देहरादून : प्रदेश में सत्ता का ताज किसके सिर सजेगा यह तो आज दोपहर तक ही पता चल पाएगा लेकिन नतीजों को लेकर दोनों प्रमुख दल आशान्वित हैं। एग्जिट पोल में भाजपा को बढ़त मिलने की बात कहे जाने के बावजूद जानकार प्रदेश में कड़ी टक्कर मान रहे हैं। दोनों ही दलों के रणनीतिकार भी इस बात को समझ रहे हैं। यही कारण है कि इनकी नजरें अब विभिन्न सीटों पर मजबूत माने जाने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों पर टिक गई है। दोनों ही दलों के नेता इनसे संपर्क साध कर अपने पाले में लाने की तैयारी मे हैं।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव की प्रदेश में मौजूदा चुनावों को लेकर अभी तक तस्वीर साफ नहीं है। एजेंसियों के एग्जिट पोल में भी अलग-अलग आंकड़े दिखाए जा रहे हैं। कुछ ने प्रदेश में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की बात भी कही है।
ऐसे में अब सबकी नजरें निर्दलीय प्रत्याशियों पर टिकी हुई हैं। मौजूदा विधानसभा की बात करें तो कांग्रेस ने 2012 के चुनावों में भाजपा से मात्र एक सीट अधिक लाकर निर्दलीयों के बूते ही प्रदेश में सरकार बनाई थी। ऐसी ही स्थिति इस बार आने की सूरत में निर्दलीयों की भूमिका अहम हो जाएगी। ऐसे में अब निर्दलीयों को अपने पाले में लाने के लिए कोशिशें शुरू हो चुकी हैं।
दरअसल, चुनावों के लिए दोनों दलों की ओर से किए गए टिकट वितरण के बाद कई सीटें ऐसी रही, जहां दोनों दलों के नेताओं ने बगावती तेवर अपना लिए। मतदान के बाद मिले रुझान में कई सीटों पर इन निर्दलीयों को बहुत मजबूत स्थिति में देखा जा रहा है। जाहिर है कि प्रदेश में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की सूरत में सत्ता की चाबी निर्दलीयों के हाथ मे रहेगी। इस स्थिति को भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकार भली भांति समझ रहे हैं।
चर्चाएं तो यहां तक थी कि चुनाव के दौरान दोनों दलों के कुछ नेताओं ने इन निर्दलीयों की चुनाव लडऩे में मदद भी की थी। सूत्रों की मानें तो दोनों दलों के ये नेता अब भी निर्दलीयों के लगातार संपर्क में है। इन्हें अपने पाले में लाने के लिए अभी से प्रलोभन भी दिए जा रहे हैं। मकसद यह कि जरूरत पडऩे पर इनका साथ लेकर सत्ता पर कब्जा किया जा सके।