गढ़वाली फिल्म ‘मेरू गौं’ प्रिमियर फिल्म समीक्षकों के मध्य

गांव मे पलायन से उपजी परिवार के आंतरिक संबंधों के दुःख-दर्द की मार्मिक पीड़ा फिल्म की कहानी का है मुख्य आधार

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परिसीमन से पहाड़ी राज्य कल्पना की सोच का खोखलापन

वीरान होते गांवो की लोकसंस्कृति की धारा को थामे लोक कलाकारों की दुर्दशा

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। गंगोत्री फिल्म के बैनर तले निर्मात्री कृष्णा गौड़ निर्मित गढ़वाली फिल्म ‘मेरू गौ’ लेखक व निर्देशक अनुज जोशी का प्रिमियर गढ़वाल भवन सभागार मे फिल्म समीक्षकों, फिल्म व रंगमंच कलाकारों, वरिष्ठ पत्रकारों, साहित्यकारो, व्यवसाइयों व प्रबुद्ध कला प्रेमियों के मध्य प्रदर्शित की गई। उद्देश्य रहा प्रबुद्ध जनो से फिल्म की तकनीक, कहानी, संवाद इत्यादि पर सारगर्भित चर्चा कर फिल्म को सैन्सर बोर्ड की स्वीकृति हेतु भेजना है।

गढ़वाली बोली की इस ठीक-ठाक फिल्म का फिल्मांकन गढ़वाल मंडल के गांवो मे किया गया है। फिल्म समयावधि एक घंटा पैतालीस मिनट है। फिल्म के महिला-पुरुष कलाकारों की कुल संख्या अठारह के करीब है। फिल्म के लगभग सभी पात्र दिल्ली रंगमंच से जुड़े शौकिया कलाकार हैं। नोकरी-पेशा वाले हैं। मेकअप सुरेंद्र व फिल्माए गए मात्र दो गीत जितेंद्र पवार के हैं। फिल्म संगीत संजय कुमौला का है।

फिल्म लेखक के ज्ञान व ऐतिहासिक तथ्य आधारित आर्ट फिल्म के नाम से समीक्षकों के मध्य प्रदर्शित की गई ।

गांव मे पलायन से उपजी परिवार के आंतरिक संबंधों के दुःख-दर्द की मार्मिक पीड़ा फिल्म की कहानी का मुख्य आधार है। उत्तराखंड राज्य आंदोलन के परिणाम स्वरूप निर्मित राज्य मे एक ही गांव के चंद बचे-खुचे लोगों के मध्य भिन्न-भिन्न विचार धारा का बोल-बाला। स्वास्थ व शिक्षा सुविधाओं के अभाव की पीड़ा। परिसिमन से पहाड़ी राज्य कल्पना की सोच का खोखलापन। वीरान होते गांवो की लोकसंस्कृति की धारा को थामे लोक कलाकारों की दुर्दशा इत्यादि को फिल्म पटकथा का आधार बनाया गया है।

फिल्म प्रदर्शन के बाद फिल्म लेखक-निर्देशक अनुज जोशी सभागार के मंच पर मुखातिब हुए। फिल्म लाइन के अपने अनुभव साझा किए। अवगत कराया, अनेकों फिल्मों के निर्माण के बाद पुनः दस वर्ष बाद उन्होंने प्रदर्शित इस फिल्म का लेखन व निर्देशन उत्तराखंड के गांवो से हो रहे पलायन, राज्य निर्माण के लिए किए गए आंदोलन के प्रतिफल, गैरसैण राजधानी की मांग इत्यादि पर उत्तराखंड जनमानस की पीड़ा को स्वयं 2अक्टूबर 1994 को लाठियां खाऐ आंदोलनकारी होने व गैरसैण राजधानी की लगातार हो रही अवहेलना की पीड़ा को फिल्म मे रचित कथानक के माध्यम से साझा किया है। व्यक्त किया फिल्म निर्माण मे कुछ लिमिटेशंस होती हैं, फिल्म विधा का व्याकरण तोड़ कर फिल्म बनाई है। कहा, राजेश गौड जैसे अभिनेताओं को देख फिल्म बनाने का साहस जुटा पाया हूं।

मंच संचालन कर रहे अजय सिंह बिष्ट ने देश के सु-विख्यात फिल्म समीक्षक तथा वर्ष 2018 के संगीत नाटक अकादमी पुरूस्कार विजेता दिवान सिंह बजेली को मंच पर फिल्म समीक्षा हेतु आमंत्रित किया।

दिवान सिंह बजेली ने फिल्म समीक्षा मे उत्तराखंड फिल्म निर्माण मे वित्त की समस्या को सबसे बड़ा व्यवधान बताते हुए सभी कलाकारों के अभिनय की प्रशंसा की। फिल्म की पटकथा को अपने जीवन से जोड़ उसे स्वयं की व्यथा बताया। व्यक्त किया जीवन मे सैकड़ो फिल्म देखी समीक्षा की, निर्देशक अनुज जोशी ने अपने हिसाब से फिल्म बनाई, अच्छा प्रयास है। उन्होंने कहा फिल्म डॉक्यूमैंन्ट्री का फोर्म ले लेती है। फिल्म निर्देशन व कैमरा मैंन ने अच्छा काम किया है। फिल्म अंतरद्वन्द को अंतिम समय तक बांधे रखती है। संवाद ठीक-ठाक हैं।

