देहरादून। राज्य की चौथी विधानसभा चुनाव नतीजों ने प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का राजनैतिक भविष्य दोराहे पर ला खड़ा कर दिया है। उत्तराखंड में पार्टी ने मात्र हरीश रावत के चेहरे पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। पार्टी नेताओं को हरीश रावत की राजनैतिक चाल का अनुमान भली भांति था, इसलिए चुनावी प्रचार प्रसार से लेकर पार्टी प्रत्याशियों के चयन तक में हरीश रावत की पूरी दखलअंदाजी रही। विधानसभा चुनाव के जो परिणाम निकलकर सामने आए, स्वंय हरीश रावत को भी ऐसा भान कतई नहीं होगा। बहरहाल उत्तराखंड विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद कांगे्रस के कई नेताओं का राजनैतिक भविष्य डगमगाता दिखाई दे रहा है।
विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांगे्रस में जिनका राजनैतिक भविष्य धुंधला नजर आ रहा, उसमें कार्यवाहक मुख्यमंत्री हरीश रावत का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि आलाकमान का फैसला आगे क्या होता है। क्या आलाकमान फिर से हरीश रावत को पार्टी और संगठन को खड़ा करने की जिम्मेदारी दे सकता है।
फिलहाल तो इस बात की संभावना क्षीण ही है, कारण कि हरीश रावत दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हारकर विधानसभा की सदस्यता की पात्रता खो चुके हैं। ऐसे में हरीश रावत के सामने खुद के राजनैतिक भविष्य को बरकरार रखने की बड़ी चुनौती होगी। उम्र के जिस पड़ाव में हरीश रावत पहुंच चुके हैं, वहां से आगे की राजनैतिक राह कांटो भरी नजर आती है। वैसे हरीश रावत को जानने वाले लोग यह भी जानते हैं कि हार से हरीश रावत निराश नहीं होते बल्कि संघर्ष के लिए और मजबूत होते आये हैं। अल्मोड़ा में दशकों तक कोई जीत हासिल नहीं हुई तो 2009 में हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़े और जीतकर केंद्र में मंत्री बने। लेकिन यहां पर यह भी जानना जरुरी है कि 2009 से लेकर अब तक 8 साल का समय बीत चुका है।
2009 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार से संजीवनी पाकर सत्ता के गलियारों में लौटे हरीश रावत की हरिद्वार में ही बुरी गत हुई है। किसी मुख्यमंत्री के राजनीतिक जीवन में इससे बुरा वक्त क्या होगा कि अलग-अलग जिलों की दो सीटों से चुनाव लड़े और दोनों ही सीटें हार गए। एक फरवरी 2014 को सूबे का मुखिया बनने के बाद से ही पहाड़ और पहाड़ी हितों की बात करने वाले हरीश रावत ने चुनाव लडऩे के लिए मैदानी जिलों की दो सीटों को चुना और हैरान करने वाली नतीजे आए, जिसमें दोनों ही सीटों से हरीश रावत का हार का मुंह देखना पड़ा।
यहां यह कहना भी जरूरी होगा कि हरीश रावत ने ऐसे समय मुख्यमंत्री की कमान संभाली थी, जबकि प्रदेश आपदा के दंश से बेहाल था। आज प्रदेश में चारधाम यात्रा बदस्तूर जारी है तो इसका सीधा श्रेय हरीश रावत के कुशल नेतृत्व को दिया जा सकता है। मगर कहते हैं न कि राजनीति और शतरंज की हर एक चाल सोच समझकर चलनी चाहिए। ऐसा न करने पर जीती बाजी हाथ से निकल जाया करती है।