लो फिर याद आ गई : 12 लोगों की मौत का कारण बने अग्निकांड की

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ओनिडा वाले मामले में गुलेल.काम का आर्टिकल अब आन लाइन नहीं रहा। इस लिए मैं आर्टिकल जो मैंने भेजा था वह मैं डाल रहा हूँ। ये आर्टिकल मैंने अक्टूबर 2013 में लिखा था। बहुत मेहनत हुई थी कष्ट ये है कि आशीष खेतान जी ने इसे आन लाइन नहीं रखा है।
मनोज रावत
उत्तराखंड में कैसे रचा गया 12 लागों की मौत का कारण बने अग्निकांड में अभियुक्त रहे ओनिडा के मालिक गुलू मीरचंदानी को बचाने का प्रपंच
दिल्ली के ‘उपहार सिनेमा अग्निकांड’ की तरह उत्तराखंड में भी ‘ओनिडा समूह’ की एक फैक्टरी में भीषण अग्निकांड हुआ। यदि मौखिक गवाही पर ध्यान ही न दिया जाय तब भी इस मामले के अभिलेखीय साक्ष्यों से यह सिद्व होता है कि ओनिडा फैक्टरी के अग्निकुंड में बदलने के पीछे कारण कंपनी के प्रबंधकों द्वारा जानबूझ कर की जा रही लापरवाही थी। सरकारी अभिलेख बताते हैं कि, कंपनी सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर केवल उत्पादन बड़ाने में लगी दी। उसके प्रबंधकों को कभी किसी मानक, नियम,सरकारी विभागों के निर्देषों और कानून की कोई परवाह नहीं थी। षिफ्ट समाप्त होने के बाद लगी इस आग में 12 लोग भुन कर मर गऐ थे। स्थानीय लोग बताते हैं कि यदि षिफ्ट के समय यह अग्निकांड हुआ होता तो मरने वालों की संख्या सैकड़ों में होती। तब सारे हरिद्वार जिले की अग्निषमन दस्तों और निजी अग्निषमन गाडि़यों को आग बुझाने में लगाने पर भी फैक्टरी की आग बुझाने में 2 दिन लगे थे।
अग्निकांड के बाद घटनास्थल पर राज्य के वरिश्ठ पुलिस अधिकारियों के अलावा राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री खंडूड़ी भी पंहुचे थे। तब मुख्यमंत्री सहित सभी ने घटना के बाद दिये अपने बयानों में कंपनी प्रबंधन को दोषी बताया था और दुर्घटना के लिए जिम्मेदार लोगों को जल्दी से जल्दी गिरफ्तारी करने का आष्वासन भी दिया था। मामले में मुकदमा भी सही धारा में दर्ज हुआ था। अच्छे और ईमानदार पुलिस अधिकारियों और विवेचकों के कारण जांच भी ठीक दिषा में जा रही थी। सबूतों और जांच के आधार पर यह कहा जा सकता था कि दोषियों को निष्चित सजा हो सकती थी। लेकिन हकीकत में हुआ क्या ? यह जानने के लिए गुलेल की खोजी रिपोर्ट पडि़ये।
अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में सैकड़ों की संख्या में उद्योग लगे। रुड़की से दिल्ली की ओर लगभग 12 किमी दूर मंगलौर थाने के मंडावली गांव में लगी ‘मिर्क इलोक्ट्रानिक्स फेस-2’ इनमें से एक फैक्टरी है। देष के प्रतिश्ठित ‘ओनिडा समूह’ की इस फैक्टरी में वाषिंग मषीन और इलैक्ट्रानिक्स का अन्य सामान बनता था। 8 फरवरी 2012 की षाम 5 बजे के बाद इस फैक्टरी में भीशण अग्निकांड हो गया था जिसमें भुन कर 12 लोगों की मौत हुई थी।
9 फरवरी 2012 को मंगलौर थाने के नारसन खुर्द गांव के निवासी महक सिंह ने मंगलौर पुलिस को दी अपनी तहरीर में लिखा कि वह अपने भाई कृश्णपाल के साथ ओनिडा फैक्टरी मंडावली में काम करता था। इस फैक्टरी में वाषिंग मषीन और इलैक्ट्रानिक सामान तैयार होते हैं। फैक्टरी में जगह-जगह बना हुआ सामान और कच्चा माल रखा था। कच्चे माल में थरमोकाल , प्लास्टिक का दाना व प्लास्टिक का सामान था। उन दिनों फैक्टरी के अंदर वैल्डिंग का काम हो रहा था। महक सिंह ने तहरीर में लिखा है कि उसने और फैक्टरी में काम करने वाले अन्य श्रमिकों ने अनक बार जी0एम सुधीर महेन्द्रा को बताया कि, जगह-जगह फैले सामान के साथ वैल्डिंग किये जाने से कोई दुर्घटना हो सकती है। लेकिन सुधीर महेन्द्रा ने उनके बात को अनसुना कर दिया। उल्टे महेन्द्रा ने उन्हें कहा कि, ‘मुझे जैसे मालिक जी.एल.मीरचंदानी कहंेगे मैं वैसे ही काम करुंगा, तुम्हारे कहने से नहीं ।’ मालिक मीरचंदानी ने मुंबई से ही वैल्डिंग करने वाले मिस्त्रियों को भी भेजा था।
