देहरादून। उत्तराखंड की लोकभाषाओं के पक्ष में धाद संस्था पचास हजार लोगों के हस्ताक्षर जुटाने को अभियान चलाएगी। ये हस्ताक्षर मातृभाषा संरक्षण के समर्थन में प्रधानमंत्री को भेजे जाएंगे। इसकी शुरूआत मंगलवार को अंर्तराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के दिन से हाथीबडक़ला स्थित सर्वे प्रेक्षागृह में जाएगी। जहां धाद लोकभाषाओं को लेकर संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। प्रेस क्लब में आयोजित गोष्ठी में धाद के संस्थापक लोकेश नवानी ने बताया कि यूनेस्को ने 1999 में दुनिया की अनेक संकटग्रस्त भाषाओं को बचाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया था।
इसके तहत 21 फरवरी को अंर्तराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया गया। यह दिन बांग्ला भाषा के पक्ष में ढाका में चले आंदोलन की स्मृति में मनाया जाता है। धाद संस्था 2010 से लगातार मातृभाषा दिवस पर आयोजन करती आ रही है। 2009 में जारी यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार जिन भाषाओं के अस्तित्व पर खतरा है उनमें गढ़वाली व कुमाऊंनी भी एक है। श्रीनगर व पिथौरागढ़ की चुनावी सभाओं में प्रधानमंत्री मोदी ने आंचलिक बोली का प्रयोग कर भाषाई आंदोलन से जुड़े पैरोकारों का मनोबल बढ़ाया है।
हालांकि इसे मंजिल तभी मिलेगी जब ये लोकभाषा के रुप में संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल की जाएं। सचिव तन्मय ममगांई ने बताया कि प्रधानमंत्री को प्रेषित हस्ताक्षरों के साथ एक मांगपत्र भी भेजा जाएगा जिसमें लोकभाषा संरक्षण के लिए राज्य में एक दिन लोकभाषा दिवस के रूप में मनाने, स्कूली पाठ्यक्रम में तीस प्रतिशत स्थानीय साहित्य, इतिहास, संस्कृति के विषय शामिल करने, लोकसेवा परीक्षाओं में राज्य से जुड़े प्रश्न भी शामिल करने की मांग की जाएगी। मौके पर लोक भाषा एकांश के संयोजक शांति प्रसाद जिज्ञासू भी मौजूद थे।