जनकवि गिरीश तिवारी “गिर्दा” को पुण्यतिथि पर किया याद

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जन आंदोलनों में गिरीश तिवारी” गिर्दा” देते थे जान फूंक 

आज के समय में जन आंदोलनों की धार हो गई है कुंद और संवेदनशील आंदोलनकारी भी अब नहीं रहे : डॉक्टर कपिलेश भोज

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
अल्मोड़ा : उत्तराखंड लोक वाहिनी ने आज सामाजिक दूरी का अनुपालन करते हुए एक संगोष्ठी आयोजित करते हुए कहा कि जनकवि गिरीश तिवारी ” गिर्दा “जन आंदोलनों की आत्मा रहे । जन आंदोलनों में गिरीश तिवारी” गिर्दा” जान फूंक देते थे वे आम कलाकारों से अलग रहे ,उनके गीत जन आंदोलनों में ही प्रफुल्लित होते रहे उन्होंने अपने गीत स्टूडियो में नहीं सड़कों में गाये। जन गीत आम जनमानस की आवाज बने, वक्ताओं ने कहा कि वाहिनी के साथ स्वर्गी गिर्दा का चोली दामन का साथ था ।
गिर्दा वाहिनी के हर आंदोलनों में सक्रिय रहे चाहे वह 1977 का वन बचाओ आंदोलन हो ,1984 का नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन या फिर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में वे पूरी  तरह से सक्रिय रहे रहे। 
मुख्य वक्ता डॉक्टर कपिलेश भोज ने गिर्दा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गिरीश तिवारी “गिर्दा” असाधारण व्यक्तित्व के धनी रहे। सरकारी सेवा रहते हुए उन्होंने जन आंदोलनों में भागीदारी की। आज के समय में जन आंदोलनों की धार कुंद हो गई है। संवेदनशील आंदोलनकारी नहीं रहे, उन्होंने कहा कि भीषण गुलामी में भी लोगों ने आवाज उठाई और संघर्षों के बलबूते सफलता पाई। 
वरिष्ठ अधिवक्ता जगत रौतेला ने कहा कि गिर्दा किसी मंच के मोहताज नहीं थे जहां खड़े हो जाते वहीं पर मंच बन जाता था। गिर्दा को याद करते हुए कहा कि वे 1972 से जन आंदोलनों में सक्रिय थे उनके गीतों का प्रभाव था कि वाहिनी कई बार उत्तराखंड को बंद कराने में सफल हुई।अजयमित्र ने कहां की गिर्दा उत्तराखंड व पूरे समाज के गोरकी रहे उनकी अभिव्यक्ति आम आदमी की हक- हकूक की आवाज रही, कार्यक्रम का शुभारंभ गिर्दा के जन गीतों से हुआ।
लोगों ने गिर्दा के कई जन गीत गाए जिसमें उत्तराखंड मेरी मातृभूमि ,हम लड़ते राया दाजू हम लड़ते रूलो, उत्तराखंड मेरी मातृभूमि आदि गीत गाए गए। सभा में वाहिनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जंग बहादुर थापा, अजय मेहता,कुंदन सिंह, कुणाल तिवारी ,शमशेर गुरंग आदि ने संबोधित किया । बैठक में जय मित्र बिष्ट, गोकुल शाही,सूरज टम्टा,शंभू राणा,आदित्य शाह, देवेंद्र वर्मा ,नवीन पाठक आदि भी संवाद के माध्यम से उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता रेवती बिष्ट और संचालन दया कृष्ण कांडपाल ने किया जबकि कार्यक्रम के अंत में सुमगढ़ में 18 अगस्त 2010 में प्राकृतिक आपदा में मारे गए 18 बच्चों को श्रद्धांजलि दी गई ।

 

