आपदा प्रभावितों को सर्दी की ठिठुरन और रात काटनी हुई मुश्किल

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coldदेहरादून । सर्दी शुरू होते ही  घनसाली (टिहरी) इलाके के कोठियाड़ा के आपदा प्रभावितों की मुश्किलें बढ़ने लगी है। आपदा प्रभावित 72 परिवार छह माह से बारात घर, पंचायत और स्कूल में बनाए राहत शिविर में शरणार्थियों सा जीवन बिताने को मजबूर हैं। सीएम की घोषणा के बाद भी प्रभावितों को दो लाख की भवन निर्माण सहायता व भूमि नहीं मिल पाई है।

भिलंगना ब्लाक के केमर पट्टी के अलग-अलग स्थानों पर 28 मई को बादल फटने से कोठियाड़ा, गनगर, केमरा, सिल्यारा गांवों में मलबा, पत्थर आने से डेढ़ सौ आवासीय मकान जमीदोज हो गए थे। इनमें सबसे ज्यादा कोठियाडा गांव के 72 परिवार प्रभावित हुए। तब प्रशासन ने ग्रामीणों को गांव के स्कूल, पंचायत और बारात घर ठहरा कर तत्कालिक सहायता के रूप में एक लाख नौ-नौ हजार देकर जल्द पुनर्वास का भरोसा दिया था। इसके बाद गांव पहुंचे सीएम हरीश रावत ने प्रभावित परिवारों को भवन निर्माण के लिए दो-दो लाख की आर्थिक सहायता देने का आश्वासन देकर जिला प्रशासन को गांव के समीप गवाणा तोक में पुनर्वास करने के निर्देश दिए थे। आठ अक्तूबर को केंद्रीय टीम ने भी गांव का दौराकर प्रभावितों को पुनर्वास की उम्मीद जगाई थी, लेकिन छह माह बाद भी पुनर्वास को कोई भी कदम नहीं उठाए गए। जिससे प्रभावित अस्थायी रैन बसेरों में शरणार्थियों से जीवन जीने को मजबूर हैं। प्रभावित सुंदर लाल जोशी, लाखीराम, धनीराम, कमला देवी, कमली देवी, उमा देवी, संपदा देवी आदि का कहना है कि सीएम की घोषणा पर भी दो-दो लाख की आर्थिक सहायता नहीं मिली है। कहा कि सर्दी में खास तौर पर बच्चों एवं बुजुर्गों को दिक्कतें उठानी पड़ रही है।

गर्म कपड़े तक नहीं,सर्दी से बचने को
दो बच्चों के साथ चार साल से टीन शेड में जीवन यापन कर रही प्रभावित

ऊखीमठ। पति होते तो कहीं पर भी सिर छुपाने के इंतजाम कर लेते, लेकिन दो अबोध बच्चों के साथ कहां जाऊं। ठंड से बचने के लिए अन्य व्यवस्था नहीं होने से टीन शेड में दिन कट रहे हैं। ये शब्द चार वर्ष पूर्व ऊखीमठ की आपदा में अपने पति खो चुकी सुनीता देवी के हैं, जिसे आज तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिला है।

13/14 सितंबर 2012 को ऊखीमठ से लगे चुन्नी, मंगोली, प्रेम नगर, ब्राह्मखोली गांवों में हुई तबाही में सुनीता देवी का पति मुकेश लाल भी काल का ग्रास बन गया था। तब से वह अपने दो बच्चों आदि व मिष्ठी के साथ संघर्षपूर्ण जीवन जी रही है। सामाजिक संस्था द्वारा बनाए गए टीन शेड पर बच्चों के साथ रह रही सुनीता के पास गर्म कपड़े तक नहीं है। सुनीता बतातीं हैं कि रात को पाला गिरने से टीन शेड के अंदर ओंस टपक रही है। सुनीता को नगर पंचायत ने भी राजीव गांधी आवास योजना का लाभ नहीं दिया। वहीं, प्रभावित तुंगलेश्वरी देवी भी दो बच्चों और वृद्ध पिता व परिवार के साथ चार वर्ष से टीन शेड में जीवन यापन कर रही है।

प्रभावित चार साल से अभी भी जल विद्युत कालोनी में कर रहे जीवन यापन 

उत्तरकाशी : जिला आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील जिलों में से उत्तरकाशी जिला एक है। यहां 2012-13 में आई आपदा में जान-माल का काफी नुकसान हुआ। हालांकि प्रशासन ने अस्थायी तौर पर बेघर लोगों की व्यवस्था की है, लेकिन आज तक लोगों को अपनी छत नहीं मिल पाई है। वर्ष 2012-13 में आपदा से जिले में 120 भवन पूर्ण रूप से, 93 तीक्ष्ण और 98 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए। इसके अलावा भटवाड़ी में पांच आवासीय कच्चे मकान तबाह हुए। वर्ष 2012 में भटवाड़ी ब्लॉक के असी गंगाघाटी में आधा दर्जन के करीब गांव में बाढ़ आने के कारण काफी क्षति पहुंची। गंगोरी में 20 परिवार बेघर हो गए।

इसके अलावा नाल्ड, उतरों, अगोड़ा, दंदालका, सेकू, रवाड़ा, चींवा बस्ती आदि जगहों पर लोगों के खेत तबाह हो गए। इसके अलावा पैदल चलने वाले रास्ते भी बह गए। भटवाड़ी में करीब दो दर्जन परिवारों को जल विद्युत निगम और सिंचाई विभाग की कालोनी में अस्थायी तौर पर शिफ्ट किया गया। इसके अलावा गंगोरी में बेघर हुए परिवारों को ऊर्जा निगम की कॉलोनी में शिफ्ट किया गया, जिन्हें आज भी आशियाना नहीं मिल पाया है। हालांकि जिला आपदा प्रबंधक अधिकारी देवेंद्र पेटवाल की मानें तो आपदा के दौरान 296 घर बनाए गए थे, जिनमें से 84 ऐसे परिवारों को घर दिए गए जिनके पास वैकल्पिक घर नहीं थे।