चंपावत के देवीधूरा में खेली गई ऐतिहासिक बगवाल, 122 रणबांकुरे हुए घायल

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2013 से पत्थरों की जगह फूल व फलों से खेली जाती है बग्वाल

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

चंपावत :  उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित देवीधुरा के मंदिर के प्रांगण में रक्षाबंधन पर्व पर सैकडों स्थानीय लोग इकटठे हुए और एक-दूसरे पर पत्थर फेंककर बग्वाल मनाया । इस अनोखे त्योहार में मंदिर की देवी को खुश करने के लिये पत्थर फेंकने का खेल खेलकर लहू बहाये जाने की परंपरा है। 

यह त्योहार हर साल रक्षाबंधन के दिन श्रावण की पूर्णिमा पर बारही देवी को प्रसन्न करने के लिये मनाया जाता है। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि देवी तभी प्रसन्न होती हैं जब खेल के दौरान एक मानव बलि के बराबर लहू बहाया जाये । पत्थर फेंकने के इस खेल को देखने के लिये आसपास के गांवों के हजारों लोग वहां आते हैं। जिले के बाराही धाम देवीधूरा में ऐतिहासिक बगवाल खेली गई। करीब दस मिनट तक चले बगवाल युद्ध में 122 रणबांकुरे घायल हुए। बगवाल में चार खाम और सात थोकों रणबांकुरों ने प्रतिभाग किया। करीब दस मिनट तक चले बगवाल युद्ध में 122 लोग घायल हुए, जिन्हें प्राथमिक उपचार के बाद छुट्टी दे दी गई। 

ऐतिहासिक बगवाल को देखने के लिए पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और सांसद अजय टम्टा, विधायक पूरन सिंह फर्त्याल, राम सिंह कैंडा सहित सैकड़ों लोग शामिल रहे।

गौरतलब हो कि रक्षाबंधन के दिन खेले जाने वाली बग्वाल की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है, लेकिन बीते 2013 से माननीय न्यायालय के आदेश के बाद पत्थरों की जगह अब फूल व फलों से बग्वाल खेली जाने लगी है। लेकिन फिर भी स्थानीय युवा अधिकारियों को चकमा देकर पत्थरों का प्रयोग कर लेते हैं। हालांकि न्यायालय के आदेश के बाद फलों में नाशपाती, सेब, संतरा आदि से बग्वाल खेली जाती है, लेकिन वहीं बग्वालीबीरों का मानना है कि वह आसमान में फलों को फेंकते है, लेकिन वह पत्थरों में तब्दील हो जाते है।

क्षेत्र के बुजुर्ग लोगों के अनुसार पूर्व में यहां नरबली दी जाती थी, लेकिन एक समय ऐसा आया कि चम्याल खाम के एक बुजुर्ग महिला के परिवार में एक ही पोता शेष रह गया था, अगर वह पोते की बली दे तो पूरा वंश ही खत्म हो जाता। उस बुजुर्ग महिला ने मां बाराही की दिन रात पूजा आराधना शुरू कर दी। उस महिला की पूजा से मां प्रसन्न हो गई। और नरबली की जगह दूसरा विकल्प खोजा गया। जिसमें चारों खामों के लोगों ने मां के आदेश के बाद बग्वाल खेलनी शुरू कर दी। इस बग्वाल में एक व्यक्ति के शरीर के बराबर रक्त बहता है।

बताया जाता है कि मां बाराही किसी का भी रक्त नहीं लेती है। लेकिन मां बाराही का गण कलवा बेताल यह रक्त लेता है। रक्षा बंधन के दिन धर्म व आस्था के लिए लडे़ जाने युद्ध में मां बाराही की शक्ति का बखान करना भी लोक आस्था का ही हिस्सा है। जब युद्ध चरम सीमा पर होता है तब माइक से मंदिर के आचार्य इसकी गाथा का बखूबी बखान करते है। पूरे क्षेत्र के लोगों में मेले को लेकर खासा उत्साह बना हुआ है।