गढ़वाल कमिश्नरी वर्षों से देहरादून कैंप कार्यालय से है चल रही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते महीने औचक निरीक्षण के दौरान इस व्यवस्था पर जताया था एतराज देवभूमि मीडिया ब्यूरो बेहतर नियोजन एवं सर्वांगीण विकास के लिए आम लोगों के रोजमर्रा जीवन से जुड़े मुद्दों से वास्ता रखने वाली छोटी प्रशासनिक इकाइयां प्रभावी मानी जाती हैं। Commissionaire’s बड़ी भी हो तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लेकिन छोटी और आम जनहितकारी हो तो जनता को उसका लाभ मिलने की उम्मीद की जा सकती है। बशर्ते अधिकारी अपनी सुख-सुविधाओं के बजाय जनता की समस्या के निवारण के लिए कमिश्नरी मुख्यालय पर नियमित रूप से बैठें। बात जहाँ तक गढ़वाल कमिश्नरी की है कमिश्नर के साथ पौड़ी में चलने वाले सभी मंडलीय दफ्तर भी कमोवेश देहरादून से ही काम करने लगे हैं इसी बात को लेकर पिछले माह ही मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गढ़वाल कमिश्नरी के ईसी रोड स्थित कैंप कार्यालय के औचक निरीक्षण के दौरान इस व्यवस्था पर जताया एतराज जताया था। 1815 में उत्तराखंड के East India Company के नियंत्रण में आ जाने के बाद टिहरी रियासत (वर्तमान टिहरी और उत्तरकाशी जनपद), देहरादून और हरिद्वार जिलों को छोड़कर शेष उत्तराखंड को Kumaon और British Garhwal के रूप में दो प्रशासनिक हिस्सों में बांट दिया गया था। प्रारंभ में ब्रिटिश गढ़वाल को कुमाऊँ मंडल में एक परगने के रूप में जोड़ा गया।भूमि प्रबंधन के लिहाज से वर्ष 1839 में गढ़वाल को नया जिला बनाया गया। 15 अक्टूबर,1891 को नैनीताल को अलग जिला बना। वर्ष 1826 में देहरादून को भी कुमाऊँ कमिश्नरी का हिस्सा बनाया गया। तीन साल बाद देहरादून को मेरठ कमिश्नरी में शामिल कर लिया गया। वर्ष 1949 में टिहरी रियासत के भारत में विलय होने के बाद टिहरी को भी एक जिले के रूप में कुमाऊँ मंडल का हिस्सा बना दिया गया।वर्ष 1960 में उत्तरकाशी, चमोली एवं पिथौरागढ़ जिलों के लिए अलग कमिश्नरी बनी,जिसे “उत्तराखंड मंडल” कहा गया।वर्ष 1968 में गढ़वाल मंडल वजूद में आया। पौड़ी को गढ़वाल मंडल का मुख्यालय बनाया गया। देहरादून, चमोली, पौड़ी, टिहरी और उत्तरकाशी को गढ़वाल मंडल में शामिल कर लिया गया।वर्ष 1815 से 1960 तक उत्तराखंड में सिर्फ एक मंडल यानि एक कमिश्नरी थी। वर्ष 1960 में दो मंडल हो गए थे।अब उत्तराखंड में तीसरा मंडल वजूद में आ गया है।
प्रसंगवश ! : उत्तराखंड में कमिश्नरियों का इतिहास
तीन दशक तक विभिन्न संस्थानों में पत्रकारिता के बाद मई, 2012 में ''देवभूमि मीडिया'' के अस्तित्व में आने की मुख्य वजह पत्रकारिता को बचाए रखना है .जो पाठक पत्रकारिता बचाए रखना चाहते हैं, सच तक पहुंचना चाहते हैं, चाहते हैं कि खबर को साफगोई से पेश किया जाए न कि किसी के फायदे को देखकर तो वे इसके लिए सामने आएं और ऐसे संस्थानों को चलाने में मदद करें।
एक संस्थान के रूप में ‘ देवभूमि मीडिया’ जनहित और लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार चलने के लिए प्रतिबद्ध है।
खबरों के विश्लेषण और उन पर टिप्पणी देने के अलावा हमारा उद्देश्य रिपोर्टिंग के पारंपरिक स्वरूप को बचाए रखने का भी है। जैसे-जैसे हमारे संसाधन बढ़ेंगे, हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे।
हमारी पाठकों से बस इतनी गुजारिश है कि हमें पढ़ें, शेयर करें, इसके अलावा इसे और बेहतर करने के सुझाव अवश्य दें। आप अपना सुझाव हमें हमारे ई-मेल devbhumi.media@gmail.com अथवा हमारे WhatsApp नंबर +919719175755 पर भेज सकते हैं। हम आपके आभारी रहेंगे