किर्जी महोत्सव संस्कृति एवं परम्परा का अनूठा संगम

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चौंदास घाटी और नेपाल के राप्ला में कंडाली एवं किर्च का खिलता है फूल 

जगदीश बुदियाल

उत्सव शब्द ही अपने आप में हर्षो-उल्लास एवं खुशी को व्यक्त करता है। जब भी किसी उत्सव की बात होती है, तो लोगों के उत्साह सा दिखायी पड़ता है। उत्सव एक माध्यम है अपनी परम्परा व संस्कृति को दर्शाने का।

विगत 5सितम्बर को ऋषि वेद व्यास की तपोभूमि एवं कैलाश मानसरोवर के प्रवेश द्वार ग्राम बूदी में 12 वर्ष में पड़ने वाला उत्सव किर्जी भाम मनाया गया। यह 12 वर्ष में एक बार मनाया जाने वाला उत्सव है इसलिए इसे महोत्सव का नाम दिया गया है। यह उत्सव बुरी शक्तियों पर विजय पाने का है। इस उत्सव में बूदी ग्रामवासी 12 वर्ष में खिलने वाले किर्जी फूल एवं पौधे को नष्ट (भाम) करते हैं। इसके लिये लामा एक विशेष दिन निश्चित करते हैं।

इस उत्सव को लेकर कई प्रकार के प्रश्न मस्तिष्कपर उभरते हैं, जैसे यह कब प्रारंभ हुआ? अथवा पौधा जो 12 वर्ष में पुष्पित होता है उसे क्यों नष्ट किया जाता है, इत्यादि। इन सभी प्रश्नों के ऊत्तर देने के लिये कई लोक कथाएँ प्रचलित हैं, जो निश्चित रूप से सन्तोषजन हल भी प्रस्तुत करती हैं।

एक समय की बात है बूदी ग्राम के शिरंग नामक बुग्याल पर सैकड़ों भेड़ें, गायें, घोड़े मृत पाये गये साथ ही एक गर्भवती महिला जो उस बुग्याल में गयी थी उसका भी गर्भपात हो गया एवं वहां अचेत अवस्था में पायी गयी। सभी ग्राम वासी इस प्राकृतिक आपदा से बेचैन हो उठे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करें। तब सभी ग्रामवासी बूदी ग्राम के लामा जिन्हें तिन्द लामा के नाम से जाना जाता है, जो कि अनेक शक्तियों के स्वामी थे, के पास समस्या के निदान के लिये पहुंचे।

तिन्द लामा ने पूरी बात सुनने के बाद ग्रामवासियों को बताया कि वह सब किर्जी नामक पौधे पर खिलने वाले फूल के विषैलेपन के कारण हुआ है। साथ ही उन्होंने उपाय भी बताया कि यदि इस पौंधे को समूल नष्ट कर दिया जाय तो इस तरह की घटना फिर कभी न घटेगी। वे जब अपनी शक्तियों से उस पौधे को नष्ट करने शिरंग बुग्याल पहुंचे तो किर्जी पौंधे से उनसे विनती की – “हे महापुरुष मुझ पर दया कीजिए, मुझे समूल नष्ट न कीजिए मेरे कारण जो क्षति हुई है, उस पर मुझे खेद है और मैं क्षमा चाहता हूँ।’ तब तिन्द लामा ने उस पर दया दिखाते हुए कहा “मैं तुम्हें एक अवस्था में छोड़ सकता हूँ, यदि 11 वर्षों तक एक सामान्य पौंधे की भांति रहो एवं 12वें वर्ष तुम पर यह विषैला फूल खिले। उस वर्ष महिलाएं तुम्हें अपने रिल (कालीन बुनाई में उपयोग करने वाला लकड़ी का यंत्र) एवं अखंन (दराती) से समाप्त करें, परन्तु वह तुम्हें समूल नष्ट नहीं करेंगी। मात्र तुम्हारा तना एवं फूल नष्ट (भाम) करेंगी। तब तुम पुनः 11 वर्षों के लिये सामान्य पौधे बने रहोगे एवं प्रकृति की शोभा बढ़ाओगे।”

इस तरह तिन्द लामा ने किर्जी पौधे एवं ग्रामवासियों दोनों के साथ न्याय किया। तब से यह परम्परा चल पड़ी। समय बीतता गया और कालान्तर में इसने उत्सव का रूप ले लिया। आधुनिक युग में प्रचार-प्रसार का जोर है तब यह महोत्सव अपनी संस्कृति एवं परम्परा को दर्शाने का माध्यम बना।

किर्जी की तरह ही चौंदास घाटी और नेपाल के राप्ला ग्राम में कंडाली एवं किर्च नामक फूल खिलता है और वहां भी 12 वर्षों का उत्सव मनाया जाता है। कंडाली से तात्पर्य ऐसे ही एक पौधे से है जिस पर हर वर्ष एक गाँठ बनती है। इस तरह 12 वर्ष में 12 गांठें बनती हैं एवं बारह वर्षों में फूल खिलता है जिसे नष्ट किया जाता है।

(सभी फोटो  देवाशीष गर्ब्याल)