नाट्य निर्देशक हरि सेमवाल व डॉ स्वर्ण रावत, चंद्रमोहन पपनैं (साहित्यकार- लेखक- रंगकर्मी), चंद्रकांत नेगी, ओ पी डिमरी, प्रोफेसर डॉ पवन मैठाणी, लक्ष्मी रावत (रंगकर्मी), भगवान चंद्र, सुषमा जुगरान ध्यानी (वरिष्ठ पत्रकार), हर्षपाल चौधरी, हरीश लखेड़ा (वरिष्ठ पत्रकार), हरिपाल रावत (राजनीतिज्ञ), देवसिंह रावत (संपादक प्यारा उत्तराखंड), दिनेश ध्यानी (गढ़वाली साहित्यकार) इत्यादि ने फिल्म समीक्षा करते हुए फिल्म के कथानक व अभिनेताओ द्वारा व्यक्त संवादों को ठीक-ठाक व मेकअप मे जर्क बताया।फिल्मांकन मे पहाड़ी जन जीवन के मौलिक दर्शन कम दिखाने की बात कही। व्यक्त किया फिल्म जल्द बांजी मे बनाई गई है, जो व्यावसायिक्ता से दूर है।

समीक्षकों ने समीक्षा मे व्यक्त किया कुछ संवाद दिल को छू लेने वाले थे। लेखन, निर्देशन प्रभावशाली था जो सन्देश युक्त है। संवादों मे गैरसैण की बार बार पुनरावर्ती खल रही थी, जिसे रोका जा सकता था।

उत्तराखंड के परिदृश्य मे विषय प्रदर्शन अवलोकन बढ़िया था। उत्तराखंड के प्रत्येक विषय को फिल्म मे उठाने का प्रयास किया गया है। समस्याऐ ज्यादा पात्र कम थे। फिल्म चुनोती स्वीकार कर बनाई गई है। प्रत्येक कलाकार को बराबर का मौका दिया जाना व प्रत्येक किरदार का अंतिम समय तक फिल्म मे बने रहना लेखक-निर्देशक की खूबी मे समीक्षकों द्वारा समीक्षा मे गिना गया।

गढ़वाली बोली की फिल्म मे कही-कही व्यक्त संवादो मे हिंदी की झलक दृष्टिगत थी। समीक्षकों ने कहा परिसीमन का मुद्दा समसामयिक है, मुद्दा अच्छा उछाला है। फिल्म के व्यवसायीकरण पर ध्यान देना होगा। फिल्म की सार्थकता यही होगी कि मुद्दा राज्य व केंद्र सरकार तक जाए।

समीक्षा मे समीक्षकों ने फिल्म निर्मात्री के साहस, लेखक-निर्देशक की बुद्धिमता, कलाकारों की स्तरीय अदाकारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। व्यक्त किया फिल्म वर्तमान पीढ़ी को रास्ता दिखाती है। जनता को फिल्म देखने को प्रोत्साहित करना चाहिए। कुछ समीक्षकों ने राय व्यक्त की फिल्म हिंदी मे भी डब की जाए। फिल्म के माध्यम से समाज को दिशा देने का कार्य किया गया है, जो सराहनीय है। फिल्म मे उठाया गया गैरसैण मुद्दा उत्तराखंड की लोक संस्कृति को बचाने का प्रयास है।

लेखक निर्देशक अनुज जोशी ने सभी समीक्षकों की समीक्षा का सारगर्भित जवाब दिया।

‘मेरू गौ’ गढ़वाली फिल्म के प्रिमियर व फिल्म समीक्षा की समाप्ति से पूर्व गढवाल सभा के अध्यक्ष मोहब्बत सिंह राणा ने अपने संबोधन मे व्यक्त किया, गढ़वाल भवन के द्वार उत्तराखंड की लोक संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित सभी संस्थाओं व व्यक्तियों के लिए सदा खुले हैं, गढ़वाल सभा सभी का अभिनन्दन करती है।

आयोजन के अंत मे मंच पर फिल्म ‘मेरू गौ’ कलाकारों राजेश गौड़, सुमन गौड़, रमेश ठण्डरियाल, गोकुल पवार, गीता उनियाल, विकास उनियाल, रुद्राक्ष (बाल कलाकार), श्रेया उनियाल (बाल कलाकार), खुशाल सिंह बिष्ट, सुशीला रावत, गिरधारी रावत, अजय सिंह बिष्ट, डॉ सतीश कालेश्वरी, कुसुम चौहान, कुलदीप असवाल, मदन सिंह, गोकुल पवार तथा तकनीशियनों मे सुरेन्द्र (मेकअप), राजेंद्र रतूड़ी (कैमरा मैंन), जितेंद्र पवार (गीतकार), संजय कुमौला (संगीतकार), फिल्म निर्मात्री कृष्णा गौड़ व लेखक-निर्देशक अनुज जोशी को मंच पर मंच संचालक द्वारा आमंत्रित कर पात्र परिचय कराया गया। आमंत्रित सभी समीक्षकों ने तालियों की गडगड़ाहट व हर्षध्वनि कर फिल्म से जुड़े सभी कलाकारों के उच्च कोटि के अभिनय, फिल्मांकन, गीत गायन, लेखन व निर्देशन पर भविष्य की शुभ मंगल कामनाओ के साथ आमजन के बीच फिल्म सफलता की कामना की।

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