ऑल वेदर रोड और डोबरा चांठी पुल के आलोक में उत्तराखंड में सड़क और पुलों का इतिहास !

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डोबरा चांठी पुल तीन लाख की आबादी के 100 किलोमीटर का सफर कम कर बदलने वाला है उनकी दुनिया

प्रमोद शाह
इस वक्त जब उत्तराखंड में निर्माणाधीन चार धाम सढक परियोजना 889 किलोमीटर लंबी तथा उत्तराखंड का सबसे लम्बा डोबरा चांठी पुल 440 मीटर, निर्माण लागत 350 करोड़ रुपए 14 वर्ष के वनवास के बाद बनकर तैयार है। यह पुल तीन लाख की आबादी के 100 किलोमीटर का सफर कम कर उनकी दुनिया बदलने वाला है । टिहरी झील के उपर यह लम्बगांव प्रताप नगर क्षेत्र को जोड़ता है ।
ऐसे समय में उत्तराखंड में सड़क और पुलों का इतिहास जानना जरूरी है । हम कुमायूं के पहले ब्रिटिश गवर्नर लॉर्ड विलियम ट्रेल की भूमिका #भीष्मपितामह की पातें हैं । जो सड़कों का समाज की दृष्टि से महत्व को अशोक और शेर शाह सुरी की परंपरा में पहचानते थे ।
1816 में जब गोरखा उत्तराखंड से अंतिम रूप से विदा हुए ,उस वक्त अल्मोड़ा – श्रीनगर सड़क ही अस्तित्व में थी ।जो काठमांडु से जुडती थी । यह सड़क फौज के आवागमन के लिए ही इस्तेमाल होती थी । तब राज्य के आम नागरिक नदियों के किनारे – किनारे या पहाड़ की चोटी चोटी अपने रास्ते तय करते थे।
उस दौर में अल्मोड़ा का सामरिक महत्व था। विलियम ट्रेल ने 1820 आते-आते ,एक सड़क बरेली से बमोरी (हल्द्वानी ) काठगोदाम भीमताल ,प्यूडा होते हुए अल्मोड़ा पहुंचाई और दूसरी सड़क ब्रह्मदेव लोहाघाट होते हुए पिथौरागढ़ । सैनिक उद्देश्य से बनाई गई इन सड़कों को शीघ्र ही विलियम ट्रेल ने स्थानीय नागरिकों के लिए खोल दिया ,सड़कों के व्यवसायिक महत्व को पहचानते हुए 1821 में ही विलियम ट्रेन ने एक साहसिक निर्णय लेते हुए व्यावसायिक उद्देश्य से ब्रह्मदेव ,खटीमा ,चोरगलिया, बमोरी ,कालाढूंगी कोटा ,ढिकूली ,जीतपुर (कोटद्वार ),चंडी (हरिद्वार ) तक नई सडक बनाई ,यही सड़क आज भी बंजारी / वन मार्ग के रूप में विद्यमान है।
ट्रेल ने गढ़वाल में भी सड़कों के विस्तार के लिए कार्य किया और अल्मोड़ा श्रीनगर मार्ग को कर्णप्रयाग से जोशीमठ तक जोड़ दिया , बद्री केदार की यात्रा के विकास के लिए 4620 सदाव्रत की मद स्थापित की। विलियम ट्रेल ही वह पहलाअंग्रेज था ,जो केदारनाथ धाम गया। उसके बाद विलियम ट्रेल ने केदारनाथ पहुंचने के मार्ग में दो छोटे झूला पुलों का स्वयं निर्माण किया । जिनके निर्माण में वह खुद मजदूर और इंजीनियर बन कर रहा । विलियम ट्रेल की तरह ही भूमिका गंगोत्री पुल निर्माण में व्यापारी फेडरिक की भी रही ।
ट्रेल ने सड़को के महत्व को स्थानीय नागरिकों को समझा कर, सड़को के निर्माण के लिए वह आर्थिक सहयोग लेने में भी कामयाब रहा । सडक निर्माण के लिए ट्रेल ने टिहरी राजा पर भी दबाव बनाया । केदारघाटी में झूला पुलों की सफलता के बाद 1829 में विलियम ट्रेल ने बमोरी अल्मोड़ा मोटर मार्ग पर दो लोहे के सस्पेंशन पुल सुयालबाडी और कुमई नदी में बनाए ।
सड़क और पुलों के समाज के विकास में योगदान को कमिश्नर ट्रेल खूब समझते थे । उन्होंने अपने कार्यकाल समाप्ति तक अगले 5 वर्ष में कुमाऊं में 6 महत्वपूर्ण पुलों का निर्माण किया । यह पुल थे रामेश्वर निकट घाट, कोसी ,बूलेया ,सरयू नदी में सेनरिल ,रामगंगा पिथौरगढ मार्ग में , पुलों एंव सडक के निर्माण से उत्तराखंड में कृषि एवं ब्यापार का विस्तार हुआ । तथा बाहरी दुनिया से संपर्क के अवसर बडे . धार्मिक पर्यटन की रफ्तार बड़ी ।
विलियम ट्रेल ने उच्च हिमालय मार्ग ट्रांस हिमालयन व्यापार की भी पूरी देखरेख खुद ही की स्वयं पर्वतारोहण कर ट्रेल पास की खोज की और तिब्बत से व्यापार सुलभ किया । गढ़वाल में उच्च हिमालय व्यापार मार्ग जिसे हम कर्जन रोड के नाम से जानते हैं । ग्वालदम , रूपकुंड वेदनी,औली , मलारी टोपी दूंगा ,लपथल ,सेना और व्यापार के लिए 19वीं सदी के आखिर में बनकर तैयार हुआ ,जो कालान्तर में पर्यटन और ट्रैकिंग का आधार बना ।
( प्रारंभ में सभी सड़कें,छ:फुट चौडी घोडा सडक बनी , इन्हीं मार्गो के आधार पर मोटर रोड्स का भी विस्तार हुआ )

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