उत्तराखण्ड के कुमाऊँ का पौराणिक त्योहार है हरेला

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हरेला घर में सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है

हरेला के लिए पत्तों से बनी टोकरी में मिट्टी डालकर उसे मंदिर के पास रख कर सात अनाज बो दिए जाते हैं 

हंसा अमोला 
हरेला: कुमाऊं में हरेला पर्व धार्मिक व पौराणिक महत्व है। श्रावण मास के प्रथम दिन मनाए जाने वाले इस त्यौहार को कर्क संक्रांति के रूप से भी जाना जाता है। इसे कर्क संक्रांति व श्रावण संक्रांति भी कहा जाता है। वैसे तो कुमाऊं में हरेला पर्व साल में तीन बार चैत्र, श्रावण व आश्विन माह के अंतिम दिन दशहरे पर मनाया जाता है, लेकिन श्रावण मास के हरेले पर्व का खास कुमाऊँ में खासा महत्व है। उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद अब यह त्यौहार समूचे उत्तराखंड का लोकप्रिय त्यौहार बन गया है। इस दिन राज्य में राज्य सरकार सहित सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाते हैं जो बरसात की समाप्ति तक चलता है। 
हरेला: श्रावण मास में पावन पर्व हरेला उत्तराखंड में धूमधाम से मनाया जाता है। आज से इस पर्व की शुरुआत हो गई है। मानव और प्रकृति के परस्पर प्रेम को दर्शाता यह पर्व हरियाली का प्रतीक है। सावन लगने से नौ दिन पहले बोई जाने वाली हरियाली को दसवें दिन काटा जाता है। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा आज भी कायम है। तिमल जैसे व आदि पेड़ो के पत्तों से बनी टोकरी में मिट्टी डालकर उसे मंदिर के पास रख कर सात अनाज बो दिए जाते हैं।
जिसमें गेहूं, जौ, मक्का, उड़द, गहत, सरसों व भट्ट को शामिल किया जाता है। सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा जाता है, और नौंवे दिन गुड़ाई की जाती है। जिसके बाद दसवें दिन हरेला मनाया जाता है।
हरियाली का प्रतीक है हरेला: ग्रीष्मकाल में पेड़-पौधों सूख चुके होते हैं। जिसके बाद सावन में रिमझिम बारिश के साथ ही बेजान पेड़-पौधे खिल उठते हैं। चारों ओर हरियाली छा जाती है। यही कारण है कि प्राचीन समय से ही इस मौसम में हरेला मनाने की परंपरा रही है। आज के समय में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से इस त्योहार की महत्ता और बढ़ गई है। धीरे-धीरे इस त्योहार का महत्व बढ़ता जा रहा है।
हरेला मान्यता : हरेला पर्व घर में सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलों को नुकसान ना हो। माना जाता है कि जिसका हरेला जितना बड़ा होगा उसे कृषि में उतना ही फायदा होगा। वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन कई गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता हैं। गांव के लोगों द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोया जाती है। और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं।
जब किसी को हरेला लगया जाता है तो उसे आशिर्वाद में हमारी दूध बोली में यह गीत रूपी शब्दों को बोला जाता है। 
जी रये जागि रये , यो दिन-मास-बार भेटनै रये
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव होये
सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि है जो
दूब जस पंगुरिये, हिमालय में ह्यो
गंगा ज्यू में पाणी रौन तक बचि रये
गीत का अर्थ जानिए
तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार-माह आपके जीवन में आता रहे। धरती जैसा विस्तार और आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो। सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले। वंश-परिवार दूब घास की तरह पनपे। हिमालय में हिम और गंगा में पानी बहने तक आप इस संसार में बने रहें।