8 फरवरी 2013 को ये मिस्त्री मीरचंदानी के कहे अनुसार सुधीर महेन्द्रा की देखरेख में फैक्टरी की दूसरी मंजिल में वैल्डिंग का काम करवा रहे थे। तहरीर के अनुसार लगभग षाम 5 बजे फैक्टरी की षिफ्ट खत्म होने के बाद महक सिंह और उसका भाई वेतन लेने के लिए फैक्टरी में रुके थे कि दूसरी मंजिल पर बेतरतीब रखे थर्मोकाल व प्लास्टिक के दाने पर वैल्डिंग की चिन्गारी गिरने से आग भड़क गई। तेजी से फैली इस आग और धुंऐ कारण महक सिंह के भाई कृश्णपाल सहित कुल 12 फैक्टरी कर्मी मारे गऐ और कही अन्य घायल हुए। महक सिंह ने तहरीर में लिखाया है कि, फैैक्टरी में आग बुझाने के उपकरण भी काफी समय से खराब थे इसलिए वे मौके पर आग बुझाने के काम नहीं आये। इन उपकरणों की खराबी के बारे में भी प्रवंधकों को कही बार बताया गया था था लेकिन उन्हांेने इन्हें ठीक कराने पर ध्यान नहीं दिया।
महक सिंह ने अपनी तहरीर में फैक्टरी के मालिक, जी.एल. मीरचंदानी और जी.एम. , सुधीर महेन्द्रा पर आरोप लगाते हुए निवेदन किया कि , इन दोनों के जानबूझ कर किये गये कार्य से मेरे भाई कृश्णपाल और अन्य फैक्टरी कर्मियों की मृत्यु हुई है इसलिए इन दोनों पर उचित कानूनी कार्यवाही की जाय। महक सिंह की तहरीर के आधार पर हरिद्वार जिले के मंगलौर थाने ने आई.पी.सी की धारा 304 के अन्र्तगत मिर्क इलैक्ट्रानिक्स के मालिक व ‘ओनिडा समूह’ के चेयरमैन जी.एल. मीरचंदानी उर्फ गुलू मीरचंदानी व सुधीर महेन्द्रा के बिरुद्ध नामजद मुकदमा दर्ज किया गया।
घटना के समय मंगलौर में तैनात, कोतवाल महेन्द्र सिंह नेगी ने इस मामले की विवेचना षुरु की। उनके मंगलौर कोतवाली से स्थानांतरण होने के बाद कुछ समय तक इंसपेक्टर पंकज गैरोला ने ओनिडा फैक्टरी अग्निकांड की तफ्तीश की। बाद में मामले की विवेचना को तेज करने के लिये एक बार फिर वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार ने से तब हरिद्वार जिले की रानीपुर कोतवाली में तैनात महेन्द्र सिंह नेगी को फिर से इस मामले की विवेचना करने को दी।
केस डायरी के अनुसार महेन्द्र सिंह नेगी और पंकज गैरोला दोनों विवेचकों ने इस मामले की जांच आई.पी.सी की धारा 304 में ही की। विवेचक महेन्द्र सिंह ने मामले की विवेचना का आधार महक सिंह की तहरीर, अभिलेखीय साक्ष्यों के अलावा, सी.आर.पी.सी की धारा-161 के अन्र्तगत लिये अनेक गवाहों के बयानों को बनाया । इन सभी साक्ष्यों के आधार पर महेन्द्र सिंह ने अपनी विवेचना में मुकदमे के वादी महक सिंह के आरोपों को सिद्व करने की कोषिस की थी।
महेन्द्र सिंह ने अपनी विवेचना का मुख्य आधार रुड़की के अग्निषमन अधिकारी , हरिद्वार जिले के मुख्य अग्नि षमन अधिकारी , स्टेट इंडस्ट्रियल डेवलपमैंट आथोरिटि (सीडा) व सहायक विद्युत इंस्पैक्टर उत्तराखंड षासन के विभिन्न पत्रों और बयानों को बनाया।
अग्नि षमन अधिकारी द्वितीय, रुड़की ने अग्निकांड के बाद दिनांक 12 मार्च 2012 ने हरिद्वार के वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक को भेजी अपनी लिखित रिपोर्ट में बताया कि , अग्निषमन विभाग ने जारी किया था। उस पत्र में फैक्टरी में स्प्रिंकल सिस्टम, मैनुवल फायर आलर्म , ऊंपरी मंजिल में 100 एम.एम.राइजर व लैंडिग वाल्वों को लगाने का निर्देष दिया था। फैक्टरी प्रबंधन ने इन निर्देषों का पालन नहीं किया । फैक्टरी को मिली अग्निषमन विभाग की अन्नापत्ति भी मार्च 2011 तक ही वैध था। उसके बाद प्रबंधन को फिर से फैक्टरी में लगे अग्निषमन यंत्रों की जांच करा कर उनकी रिफिलिंग के बाद वर्श 2011- 2012 के लिए अग्निषमन विभाग की अन्नापत्ति प्राप्त करनी चाहिऐ थी। अग्निषमन अधिकारी ने अपने पत्र में लिखा कि, फैक्टरी प्रबंधन ने अग्निषमन यंत्रों की रिफिलिंग करा कर न तो उनकी जांच ही कराई और न ही अन्नापत्ति प्रमाण पत्र ही लिया।
