व्यवहार में निहित है। भारत इस संकट के समय में विश्व के देशों को मदद पहुंचाकर यह साबित किया कि सम्पूर्ण मानवता का इस वैश्विक महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत अपना योगदान देने के लिए निरन्तर प्रतिबद्ध रहा।
धार्मिक सहिष्णुता का तत्त्व भारतीय संस्कृति को अद्वितीय बनाता है।यह धार्मिक विषयों में परस्पर सद्भाव का उपदेश भी देती है। हमारे यहाँ धार्मिक परम्पराओं में व्यापक विभिन्नता में अगर कुछ अपवाद को छोड़ दे जिसमे कट्टरता और असहिष्णुता व्याप्त है तो इसमें संकुचित मनोवृत्ति का अभाव परिलक्षित होता है। परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखे तो मुसलमानों द्वारा सेवाकार्य में लगे कोरोना योद्धाओं पर हमला,पथराव,अभद्र व्यवहार किया जाना निंदनीय रहा जो मानवता के प्रति जघन्य अपराध को माफ़ नहीं किया जा सकता।दूसरी तरफ तब्लीगी जमातियों का एक साथ मरकज में छुपे रहना और यह कहना अनुचित नहीं होगा कि प्रायोजित तरीके से महामारी को फ़ैलाने का कार्य किया गया। महामारी से निपटने हेतु आर्थिक सहायता,खाद्य सामग्री और स्वास्थ्य सेवाएं सभी को बिना भेदभाव के प्रदान की गई।
समन्वयवादिता,सार्वभौमिकता, ग्रहणशीलता जैसे तत्त्व हमारी सनातनी परम्परा के प्राण हैं।भारतीय संस्कृति में अद्भुत शक्ति है। यह प्रतिकूल परिस्थितिओं को अपने अनुकूल बना लेती है।विचारों में अनंत मतभेद होने के बावजूद समानता को स्वीकार करता है।ऋग्वेद में भी इसका वर्णन किया गया है कि “समान मन्त्र, सामान समिति,सामान मन,समान सबकी प्रेरणा, समान सबके ह्रदय,समान सबके मानस, समान सबकी स्थिति.” भगवत गीता में समन्वय की बात कही गई है, गौतमबुद्ध को समन्वयवादी के रूप में जाना जाता है, चक्रवर्ती सम्राट अशोक ने भी पारस्परिक मिलाप के साथ एकता को स्थापित करने के लिए कहा, वही जैन धर्म में भी समन्वय की अवधारणा पर बल दिया गया है।कोरोना जैसे मुश्किल समय में लोग बिना भेदभाव को त्यागकर एक दूसरे के सुख दुःख को अपना मानते हुए सेवाभाव से लोगो की मदद की कर रहे। प्रत्येक व्यक्ति अपना योगदान दिया। हमारी संस्कृति भी यही दर्शाती है कि परस्पर प्रेम,सहानुभूति और एकत्व को स्थापित करके जीवन का श्रेष्ठ मार्ग प्राप्त किया जा सकता है।
भारतीय संस्कृति न केवल भौतिकता को समझा है बल्कि प्राचीन परम्पराओं योग, साधना,आध्यात्म के माध्यम से समाज के सर्वांगीण विकास पर जोर भी देता रहा है। आज हम गौरान्वित होते हैं जब इस वैश्विक संकट में विश्व के लोग पश्चिमी संस्कृति को त्याग कर भारतीय परम्परा को अपनाया हैं।नमस्ते,अमेरिकी संसद में वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया गया,जर्मनी जैसे विकसित देश ने संस्कृत विषय को अपने पाठ्यक्रम में अनिवार्य किया जा रहा है. स्वस्थ व्यक्ति से स्वस्थ समाज के निर्माण की भावना के साथ संपूर्ण विश्व न केवल योग को अपना रहा है बल्कि अब प्राचीन भारतीय चिकित्सीय प्रणाली आयुर्वेद के सिद्धांतों को भी अपनाया जा रहा है। सैकड़ों वर्षों की हमारी गुलामी के कालखंडों के परिणामस्वरूप हम कई बार अपनी संस्कृति तथा परम्परा को अस्वीकार करते रहे हैं। यदि विश्व के अन्य देश तथ्यात्मक शोध के आधार पर हमारी परम्परा,संस्कृति को सही ठहराते हैं तब हम तुरंत उसको सही मान लेते हैं। आज हमारी युवा पीढ़ी को संकल्पित होने,भारतवर्ष के प्राचीन पारम्परिक ज्ञान की परम्पराओं को वैज्ञानिक भाषा में संपूर्ण विश्व को समझाने पर जोर देना होगा। हमें अपनी संस्कृति और परम्परा की शक्ति पर विश्वास करना होगा।
हमारा देश भारतवर्ष पृथक-पृथक भू-खंडो का विशाल समूह है जिसे हम राष्ट्र कहते हैं। भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक,सामजिक, आर्थिक,भाषागत,प्रथाएं,धार्मिक जीवन की विषमताओं के मध्य सारभूत मौलिक एकात्मकता के दर्शन होते हैं। आज भी हमारी संस्कृति विश्व में अपनी महत्ता को बनाये हुए है। इसकी जीवन्तता आज भी चरितार्थ हो रही है और यही गौरवमयी संस्कृति हम भारतीयों को सनातन काल से गौरवान्वित कर रही है।

( लेखिका दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं )