ख़बर का असर : फिर खुलेगी जेट्रोफा प्रोजेक्ट घोटाले की फाइल!

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  • जेट्रोफा परियोजना की होगी समीक्षा : डॉ. हरक सिंह रावत 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : देवभूमि मीडिया डॉट कॉम   की खबर का एक बार फिर असर हुआ है  वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने कहा है कि अब एक बार फिर से जेट्रोफा प्रोजेक्ट से  जुड़ी फाइल खोली जाएगी। साथ ही इस बात का पता लगाया जाएगा कि आखिर ये परियोजना किन कारणों से बंद हुर्इ और इस परियोजना में कहाँ घोटाला हुआ और कौन अधिकारी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

गौरतलब हो कि उत्तराखंड में  वर्ष 2004 में बड़े जोरशोर से जेट्रोफा का प्लांटेशन किया गया बड़े -बड़े नारे दिए गए और करोड़ों रूपया इस परियोजना पर सूबे के वन महकमे के खर्चा किये लेकिन सूबे में न तो कहीं आज जेट्रोफा की वह पौध ही नज़र आ रही है और न हरिद्वार जिले में करोड़ों की लगता से बनाया गया बायोफ्यूल प्लांट ही कहीं नज़र आ रहा है सब कुछ घोटाले की भेंट चढ़ गया और बायोफ्यूल के मामले में सूबे के हाथ आज भी वर्ष 2004 से पहले की स्थिति है।

  • उत्तराखंड में जेट्रोफा योजना में हुआ था महाघोटाला!

एक जानकारी के अनुसार राज्य में वर्ष  2002 में  हुए पहले विधानसभा चुनाव के बाद पंडित नारायण दत्त तिवारी की सरकार के सत्ता में आने के बाद वर्ष 2004 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की दो लाख हेक्टेयर में जेट्रोफा की पौध लगाने की योजना थी लेकिन कांग्रेस सरकार के जाने तक वर्ष 2007 तक यह केवल 20 हज़ार हेक्टेयर तक में ही लग पायी।  इतना ही  जैव ईंधन के शोधन के लिए हरिद्वार जिले में जो प्लांट लगाया गया वह भी एक निजी कम्पनी ”रूचि सोया” को आने पौने दामों में (मात्र 30  लाख) में बेच दिया गया।  इतना ही नहीं बायोफ्यूल बनाने के लिए तत्कालीन राज्य सरकार ने कथित रूप से 30 करोड़ जेट्रोफा की पौध भी मंगवाई जिसका आज तक पता नहीं चला कि जेट्रोफा की इन पौधों का कहाँ पौधा रोपण किया गया। इतना ही नहीं जेट्रोफा के बीज  को खरीदने की नीति भी कागजों में बना दी गयी थी जिसके लिए  3 :50 पैसे प्रति किलोग्राम  की दर भी तय कर दी गयी थी वहीँ वन विभाग ने इसपर संस्तुति भी दे दी थी लेकिन आज तक न कहीं पौधों का पता है और न उसके बीज का।  इतना ही नहीं तत्कालीन समय में उत्पादित होने वाले इन बीजों से बने तेल का कुछ प्रतिशत राज्य सरकार को खरीदना था तथा शेष को फुटकर बाज़ार में बेचने तक की योजना कागजों में बनाई गयी थी लेकिन इस योजना का हश्र जरूर आज सबके सामने है। न नौ मन तेल ही हुआ और न राधा ही नाच पायी ?

  • भाजपा ने वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में घोटाले को बनाया था अस्त्र 

हां इस घोटाले को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के 56 घोटालों में जरूर शामिल कर दिया गया और इन्ही 56 घोटालों को लेकर भाजपा ने वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हराने के लिए इन घोटालों की बारीकी से जांच करवाने का जनता से वादा भी किया था और जनता ने भाजपा को वोट देकर मेजर जनरल खंडूड़ी को सूबे के मुख्यमंत्री की कमान सौंप दी।  इसके बाद भी कुछ दिनों तक मेजर जनरल साहब ने 56 घोटालों की जांच का राग अलापा लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने भी अपनी जुबान से 56 घोटालों की बात करनी बंद कर दी और अब वर्तमान वर्ष 2018 तक तो ये घोटाले न राज्य सरकार को पता है और जनता तो अन्य घोटालों की तरह इसको भी भूल ही गयी कि कभी कोई घोटाला यहाँ की धरती पर हुआ भी था।

  • आखिर उत्तराखंड में बनाये जाने वाले बायोफ्यूल का क्या हुआ ?

लेकिन यह सवाल आज भी बना हुआ है कि आखिर उत्तराखंड में बनाये जाने वाले बायोफ्यूल का क्या हुआ ? क्यों नहीं आज छत्तीस गढ़ की तरह उत्तराखंड भी बायोफ्यूल पैदा करने वाला राज्य बन पाया? क्यों नहीं अब तक जेट्रोफा घोटाले सहित उन 56 घोटालों की जांच की बात हो रही है ? क्या सूबे के सफेदपोश और भ्रष्ट अधिकारियों का गठजोड़ राज्य को कब तक लूटते रहेंगे ? क्या इसी तरह सिर्फ कागजों में योजनाएं बनाकर सूबे की जनता को सब्जबाग़ दिखाया जाता रहेगा ? या जमीन पर भी कुछ देखने को मिलेगा जैसा छत्तीस गढ़ ने बायोफ्यूल बनाकर दिखा ही नहीं दिया बल्कि उससे हवाई जहाज तक भी उड़ाने में सफलता प्राप्त की है। 

मामले के संज्ञान में ने के बाद सूबे के वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने देवभूमि मीडिया डॉट कॉम की खबर के बाद इस  परियोजना की फाइल खोलने के निर्देश वन विभाग के अधिकारियों को दिए हैं उन्होंने विभागीय अधिकारियों को निर्देश देते हुए इस परियोजना की समीक्षा करने की बात भी कही है कि क्यों और किस स्तर पर इस परियोजना को बंद किया गया। वहीँ वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत के अनुसार अब आगे इस मुहिम को कैसे बढ़ाया जा सकता है, इसके लिए भी समीक्षा प्रारंभ कर दिया गया है।