तत्कालीन मुख्य अग्निषमन अधिकारी हरिद्वार, पी.एस.षाह ने ही मिर्क फैक्टरी में आग लगने के बाद जिले के सारे फायर स्टेषनों के अग्निषमन दलों के साथ फैक्टरी में आग बुझाने वाले दल का नेतृत्व किया था। षाह ने अग्निकांड के बाद 2 मार्च 2013 को अपरजिला मजिस्ट्रेट हरिद्वार को भेजी जांच आख्या में लिखा है कि, फैक्टरी प्रबंधन केवल पैसा कमाने और उत्पादन बड़ाने में लगा रहा, उसके द्वारा सुरक्षा मानकों की जान-बूझ कर अवहेलना की गई थी। इस लिए अग्निकांड में 12 लोगों की जान जाने के साथ 15 करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान भी हुआ।
सीडा के वास्तुविद- प्लानर वाई.एस.पुंडीर के 7 सितंबर 2009 के पत्र को भी मामले के विवेचक महेन्द्र सिंह ने अपनी विवेचना का आधार बनाया। इस पत्र के अनुसार मिर्क इंडस्ट्री लिमिटेड-2 के प्रवंधन को सीडा ने दुर्घटना के लगभग 3 साल पहले निर्माण के समय 19 विंदुओं का अनुपालन कर फैक्टरी परिसन का ‘बिल्डिंग औक्वोपैंसी प्रमाण पत्र’ लेने का निर्देष दिया था। निर्देषों के बाबजूद भी फैक्टरी प्रबंधन ने अग्निकांड के दिन तक यह प्रमाण पत्र नहीं लिया था। निर्देषों का अनुपालन न करने पर अग्निकांड से पांच दिन पहले भी सीडा ने फिर से मिर्क इंडस्ट्री को फिर से पत्र लिख कर इन बिंदुओं का अनुपालन कर ‘बिल्डिंग औक्वोपैंसी प्रमाण पत्र’ लेने का निर्देष दिया था। लेकिन फैक्टरी प्रबंधकों के कानों में जंू नहीं रेंगी। मामले की केस डायरी के अनुसार सीडा के सहायक आर्किटैक्ट , अभिनव कुमार रावत ने अपने मौखिक बयानों में बताया कि, सेन्ट्रल इंड्रस्ट्रिसल डेवलपमैंट रेगुलेषन एक्ट-2005 के अनुसार किसी भी उद्योग में उत्पादन षुरु करने से पूर्व ‘बिल्डिंग ओक्यूपैंसी प्रमाण पत्र’ लेना आवष्यक षर्त है। एक्ट के अनुसार इस प्रमाण पत्र के बिना फैक्टरी में उत्पादन करना पूर्ण रुप से अवैध था। नाम न छापने की षर्त पर सीडा के देहरादून स्थित कार्यालय के एक अधिकारी बताते हैं कि , ‘ऊंचे संबधों के चलते उद्योगपति हमारे पत्रों और निर्देषों को फाड़कर कूड़ेदान में फेंक देते हैं। हम चाह कर भी एक्ट का पालन नहीं करा पा रहे हैं।’
अन्य की तरह सहायक विद्युत निरीक्षक उत्तराखंड षासन ने दिनांक 19 सितंबर 2010 को अपने पत्र में मिर्क इंडस्ट्री लिमिटेड को भेजे पत्र में निर्देष दिया था कि , मानकों के अनुसार फैक्टरी के चारों ओर फैसिंग, कंट्रोल रुम में षाक रेटोरेषन चार्ट एवं आर्टिफिषियल रेसपिरेटर की व्यवस्था, अर्थ लीकेज सर्किट ब्रकर्स , ड्राई पाउडर टाइप/कार्बन डाई आक्साईड फायर एक्सटिंग्यूषर की व्यवस्था पत्र लिखने के एक महिने के भीतर करने के निर्देष दिये थे।’ मिर्क इंडस्ट्री प्रबंधन ने इन महत्वपूर्ण सुरक्षा निर्देषों का भी अग्निकांड होने तक पालन नहीं किया था। सहायक विद्युत निरीक्षक के पत्र के अनुसार , ‘यदि फैक्टरी प्रबंधन सुझाये गऐ सुरक्षा मानकों की अनदेखी करते हुऐ केवल उत्पादन पर ही बल देता रहा यदि सुरक्षा मानकों को ध्यान में रखा होता तो इतनी बड़ी दुर्घटना घटित नहीं होती।’
प्रभारी विद्युत निरीक्षक ने अवर अभियंता विद्युत राजेन्द्र प्रसाद कोटनाला के साथ अग्निकांड के बाद 19 मार्च 2013 से लेकर चार दिन तक मिर्क इंडस्ट्री (ओनिडा फैक्टरी) का निरीक्षण किया गया। उन्होंने मामले के जांच अधिकारी महेन्द्र सिंह को अपने मौखिक बयानों (सी.आर.पी.सी-161 ) में बताया कि, भीशण अग्निकांड के बाद भी मीटर रुम, केबल , कंट्रोल पैनल व ट्रांसफारमर सुरक्षित पाये गऐ। जिनसे यह निश्कर्ष निकलता है कि आग्नि कांड का कारण विद्युत षार्ट सर्किट नहीं था।
केस डायरी में अंकित है कि , ओनिडा फैक्टरी में फायर सुरक्षा यंत्रों को लगाने वाली कंपनी के पर्टनरों में एक राज के. अरोड़ा ने भी अपने बयानों में विवेचक को बताया कि, वर्श 2010 में फायर हाइड्रैंट सिस्टम लगाने के बाद ओनिडा फैक्टरी को एक साल की वारंटी दी गई थी जिस अगले साल फिर से भरा कर नये साल की गांरटी लेनी थी। लेकिन फैक्टरी प्रबंधन ने फिर से इन सिस्टमों की जांच करा कर अगले साल के लिए वारंटी नहीं ली थी।
अग्निकांड के दिन सुरक्षा गार्ड के रुप में काम कर रहे मंगलौर के नंगला- सलारु निवासी आदेष ने अपने बयान में वही वाकया दोहरया जो मुकदमा दर्ज कराने वाले वादी महक सिंह ने तहरीर में लिखाया था। आदेष के बयानों के अनुसार आग वैल्डिंग से लगी थी। वे बार-बार जी.एम महेन्द्रू को वैल्डिंग न करने की सलाह दे रहे थे। परंतु महेन्द्रू का कहना कि मालिक मीरचंदानी ने मुंबई से कुषल वैल्डर भेजे हैं। साथ ही महेन्द्रू ने सलाह देने वालों को दो-टूक षब्दों में कह दिया था कि, फैक्टरी मालिक मीरचंदानी और उनके अनुसार चलेगी वे अपना काम करें। आदेष के बयानों के अनुसार फैक्टरी में जगह-जगह थर्मोकोल और प्लास्टिक दाने जैसा कच्चा माल रखा था। फैक्टरी में हर दिन 1000 से लेकर 1100 तक वाषिंग मषीनें बनती थी उन्हें भी फैक्टरी के अंदर ही रखा जाता था जिससे आने-जाने वाले रास्ते भी अवरोधित हो रहे थे। आदेष ने अपने बयानों में कहा कि, आग लगभग 5.40 बजे षाम लगी और तुंरत अनियंत्रित हो गयी । आदेष का कहना था कि हमने आग बुझाने का प्रयत्न किया लेकिन फैक्टरी में लगे फायर सर्विस के नलों और बैरलों ने काम नहीं किया इसलिए आग अनियंत्रित हो गई और 12 लोगों की जान चली गई। वादी महक सिंह ने भी विवेचक को दिये अपने बयानों में बताया है कि, अग्निकांड के दिन फैक्टरी में पर्याप्त पानी तक नहीं था इसलिए फायर सर्विस की गाडि़यों को दोबारा पानी भरने के लिए 7-8 किमी दूर जाना पड़ा था।
मामले की केस डायरी (सी.डी.) के अनुसार अभिलेखीय साक्ष्यों के अलावा विवेचक महेन्द्र सिंह की विवेचना तक वादी महक सिंह और गवाह आदेष के अतिरिक्त लगभग आधा दर्जन अन्य गवाहों ने भी अपने बयानों में 12 लोगों की मौत केे लिए फैक्टरी प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया था।
सी.डी के अनुसार विवेचक महेन्द्र सिंह ने इस मामले की जांच 25 अप्रैल 2012 तक की। उनके स्थानान्तरण के बाद उनके स्थान पर आये निरीक्षक पंकज गैरोला ने मामले में पहला पर्चा 14 जून 2014 को काटा।
जांच के दौरान वादी महक सिंह ने निरीक्षक पंकज गैरोला के सामन हू-बहू वही बयान दोहराये जा उसने तहरीर में लिखे थे या जांच के प्रारंभिक चरण में पहले विवेचक महेन्द्र सिंह नेगी को दिये थे। पंकज गैरोला को दिये बयानों में मुख्य अग्निषमन अधिकारी सहित कही गवाहों ने फिर से अग्निकांड में 12 लोगों की मौत के लिए ओनिडा फैक्टरी प्रबंधन को ही जिम्मेदार बताया। संगीन मामले के बीतने के एक साल बाद भी मामले में नामजद दोनों अभियुक्तों की गिरफ्तारी नहीं हो पा रही थी। 11 मार्च 2013 के वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक हरिद्वार अरुण मोहन जोषी के पत्र के अनुसार मामले की जांच में तेजी लाने के लिए ओनिडा फैक्टरी अग्निकांड की जांच फिर से महेन्द्र सिंह नेगी को दे दी गई। जून के प्रथम सप्ताह में महेन्द्र नेगी ने अभियुक्तो की गिरफ्तारी के लिए दबिष देनी षुरु कर दी। 8 जून 2013 को विवेचक महेन्द्र सिंह नेगी ने रुड़की न्यायालय से प्रार्थना की कि दबिष देने पर भी ओनिडा फैक्टरी मामले के दो अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए गैर जमानती वारंट जारी करने का निवेदन किया। जो उन्हें दो दिन बाद मिल गया।
गुलेल को अपनी खोज में पता चला है कि, ‘मार्च के महिने फिर से जांच महेन्द्र सिंह नेगी को मिलते ही ओनिडा समूह के प्रबंधकों ओर उनके पैरवी कारों ने देहरादून से लेकर दिल्ली तक के चक्कर लगाने षुरु कर दिये थे।’ ओनिडा की ऊंची पैरोकारी का असर था कि प्रदेष सरकार के षीर्श से लेकर षासन और पुलिस के बड़े अधिकारियों द्वारा इस मामले को किसी तरह निपटाने के लिए दखलंदाजी षुरु हो गई। लेकिन तब हरिद्वार में तैनात वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक अरुण मोहन जोषी के सामने प्रबंधन की तिकड़मों का कुछ नहीं चल रहा था। साथ ही ओनिडा के पैसे की खनक और उनके प्रबंधन के संपर्क भले ही सरकार और षासन में बैठे बड़े लोगों के ईमान और सम्तनिश्ठा को डिगा रहे हों लेकिन वह सारी कोषिसों के बाबजूद भी मामले की जांच कर रहे निरीक्षक महेन्द्र सिंह नेगी की कर्तव्यनिश्ठा और ईमानदारी को प्रभावित नहीं कर पा रहे थे।
7 जून 2013 को प्रमुख सचिव गृह को लिखे अपने पत्र में राज्य अभियोजन निदेषालय के संयुक्त निदेषक (विधि) ने पहले ही पैरा में वर्णन किया है कि, इस मामले में 30 मई 2013 को प्रमुख सचिव गृह द्वारा ली गई बैठक में कंपनी के प्रतिनिधि, विवेचक (महेन्द्र सिंह नेगी) और स्वयं वे उपस्थित थे। पत्र के अनुसार तब प्रमुख सचिव गृह ओमप्रकाष ने उन्हें ओनिडा फैक्टरी अग्निकांड मामले में दर्ज मुकदमे के संबध में विधिक अभिमत देने का आदेष दिया था। गुलेल को अपने सूत्रों से पता चला है कि, इस मामले में लगे विवेचक और जिला स्तरीय पुलिस अधिकारियों को प्रभावित करने के लिए षासन में कही दौर की बैठकें हुई और इन अधिकारियों को तलब किया गया। बताते हैं कि , यह सब राज्य सत्ता को वास्तव में चलाने वाले एक ‘युवा नेता’ और उनकी चैकड़ी के संकेतों पर हो रहा था। और हुआ भी वही जो ओनिडा के प्रबंधक चाह रहे थे। 13 जून 2013 को हरिद्वार के तत्कालीन एस.एस.पी. अरुण मोहन जोषी का तबादला कर दिया गया। बताते हैं कि, ओनिडा अग्निकांड की मानमाफिक जांच न कराने के अलावा कड़क छवि के जोषी के तबादले का कारण हरिद्वार में उनके द्वारा अवैध खनन पर अंकुष लगाना भी था।
ओनिडा के पैरोकारों को मालूम था कि, जोषी के जाने के बाद भी महेन्द्र सिंह नेगी किसी भी हाल में उनके ईषारे पर चलकर मामले को कमजोर करने में कोई मदद नहीं करेंगे। इसलिए जोषी के स्थानांतरण के अगले ही दिन याने 14 जून 2013 को पुलिस उपमहानिरीक्षक (गढ़वाल रेंज) के आदेष पर हरिद्वार जिले में घटित इस भीशण अग्निकांड की विवेचना महेन्द्र सिंह नेगी से हटा कर टिहरी जिले के थाना मुनि की रेती में तैनात निरीक्षक राजीव डंडरियाल को दे दी गई। उस दिन गढ़वाल रेंज के उपमहानिरीक्षक का चार्ज देहरादून के वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक केवल खुराना के पास था। गुलेल को सूत्रों से यह भी पता चला कि, विवेचक बदलने का आदेष जारी न करने के कारण डी.आई.जी गढ़वाल अमित सिन्हा के छुट्टी जाते ही केवल खुराना से विवेचक बदलने का मनमाफिक आदेष ले लिया गया। राज्य में तैनात रहे भारतीय पुलिस सेवा के एक सेवानिवृत अधिकारी नाम न छापने की षर्त पर बताते हैं कि, हालांकि डी.आई.जी को अपनी रेंज में किसी भी मामले की विवेचना को बदलने का अधिकार है, लेकिन डी.आई.जी इस अधिकार का प्रयोग उन मामलों में करते हैं जहां जांच की दिषा सही नहीं हो या विवेचक द्वारा अपराधियों के बचाने के प्रयास किये जा रहे हों अथवा किसी का उत्पीड़न हो रहा हो।’ वे बताते हैं कि , ‘एक-दो दिन के लिए पदभार पर आये अधिकारी तो संवेदनषील मामलों मंे विवेचक बदलने के इस तरह के निर्णय किसी भी हाल में नहीं लेने की परंपरा है।’ ओनिडा अग्निकांड मामले में इनमें से कोई बात सत्य नहीं थी।
पर इस मामले में तो सब उल्टा हो रहा था। विवेचक बदलने के आदेष जारी होने के दिन तक महेन्द्र सिंह नेगी ने सारे साक्ष्य जुटा लिये थे। फरार चल रहे अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए वारंट ले लिये थे और कुर्की की कार्यवाही की ओर बड़ रहे थे। राज्य में तैनात एक वरिश्ठ पुलिस अधिकारी का मानना है कि, अभियुक्तो की बचाने की पैरवी कर वाले नेताओं और अधिकारियों ने जब कही दौर की बैठकों को कर यह सुनिष्चित कर लिया था कि अभियुक्तों के विरुद्व कोई भी अनावष्यक कार्यवाही नहीं हो रही है तो फिर विवेचना को बदल कर दूसरे जिले के विवेचक को देने के निर्णय को किसी भी हाल में सही और तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है।
कप्तान जोषी और विवेचक नेगी को बदलने के एक दिन बाद ही राज्य के प्रमुख सचिव गृह ने वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक देहरादून और उस दिन प्रभारी पुलिस उपमहानिरीक्षक गढ़वाल का कार्यभार देख रहे केवल खुराना को पत्र भेज कर ओनिडा फैक्टरी मामले में उत्तराखड अभियोजन निदेषालय में तैनात, संयुक्त निदेषक (विधि) का अभिमत विवेचक के संज्ञानार्थ भेजने के आदेष के साथ भेजा। इस अभिमत में सं. निदेषक ने विवेचक को मामले को आई.पी.सी की धारा 304 में चलाने के बजाय 304- ए में चलाने की सलाह दी थी। सरकारी पत्र-व्यवहार सिद्व करता है कि अपराध के नियंत्रण के लिए जिम्मेदार राज्य सत्ता,षासन और पुलिस के षीर्श अधिकारियों ने , ‘सब कुछ वही किया जो अग्निकांड के अभियुक्तों की इच्छा थी।’ हरिद्वार के उद्योगपतियों में चली गप्पबाजी के अनुसार इन आदेषों को पाने के लिए अभियुक्तों के पैरोकारों ने करोड़ो रुपऐ खर्च किये। अफवाह है कि मोटा पैसा सत्ता के षीर्श से लेकर हर अधिकारी ओर कर्मचारी तक गया। सरकारी पत्र भी यह सिद्व करते हैं कि जिस तेजी से इस मामले में पत्र व्यवहार और बैठकें हुई अमूमन बिना किसी ‘निहितार्थ’ के होती नहीं हैं।
ममले की केस डायरी देखने पर पता चलता है कि निरीक्षक महेन्द्र सिंह नेगी ने 15 जून 2013 को काटे अपने अंतिम पर्चे में मामले की जांच आई.पी.सी की धारा 304 में की है अपनी ओर से दर्ज इन 8 पेजों में वेे विस्तार से मामले की विवेचना, तथ्यों ,गवाहों और नियमों के बारे में वर्णन कर इस निश्कर्ष पर पंहुचे थे कि फैक्टरी प्रबंधन द्वारा जानबूझ कर सुरक्षा मानकों की अनदेखी करने के कारण अग्निकांड हुआ और 12 लोगों की जान गई।
दूसरी ओर केस डायरी में दर्ज राजीव डंडरियाल के 15 जून 2013 के बयान भविश्य में मामले की दिषा की ओर संकेत देते हैं। डंडरियाल ने उस दिन केस डायरी में दर्ज किया है कि , उन्हें वरिश्ठ पुलिस अधीक्षक केवल खुराना जो उस दिन प्रभारी पुलिस उपमहानिरीक्षक (गढ़वाल) के चार्ज पर भी थे ने देहरादून तलब किया है। पुलिस के सूत्र बताते हैं कि ड़डिरियाल को देहरादून बुलाने के पीछे कुछ गहरे राज छुपे थे। याने ओनिडा प्रबंधन को बचाने की लिए बिसात बिछ चुकी थी। अब केवल उस पर काम होना था।
