फूल संक्रांति का त्योहार राज्य भर में धूमधाम से मनाया

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घोगा देवता की अनोखी पूजा शुरू

तो कहीं घर की देहरी पर बच्चों ने बिखेरे फूल

फूल देई छम्मा देई, दैणी द्वार भर भंकार 

पौड़ी गढ़वाल। मंडल मुख्यालय पौड़ी सहित समूचे गढ़वाल में घोगा देवता की अनोखी पूजा परंपरा शुरू हो गई हैं। जिसमें फुलारी बच्चे विभिन्न प्रकार के फूल चुनकर सात दिनों तक गांव के हर घर की देहरी में सजाते हैं। आठवें दिन घर-घर जाकर अपना उपहार लाते हैं।

मंगलवार को मंडल मुख्यालय सहित गढ़वाल के गांवों में फूलदेई का त्यौहार फुलारियों के कलरव से शुरू हो गया। गढ़वाल में फूलदेई को फूल संक्रात भी कहते हैं। जिसमें फुलारी पंय्या, फ्योंली, सिलपोड़ी, समोया, बुरांश आदि फूलों को ङ्क्षरगाल की कंडिय़ों में चुनकर सुबह-सुबह गांव के हर घर की देहरी में सजाते हैं। साथ ही फुलारी फुल-फुल खाजा गुल-गुल चौंल, डेली मा बैठी राजा, ल्यौ माता मेरा बांटा का खाजा, चल फुलारी फूलों में सोदा-सोदा फूल बिण्योला आदि मधुर गीत के माध्यम से घोगा देवता का आह्वान करते हैं।

यह अनोखी परंपरा सात दिनों तक चलती रहती है। लोग आठवें दिन फुलारियों को चावल, गुड, चौलाई के लड्डू, चीनी आदि खाद्य सामग्री उपहार के रुप में देते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सत्यपाल ङ्क्षसह नेगी ने बताया कि फूलदेई उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की पारंपरिक विरासत हैं। जिसमें फुलारी बसंत के आगमन का संदेश देते हैं। लोग बसंत के स्वागत में फुलारियों को खूब उपहार देकर समृद्धि की कामना करते हैं।

वहीँ  चमोली जिले में फूल संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों ने घरों की देहरी पर जाकर बुरांश, फ्यूंली समेत अन्य फूल डाले गए। इस दौरान फूल संक्रांति के पारंपरिक गीत भी गाए गए।

इस पर्व से पहले ही बच्चों द्वारा जंगलों में जाकर फूल इकठ्ठा कर दिए गए थे। फूल संक्रांति के दिन भोर में ही उठने के बाद बच्चे बारी बारी से गांवों के प्रत्येक घरों में जाकर बुरांश, फ्यूंली, पैंया समेत अन्य प्रजाति के फूल डालने प्रारंभ किए। एक चक्कर फूल डालने के बाद फिर लोगों द्वारा फूल डालने वाले बच्चों को गुड़, चना, मिठाइयां दी गई। जिले में दो दिनों तक लगातार बच्चे घरों की देहरी पर फूल डालकर फूल संक्रांति के पारंपरिक गीतों को गाते हैं। जिले के मंदिरों में भी जाकर फूल डाले गए।

 गढ़वाल में फूलदेई का त्योहार धार्मिक परंपरा के अनुसार धूमधाम से मनाया गया। कर्णप्रयाग, सिमली, गौचर, गोपेश्वर, पोखरी, आदिबदरी, नारायणबगड़, देवाल, थराली, लंगासू आदि क्षेत्रों में बच्चों ने घरों के दरवाजों पर फूल बिखेरे तथा शुभकामनाएं दी।कर्णप्रयाग में बच्चे सबसे पहले उमा देवी मन्दिर में गये, पूजा की और मन्दिर की देहरी पर फूल बिखेरे। उसके बाद फूलदेई सक्रांति पर गांवों तथा शहरों में छोटे-छोटे बच्चों ने एक दिन पहले से डलिया में इक_ा किये हुए फ्ंयूली, बुरांश, मखमल, गुलाब आदि के फूलों को लोगों के घरों की चौखट पर बिखेरते हुए बसंत के गीत गाकर शुभकामनाएं दी। फूलदेई दुनियां में अकेला ऐसा त्योहार है जो केवल बच्चे बनाते हैं।

यह उत्सव सिर्फ उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं के गांवों में ही मनाया जाता है। जैसे ही चैत्र माह का आगमन होता है तो पूरा पहाड़ बसंत की दस्तक सुनने लगता है। बच्चे इस त्योहार को फूलदेई सक्रांति के नाम से मनाते हैं।फूलदेई के लिए बच्चों में रहा उत्साहफूलदेई गढ़वाल और कुमाऊं के प्रत्येक घर-गांव में धूमधाम से मनाई जाती है। यह त्योहार सिर्फ बसंत के आगमन की सूचना ही नहीं देता बल्कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बच्चों का त्योहार है और इसमें सुबह-सबेरे घरों के दरवाजे पर बंसत के गीत गाकर बच्चे रंग-बिरंगे फूल डालकर सुख समृद्धि का वरदान देते हैं। बच्चों को महिलाएं चावल, दाल, गुड़ भेंट स्वरूप देते हैं। 

वहीँ नैनीताल जिला मुख्यालय समेत आस-पास के क्षेत्रों में ऋतु पर्व फूलदेई पारंपरिक रीति रिवाज के साथ मनाया गया। बच्चों ने घरों में जाकर फूल देइ छम्मा देई…..गाकर मंगल कामना की, तो बदले में उन्हें गुड़ इत्यादि दिया गया। कुमाऊं में चैत्र माह के पहले दिन ऋतु परिवर्तन का पर्व फूलदेई धूमधाम से मनाया जाता है। ये पर्व एक संस्कृति को उजागर करता हैं, तो दूसरी ओर प्रकृति के प्रति पहाड़ के लोगों के सम्मान और प्यार को भी दर्शाते हैं।

इसके अलावा पहाड़ की परंपराओं को कायम रखने के लिए भी ये पर्व-त्योहार खास हैं। इस त्योहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है, इसका सीधा संबंध प्रकृति से है। इस समय चारों ओर छाई हरियाली और नाना प्रकार के खिले फूल प्रकृति के यौवन में चार चांद लगाते हैं। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने से ही नव वर्ष शुरू होता है। इस नव वर्ष के स्वागत के लिए खेतों में सरसों खिली है तो पेड़ों में फूल भी आने लगे हैं।

चैत्र महीने के पहले दिन बच्चे लोगों के घरों में जाकर उनकी दहलीज पर फूल चढ़ाते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं। इसके बदले में उन्हें परिवार के लोग गुड़, चावल व रुपये देते हैं। मेष संक्रांति कुमाऊं में फूल संक्रांति के नाम से भी जानी जाती है। फूलदेई की परंपरा को मनाने के लिए चैत्र महीने के पहले दिन से एक दिन पहने ही बच्चे फूल चुनकर ले आते हैं और नव वर्ष के पहले दिन बच्चे इसे टोकरी व थाली में लेकर घर-घर पहुंचते हैं। इस दिन लोगों के घरों से मिले चावल से शाम को हलवा भी बनाया जाता है।