यदि मैं जीत जाता तो मैं भी किसी पार्टी का गधा बन जाता

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पेशावर क्रांति (23 अप्रैल,1930) के नायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली जी ने सन् 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव के दौरान जो कहा था वो आज के संदर्भ में ज्यादा प्रासंगिक है कि ‘यदि मैं जीत जाता तो मैं भी किसी पार्टी का गधा बन जाता’।

आज चन्द्रसिंह ‘गढ़वाली’ जी के जन्म दिवस पर उनको याद करते हुए उन्हीं का एक लेख-
साभार अरुण कुकसाल 
बालावाली से थलीसैंण तक रेल मार्ग बने-
लेखक- चन्द्र सिंह गढ़वाली
इस पृथ्वी में स्विट्जरलैंड और कश्मीर को प्राकृतिक सौंर्दय से भरपूर माना जाता है, परन्तु उत्तराखंड स्थित दूधातोली (गढ़वाल) का स्थान इसमें भी काफी आगे अपनी सुन्दरता रखता है। दूधातोली समस्त विश्व के पर्यटकों का आकर्षण केन्द्र बन सकता है। वह पहाड़ गोपेश्वर, (चमोली), चन्द्रबदनी (टिहरी), पौड़ी, नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा आदि स्थानों से भी दृष्टिगोचर होता है। यह पहाड़ी हरे-भरे जंगलों से भरपूर है। यह 200 वर्ग मीटर पश्चिम की ओर ढ़लवा समतल भूमि है। इस पर्वत से 6 नदियां निकलती हैं, जो लाखों एकड़ भूमि का सिंचन करती हैं। यहां लम्बे-चौड़े मैदान हैं, जिनमें हवाई अड्डे, खेल-कूद के मैदान और आधुनिक ढंग का सुन्दर नगर बसाया जा सकता है। यहां की जलवायु स्वास्थ्य वर्धक है। सबसे बड़ी बात यह है कि पेयजल बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। बहुत से पहाड़ी नगरों (पौड़ी, लैंसडौन, अल्मोड़ा) में पेयजल की बड़ी असुविधा है। यहां नहीं है। यहां ऊषाकाल से सांयकाल तक चटक धूप रहती है।
समुद्रतल से 10,217 फिट गढ़वाल दर्शनी (मुशाकोठ) नामक चोटी है। यहां पर 10,183 फीट पर दर्शनीय (कोदियाबगड़) नामक चोटी है। यहीं पर मेरी छः फीट भूमि मरणोपरान्त दाह संस्कार हेतु उपलब्ध है। सरकार के वन विभाग ने उसे स्वीकृति दे दी है।
दूधातोली के पूर्वी भाग में श्री विनसर देवता का विख्यात मंदिर है। सम्भवतः मन्दिर के पास एक नगर भूमिगत है और कुछ दूरी पर वन विभाग का एक बंगला है। पश्चिम दिशा में छवोरी नामक 900 फीट की ऊंची चोटी है। यहां से मेरी जन्मभूमि मासौं के अलावा अल्मोड़ा, नैनीताल, रामगंगा की रमणीक घाटी भी आखों को चकाचौंध कर देती है। दूधातोली के पश्चिम भाग में सतयुग के वीरांगनाओं की यादगार जुरयानी, बगुनी, बेलनी की ऐतिहासिक पोखरें (बादड़ियां) हैं और इसी दूधातोली के पूर्वी भाग में बधाणगढ़ी, चोपड़ागढ़, जुनिया और जुगतुगढ़ी आदि पाषाण युग के द्योतक हैं जो अपने सर्वेक्षण और रक्षण की मांग कर रही हैं। दूधातोली में छोटा शेर, मृग, बारहसिंघा, काकड़, हिरन, चीतल, सुअर, सेई आदि बड़ी संख्या में हैं।
हिमालय के विविध सुन्दर दृश्यों के लिए दुधातोली बहुत उत्तम जगह है। पर्वतराज हिमालय, अनेकों झरने, नदियों, फूलों, हरियाली से आच्छादित पर्वत श्रेणियां मनमोहक हैं।
यातायात- सैलानी अपने लिए अनुकूल यातायात की मांग करते हैं। मोटर यातायात दूधातोली के लिये सुलभ होता जा रहा है। हाल ही में माननीय मुख्यमंत्री श्री बहुगुणा ने चन्द्र दर्शन के पास हेलीकाॅप्टर का मैदान बना दिया है। बाकी दो मैदान झाड़-झंकार साफ करने पर अच्छे तैयार होगें। हवाई अड्डे और बनाये जा सकते हैं जो सुरक्षा की दृृष्टि से भी उपयुक्त होंगे।
रेल मार्ग- रेल मार्ग के लिए प्रस्तावित योजना के एक चित्र के द्वारा भारत और उप्र सरकार तथा सम्बन्ध रखने वाली ग्रामीण जनता यदि योजना का सर्मथन करेगी तो वह दिन दूर नहीं होगा जब गढ़वाल के मध्य दूधातोली में बम्बई, कलकत्ता, अमृतसर, दिल्ली, देहरादून से रेल की बोगियां बालावली से स्थान कुनाऊ, चीला, स्वर्गाश्रम, व्यासघाट से पूर्वी नयार होते हुए सतपुली, कोलागढ़, बैजरों, स्यूंसी, थलीसैंण, दूधातोली तक रेल का इन्जन सीटी बजाता हुआ आयेगा और जायेगा।
दूधातोली विश्व का सर्वप्रथम पर्यटक केन्द्र बन जायेगा और दिल्ली राजधानी का समर हेडक्वार्टर भी। आशा है भारत सरकार इस योजना को प्राथमिकता देकर इसका निर्माण करेगी।
साभार- श्रीमान अनिल स्वामीजी के संयोजन में प्रकाशित ‘स्मारिका, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली’, सम्पादक- सम्पत्ति नेगी ‘संध्या’, जयभारत संगठन, श्रीनगर गढ़वाल, वर्ष-1984.