18 जून 2013 को नये विवेचक डंडरियाल ने अग्निकांड की केस डायरी में अंकित किया है कि, 17 जून की आपदा के कारण ऋशिकेष षहर के थाना मुनी की रेती के थाना क्षेत्र में कही स्थानों पर पानी भर गया है और धामों में फंसे यात्रियों का भी आना-जाना षुरु हो गया है। इसलिए राहत और बचाव कार्यों में व्यस्तता के कारण अग्रिम विवेचना फिर की जायेगी। उस दिन केदारनाथ सहित अन्य पहाड़ी ईलाकों की बरबादी का कारण बनी गंगा की सारी सहायक धाराओं का पानी मिलकर बनने वाले उफनती गंगा से ऋशिकेष, हरिद्वार सहित मैदानी कस्बों की बरबादी का अंदेषा था। यह भी एक ताजुब्ब की बात है कि 18 जून को सामने खड़े इस संकट के बाद भी गंगा के किनारे धर्म नगरी ऋशिकष के मुनी की रेती में तैनात इस मामले के विवेचक पंकज डंडरियाल ने केस डायरी के 10 पन्ने भरने की फुरसत निकाल ली थी। 18 जून को उत्तराखंड में गंगा किनारे फैली अफरा-तफरी को देखते हुए यह माना जा सकता है कि , यह मामले को ठिकाने लगाने के ऊंपरी दबाव और बिना किसी लालच के किसी भी हाल में संभव नहीं था।
केस डायरी में अंकित है कि, 19 जून 2013 तक आधिकारिक रुप से पंकज गैरोला को संयुक्त निदेषक (विधि) का अभिमत भी मिल गया था। इस अभिमत के अनुसार साक्ष्यों के विष्लेशण और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर संबधित प्रकरण की विवेचना विधिक रुप से आई.पी.सी की धारा 304- ए के अन्र्तगत की जाने को न्यायसंगत बताया था।
आपदा के बाद राहत और बचाव की व्यस्तता के बाद 5 जुलाई 2013 को राजीव डंडरियाल पहली बार विवेचना के लिए हरिद्वार जिले में रुड़की के पास मंडावली स्थित ओनिडा फैक्टरी गऐ । वहां उनके द्वारा एक ही दिन में केस डायरी के न केवल 26 पेज भरे गऐ बल्कि उन्होंने अलग-अलग स्थानों पर दिखाये गऐ दर्जन भर से अधिक गवाहों के बयान दर्ज किये। विवेचक ने उस दिन गैर जमानती वारंट होने के बाबजूद गिरफ्तारी का कोई प्रयास नहीं किया। न ही फरार अभियुक्तों के विशय में कुछ तहकीकात की।
केस डायरी में अंकित अभिलेखों के अनुसार 17 जुलाई 2013 तक विवेचक राजीव डंडिरियाल ने गवाहों के बयानों और राज्य अभियोजन निदेषालय से आये अभिमत के आधार पर निश्कर्ष निकाला कि, अब आगे इस मामले की अग्रिम जांच आई.पी.सी की 304- ए के अन्र्तगत की जायेगी। पर्चो के अनुसार 31 जुलाई 2013 तक मामले की जांच 304- ए में षुरु की गई।
अब सारी विवेचना अग्निकांड के अभियुक्तों की इच्छा और ऊंपरी ईषारे पर हो रही थी। 3 अगस्त 2013 को मीरचंदानी और सुधीर महेन्द्रू की गिरफ्तारी के लिए न्यायालय द्वारा जारी गैर जमानती वांरटों को स्थगित करने हेतु प्रार्थना पत्र डाला। 8 अगस्त को दोनों अभियुक्त रुड़की की उसी कोर्ट में हाजिर हुए। मामले में यह भी आष्चर्य जनक तथ्य है जिस न्यायालय ने ठीक दो महिने पहले पहले साक्ष्यों के आधार पर अग्निकांड मामले में छुपे हुए दो अभियुक्तों के विरुद्व गैर जमानती वारंट जारी किये थे। उसी न्यायालय ने मामले के 304 से 304-ए में बदलने के कारण ये वारंट निरस्त किये गये।
केस डायरी बताती है कि 16 अगस्त को नये विवेचक को दिये बयानों में भी अग्निषमन अधिकारी अपने पहले के बयानों पर कायम रहे और उन्होंने दुर्घटना का कारण मिर्क फैक्टरी प्रबंधन की जानबूझ कर की गई लापरवाही को बताया। अग्नि षमन अधिकारी के अलावा मामले में पहले गवाही दे चुके कही और गवाह भी अपनी पहले की गवाही पर कायम थे। जिसमें उन्होंने घटना के लिए प्रबंधन को जिम्मेदार माना था। लेकिन नये विवेचक ने इस बार कंपनी प्रबंधन के अधिकारियों या उनके द्वारा पेष किये गवाहों के बयानों को ज्यादा महत्व दिया।
