जनकवि गिर्दा के जन्मदिन पर kumauni Archives वेबसाइट का हुआ लोकार्पण

0
16584

इस नई वेबसाइट पर मिलेंगे दुर्लभ अभिलेख

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
नई दिल्ली : सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में काम कर रहे उत्तराखंड के कुछ युवाओं ने दुर्लभ पुस्तकों, मानचित्रों, पांडुलिपियों और ऑडियो-वीडियो को “डिजिटलाइज” रूप में निशुल्क डाऊनलोड के लिए http://kumauniarchives.com/ नाम को नई वेबसाइट पर उपलब्ध करा दिया है। जनकवि गिर्दा के जन्मदिन के अवसर पर 10 सितंबर को इस वेबसाइट का लोकार्पण एक ऑनलाइन कार्यक्रम के साथ किया गया। इस अवसर पर स्व. गिर्दा की धर्मपत्नी श्रीमती हीरा तिवारी जी भी नैनीताल से उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत में युवा गायिका ज्योति उप्रेती सती ने गिर्दा का प्रसिद्ध गीत “हम लड़ते रुला” गाया।
इस लोकार्पण कार्यक्रम में “डिजिटल युग में क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण” विषय पर एक ऑनलाइन संगोष्ठी का भी आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता भाषाविद डॉ. सुरेश पन्त ने की और संचालन वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी ने किया। वक्ताओं के रूप में इतिहासकार डॉ. शेखर पाठक, लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी, उत्तराखंड के भूतपूर्व मुख्य सचिव नृप सिंह नपलच्याल, अल्मोड़ा से डॉ. हयात सिंह रावत, भीष्म कुकरेती, कवि मदन डुकलान, हेमन्त बिष्ट, सॉफ्टवेयर विशेषज्ञ कमल कर्नाटक व बंगलुरू से मनोज भट्ट शामिल हुए। डॉ. शेखर पाठक ने विश्व के विभिन्न हिस्सों में भाषा के प्रति लोगों की जागरूकता पर प्रकाश डाला। नृप सिंह नपलच्याल ने सीमांत इलाके की स्थानीय भाषाओं को बचाने के लिए “रं समाज” द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में विस्तार से बताया। सभी वक्ताओं ने तकनीक की मदद से उत्तराखंड की लोकभाषाओं को बचाने की इस कोशिश की सराहना की और इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उत्तराखंड की समृद्ध व विविधतापूर्ण भाषा परम्परा को युवा पीढ़ी के लिए सरलता से उपलब्ध कराने के इस प्रयास को यथासंभव मदद का भरोसा भी दिया। बातचीत के दौरान वक्ताओं ने Digitisation के लिए निजी संग्रहों पुस्तकें उपलब्ध कराने की अपील भी की।
http://kumauniarchives.com/  वेबसाइट के निर्माता दिल्ली निवासी सॉफ्टवेयर इंजीनियर हिमांशु पाठक ने बताया कि सोशल मीडिया पर डॉ. सुरेश पन्त के साथ बातचीत के दौरान ऐसी वेबसाइट का विचार उभरा जहां पुराने अभिलेखों और अनुपलब्ध किताबों को डिजिटल रूप में सार्वजनिक पटल पर उपलब्ध कराया जाए। इस वेबसाइट पर अभी तक कुमाउनी, हिंदी, अंग्रेजी भाषा की 100 से अधिक दुर्लभ किताबें, मानचित्र और ऑडियो उपलब्ध हैं, जिन्हें देखा-पढा जा सकता है और डाउनलोड भी किया जा सकता है। इनमें से कुछ किताबें ऐसी भी हैं जो 19वीं शताब्दी में प्रकाशित हुई थीं। इस संग्रह में नई सामग्री जोड़ने का काम लगातार जारी है। यह संग्रह शोधार्थियों और पढ़ने के शौकीन लोगों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रहा है। [wpdiscuz-feedback id=”2v304aoypt” question=”Please leave a feedback on this” opened=”1″][/wpdiscuz-feedback]