गिर्दा की याद :शुक्रिया Zoom :
नैनीताल : श्री राजीव लोचन साह जी द्वारा प्रायोजित वेबीनार में गिर्दा को भरपूर याद किया, तकनीक का यह तो महत्व है कि जो काम हम वास्तविक जगत में भी आसानी से नहीं कर पाते, वह दूर-दूर के लोगों को जोड़ने का काम तकनीक आसानी से कर लेती है । इसके लिए शुक्रिया, आज की बातचीत में, गिर्दा को लगभग 40 वर्ष तक साथ जीने वाले या कहें कि गिरीश तिवारी से गिर्दा के अभ्युदय के सहयात्री श्री राजीव लोचन साह जी श्री शेखर पाठक जी श्री जहूर आलम श्री नवीन जोशी जी श्री गोविंद पंत राजू जी, श्री चंदन डांगी जी श्री बी .आर पंत जी श्री निर्मल जोशी जी श्री गिरजा पाठक जी श्री ताराचंद त्रिपाठी जी श्री हरीश पंत जी , श्री प्रदीप पांडे जी श्री संजीव भगत जी आदि – आदि उन तमाम सब लोगों का एक साथ बैठकर गिर्दा के व्यक्तित्व के उन पक्षों को छूने का प्रयास किया , जिस सबसे हम टुकड़ों में परिचय तो हैं लेकिन एक समग्रता में उन्हें देखना, उन पर बात करना ऐसा है मानो चारों ओर से एक साथ गिर्दा को प्रकाशित करना और उनकी परंपरा को समझना जो मुख्य – मुख्य बातें कहीं गई ….
उसमें श्री शेखर पाठक जी ने कहा कि आप जो कर रहे हैं कविता कर रहे हैं, नाटक कर रहे हैं ,नौकरी कर रहे हैं. जो भी जहां जो कर रहा है ,वह सच्चाई के साथ खड़ा रहे तो वह गिरीश तिवारी हो सकता है , लखनऊ से श्री नवीन जोशी जी ने कहा कि 10 वर्ष बाद भी हम आज गिर्दा से ही प्रेरणा लेते हैं आलोकित होते हैं गिर्दा के समकक्ष कोई व्यक्तित्व उभर नहीं रहा, यह एक चिंता का विषय है।
गोविंद पंत राजू जी ने कहा कि गिर्दा जब तक हमारे साथ थे हम उन्हें उस रूप में नहीं देख पाए, लेकिन वह आज एक प्रकाश पुंज हैं, जब भी अंधेरा होता है, निराशा होती है। तो वह हमें मार्ग देते हैं। रास्ता दिखाते हैं, उनकी प्रासंगिकता आज और बड गई है। श्री राजीव लोचन साह जी ने कहा कि कोरोनावायरस में या इन तमाम सारी अव्यवस्थाओं के बीच में जब एक सन्नाटा है, एक खामोशी है। तब गिर्दा की कमी बहुत खलती है . वह होते तो जरूर हुंकार भरते ,
लोकगायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी ने कहा कि जब कहीं बैठकर बातचीत होती है तभी लगता है कि गिर्दा नहीं हैं नहीं तो अंदर ही अंदर ख्याल चलता है कि गिर्दा मौजूद हैं वहां नैनीताल में ,श्री नेगी जी ने गिर्दा का सुंदर गीत ” ओ दिगो लाली भी सुनाया ‘ श्री प्रदीप पांडे और उनके दत्तक पुत्र प्रिम ने गिर्दा के काम को व्यापक रूप से परिभाषित करने, छोटी फिल्मों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने कीआवश्यकता बताई, तांकि लोग समझे कि गिर्दा सिर्फ एक कवि नहीं थे ,गायक भी नहीं थे ।वह मूलतः एक आदि विद्रोही थे । उन्हें समाज की हर विषमता पर सरल रूप से तीखा हमला करना आता था । कबीर की परंपरा को आगे बडाते थे ।
श्री निर्मल जोशी ने अब गिर्दा को एक संस्थागत स्वरूप प्रदान करने की बात कही, तो हैदराबाद से प्रोफेसर रेखा पांडे ने गिर्दा को आंचलिकता की सीमा से बाहर निकाल कर उनके शानदार साहित्य को दूसरी भाषाओं में अनुवादित कर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को विस्तार देने की बात कही,
श्री गिरजा पाठक ने कहा कि आज गिर्दा जैसा व्यक्ति नहीं दिखाई देता ,नहीं कहा जा सकता , प्रतिरोध के स्वर ही गिर्दा हैं । यह अलग-अलग रूप में जहां भी हैं उन्हें सहयोग और रेखांकित करना चाहिए, आंदोलनों में गिर्दा के सांस्कृतिक पक्ष को भी याद किया गया , मेरे लिए तो गिर्दा की सरलता और अपने विरोधी को भी गले लगाने की सामर्थ ही हमेशा महत्वपूर्ण रही यही मेरे उनसे जुड़े रहने का कारण भी रहा ,
श्री संजीव भगत ने गिर्दा को एक अभिभावक के रूप में याद किया ,गिर्दा की पत्नी हीरा देवी और बेटा तूहीन ने भी इस कार्यक्रम में भागीदारी की उनकी रचनाओं को गा कर सुनाया , दूसरे चक्र में जहूर आलम, और शेखर पाठक जी ने “दूर पछी धार बटी” गाकर अपने मधुर कंठ से भी परिचित कराया। एक शानदार ,यादगार कार्यक्रम डेढ़ घंटे तक चला , दिन सफल हो गया ।
पुन: पुण्यतिथि पर गिर्दा का भावपूर्ण पूर्ण स्मरण