इसके बाद केस डायरी में दर्ज हर षब्द षिद्ध करता है कि , विवेचक कैसे मामले को हल्का करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता के लिए महत्वपूर्ण घटना, वादी के बयान, मौके के गवाह या अभिलेखीय साक्ष्यों के बजाय सिविल वादों के लिए महत्वपूर्ण आर्टिकिल आफ मेमोरैडम , कंपनी एक्ट आदि का सहारा लेकर ओनिडा के मालिक मीरचंदानी को बचाने की कोषिस कर रहे थे। 1 सितंबर 2013 को मिर्क फैक्टरी के मैनेजर मैनेजर रविरंजन का बयानों के आधार पर विवेचक ने यह निश्कर्ष भी निकाल दिया कि फैक्टरी के रोज-मर्रा के संचालन के लिए चैयरमैन जी.एल.मीरचंदानी जिम्मेदार नहीं हैं इसलिए अग्निकांड का कारण उनकी लापरवाही नहीं माना जा सकता है। रविरंजन ने यह भी बताया कि, मीरचंदानी केवल उद्घाटन के दि नही कंपनी में आये थे। बयान के इस तथ्य को भी नये विवेचक ने अभिलेखीय साक्ष्यों से बड़कर महत्ता दी।
7 सितंबर 2013 को विवेचक राजीव डंडरियाल द्वारा रुड़की न्यायालय को भेजी चार्ज षीट में मिर्क फैक्टरी अग्निकांड में नामजद अभियुक्त और फैक्टरी मालिक जी.एल.मीरचंदानी को अभियुक्त से हटा दिया गया था। अब मामले में केवल एक ही अभियुक्त याने तत्कालीन जी.एम सुधीर महेन्द्रा ही रह गऐ हैं। और मामले को सदोष मानव वध याने हत्या की कोटि में न आने वाले मानव वध जिसे आई.पी.सी. की धारा 304 में दर्ज किया जाता है इस धारा में आजीवन कारवास या दस साल की कारावास और जुर्माने या दोनों का प्राविधान है से हटा कर 304-ए में बदल दिया गया है। धारा 304- ए याने उपेक्षा या उतवालेपन में हुई हत्या में अधिकतम दो साल की सजा हो सकती है। इस धारा के अधिकतर मामले जुर्माना में ही छूट जाते हैं। यही अभियुक्त भी चाहते थे और इसी के लिए कवायद भी कर रहे थे।
संयुक्त निदेषक(विधि) का हास्यास्पद अभिमत
मामले की केस डायरी बताती है कि, इस मामले में किसी भी विवेचक ने कभी भी विधिक राय नहीं मांगी थी। फिर भी संयुक्त निदेषक ने प्रमुख सचिव, गृह के आदेष पर विधिक राय दी। बताते हैं कि, ओनिडा समूह के निवेदन पर राजसत्ता से आये दबाब के बाद जब मामले को हल्का करने के लिए हरिद्वार के एस.एस.पी या विवेचक तैयार नहीं हुए तो विधिक सलाह दे कर मामले को प्रभावहीन करने की दिषा में एक कदम बड़ाया गया। 10 पेज के अभिमत से यह साफ लगता है कि, जैसे संयुक्त निदेषक अभियोजन के बजाय अभियुक्तों की पैरवी कर रहे हों। स.निदेषक ने अभिमत में मृतकों के आश्रितों को 5 लााख रुपया देने जैसे कंपनी के दायित्वों को व आश्रितों को रोजगार देने जैसे आधारों को महत्ता दी जबकि उनकी लापरवाहियों का जिक्र हल्के में किया। उन्होंने 304 – डी में वर्णित षब्द ज्ञान(ादवूसमकहम) को भी सही अर्थों में परिभाशित नहीं किया।
कानूनी दुनिया के लोग बताते हैं कि, इस अभिमत में उन्होंने केवल उच्च न्यायालयों या उच्चतम न्यायालय के केवल उन ही मामलों का उल्लेख किया गया है जो अभियुक्तों को बचने का रास्ता देते हैं। अभियोजन ने एक भी ऐसे मामले का उल्लेख नहीं किया है जो अभियुक्त के लिए मुसीबत पैदा करते। इसी अभिमत को मुख्य आधार बनाते हुए विवेचक राजीव डंडरियाल ने धारा 304 को 304-ए में बदल कर मामले को हल्का कर दिया।
अभिमत देने वाले स.निदेषक (विधि) भी सेवा निवृति के बाद पुनः राज्य सरकार को संविदा पर सलाह दे रहे हैं। संविदा पर काम कर रहे अधिकारी की कोई खास जिम्मेदार नहीं होता है।
साथ में महिपाल कुंवर

यह लेख नवम्बर 2013 में गुलेल.कॉम में छपा था। तब पत्रकार रहे , मनोज रावत जो अब केदारनाथ विधानसभा से विधायक हैं। लेख को उनकी फेस बुक पोस्ट से लिया गया है।

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