प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश हैं शामिल
मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार हैं शामिल
कमल किशोर डुकलान
पर्यावरण प्रकृति का हिस्सा है। प्रकृति के बिना पर्यावरण की परिकल्पना करना असम्भव है। ईश्वर की श्रेष्ठ अनुपम कृति प्रकृति है, प्रकृति से हमें सृष्टि का बोध होता है। प्रकृति के द्वारा ही समूचे ब्रह्माण्ड की रचना की हुई है। प्रकृति दो प्रकार की होती है- प्राकृतिक प्रकृति और मानव प्रकृति। प्राकृतिक प्रकृति में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश शामिल हैं। मानव प्रकृति में मन, बुद्धि और अहंकार शामिल हैं।
भगवान् श्री कृष्ण गीता में कहते हैं- पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश ये पञ्चमहाभूत और मन, बुद्धि तथा अहंकार- यह आठ प्रकार के भेदों वाली मेरी ‘अपरा’ प्रकृति है। ईश्वर द्वारा आठ प्रकार की प्रकृति समूचे ब्रह्माण्ड का निर्माण करती है।
मनुष्य का शरीर पंचभूतत्व यानी अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है।” इन पंचतत्वों को विज्ञान भी मानता है। अर्थात मानव शरीर प्राकृतिक प्रकृति से बना है। पर्यावरण के बगैर मानव अस्तित्व की परिकल्पना अधूरी है। मानव प्रकृति जैसे मन, बुद्धि और अहंकार ये तीनो पर्यावरण को संतुलित या संरक्षित करते हैं। पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। “परि”+”आवरण” परि का तात्पर्य जो हमारे चारों ओर है” और आवरण”का तात्पर्य जो घिरा हुआ अर्थात वह “परिवेश” जिसमें जीव-जंतु रहते हैं।
मनुष्य का शरीर पंचभूतत्व यानी अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है।” इन पंचतत्वों को विज्ञान भी मानता है। अर्थात मानव शरीर प्राकृतिक प्रकृति से बना है। पर्यावरण के बगैर मानव अस्तित्व की परिकल्पना अधूरी है। मानव प्रकृति जैसे मन, बुद्धि और अहंकार ये तीनो पर्यावरण को संतुलित या संरक्षित करते हैं। पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों से मिल कर हुआ है। “परि”+”आवरण” परि का तात्पर्य जो हमारे चारों ओर है” और आवरण”का तात्पर्य जो घिरा हुआ अर्थात वह “परिवेश” जिसमें जीव-जंतु रहते हैं।
पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की समष्टिगत इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उसके रूप,जीवन और जीविका को तय करते हैं। पर्यावरण-सन्तुलन से तात्पर्य है जीवों के आसपास की समस्त जैविक एवं अजैविक परिस्थितियां जल,जंगल, ज़मीन के बीच पूर्ण सामंजस्य स्थापित करना। जल,जंगल और जमीन जब तक है तब तक मानव का विकास होता रहेगा। हम सबको पता है,जो मानव छोड़ते हैं उसको पेड़-पौधे लेते हैं और जो पेड़-पौधे छोड़ते हैं उसको मानव लेते हैं। जल, जंगल और जमीन में ही जीवन है। जब इस प्रकृति में जीवधारी ही नहीं रहेंगे तो बिजली, सड़क,आदि क्या काम आयेंगे। यह कहने में आश्चर्य नहीं होगा कि समुदाय का स्वास्थ्य ही राष्ट्र की सम्पदा है। जल, जंगल और जमीन को संरक्षित करने लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरुरी है। मन आतंरिक पर्यावरण का हिस्सा है। जल, जंगल और जमीन वाह्य (बाहरी) पर्यावरण का हिस्सा है। प्राकृतिक विनाश से विकास संभव नहीं है।
वैदिक संस्कृति का प्रकृति से अटूट सम्बन्ध है। वैदिक संस्कृति का सम्पूर्ण क्रिया-कलाप प्राकृत से पूर्णतःआवद्ध है। प्रकृति में आन्तरिक एवं बाह्य सभी स्थूल वस्तुएं बाह्य एवं शरीर के अन्दर व्याप्त सूक्ष्म तत्व मन और आत्मा पर्यावरण का आन्तरिक हिस्सा है। आधुनिक विज्ञान केवल बाह्य पर्यावरण शु्द्धि पर केन्द्रित है। वेद आन्तरिक पर्यावरण मन एवं आत्मा की शुद्धि से पर्यावरण की अवधारणा को स्पष्ट करता है। बाह्य पर्यावरण में घटित होने वाली सभी घटनायें मन में घटित होने वाले विचार का ही प्रतिफल हैं। बाह्य एवं आंतरिक पर्यावरण एक दूसरे के अनुपाती हैं। जितना अधिक आन्तरिक पर्यावरण मन शुद्ध होगा, बाह्य पर्यावरण उतना ही अधिक शुद्ध होता चला जायेगा। वेदों के अनुसार बाह्य एवं आन्तरिक पर्यावरण के असंतुलन के परिणाम स्वरुप सुनामी,ग्लोबल वार्मिंग,भूस्खलन,भूकम्प जैसी प्राकृतिक आपदायें हो रही हैं।
तुलसी का पौधा मनुष्य को सबसे अधिक प्राणवायु ऑक्सीजन देता है। तुलसी के पौधे में अनेक औषधीय गुण भी मौजूद हैं। पीपल को देवता मानकर भी उसकी पूजा नियमित इसीलिए की जाती है क्योंकि वह भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देता है।
हवा को गुरु, पानी को पिता तथा धरती को माँ का दर्जा दिया गया है। आपदाएं प्राकृतिक हों या मानव निर्मित दोनों आपदाओं में मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सभी आपदाएं मानवीय असफलता का परिणाम होती हैं। मानवीय कार्य से निर्मित आपदा-लापरवाही, भूल या व्यवस्था की असफलता, मानव निर्मित आपदा कहलाती है। एक प्राकृतिक आपदा जैसे ज्वालामुखी, विस्फोट या भूकंप भी मनुष्य की सहभागिता के बिना भयानक रूप धारण नहीं करते। मानव निर्मित आपदा में बम विस्फोट, रासायनिक, जैविक रेडियोलॉजिकल, न्यूक्लिअर, रेडिएशन आदि आपदाएं आती हैं।
हवा को गुरु, पानी को पिता तथा धरती को माँ का दर्जा दिया गया है। आपदाएं प्राकृतिक हों या मानव निर्मित दोनों आपदाओं में मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सभी आपदाएं मानवीय असफलता का परिणाम होती हैं। मानवीय कार्य से निर्मित आपदा-लापरवाही, भूल या व्यवस्था की असफलता, मानव निर्मित आपदा कहलाती है। एक प्राकृतिक आपदा जैसे ज्वालामुखी, विस्फोट या भूकंप भी मनुष्य की सहभागिता के बिना भयानक रूप धारण नहीं करते। मानव निर्मित आपदा में बम विस्फोट, रासायनिक, जैविक रेडियोलॉजिकल, न्यूक्लिअर, रेडिएशन आदि आपदाएं आती हैं।