नैनीताल : गोमुख में अस्थाई झील के हो रहे निर्माण और उसके फटने के खतरे को देखते हुए कहीं केदारनाथ जैसा जल सैलाब निचले कस्बों को तबाह न कर डाले को देखते हुए हाईकोर्ट ने वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) की मदद लेकर कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश पारित दिए हैं। हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि हर तीन माह में गोमुख का दौरा कर वहां हो रही प्राकृतिक परिवर्तनों की रिपोर्ट कोर्ट में देने के निर्देश दिए हैं कि यदि वहां अस्थायी झील बन रही है तो उसे वैज्ञानिक तरीके से हटाया जाने के बंदोबस्त किये जाने चाहिए, वहीँ कोर्ट ने इसके साथ ही वहां एकत्रित मलबे को भी हटाने के आदेश पारित किए हैं। मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने गुरुवार को जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है।
दिल्ली निवासी अजय गौतम ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि गोमुख में करीब डेढ़ किमी एरिया में 30 मीटर ऊंची व ढाई सौ मीटर चौड़ाई में हजारों टन मलबा जमा है। वहां डेढ़ किमी दायरे में झील बन गई है, जिससे कभी भी केदारनाथ जैसी आपदा आ सकती है। याचिकाकर्ता का कहना था कि सरकार द्वारा अपने जवाब को सिर्फ झील तक फोकस रखा है।
याचिका में कहा गया है कि सरकार ने उस समय झील का निरीक्षण व सर्वेक्षण किया गया जब झील पूरी तरह बर्फ से ढकी थी, जबकि सही मायनों में निरीक्षण मई-जून में किया जाना चाहिए था। याचिकाकर्ता ने इनपुट एजेंसियों की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वहां हजारों टन मलबा जमा है और ग्लेशियर प्रत्येक वर्ष पिघल रहा है। झील ने वहां अपना स्वरूप ले लिया है। इस वजह से गंगा नदी का अस्तित्व खतरे में है। याचिका में मलबे के निस्तारण की मांग की गई है। खंडपीठ ने जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए हर तीन माह में गोमुख के निरीक्षण व सर्वेक्षण की रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष पेश करने के आदेश पारित किए हैं।