हिन्दी भाषी राज्यों के उच्च न्यायालयों में हिन्दी के जानकर जजों की नियुक्ति की मांग

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DEHRADUN : उत्तराखंड हिमालय प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान सहित हिन्दी भाषी राज्यों के उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायधीश तथा न्यायधीशां के पदों पर राष्ट्रभाषा हिन्दी के जानकर व हिन्दी में कार्य का अनुभव रखने वाले जजों की नियुक्ति की मांग राष्ट्रपति, काननू मंत्री तथा भारत के मुख्य न्यायाधीश से की गयी है। मांग करने वाली संस्था माकाक्स का मानना है कि इससे न्यायपालिका में राजभाषा हिन्दी के व्यापक प्रयोग को बल मिलेगा तथा भविष्य में सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी प्रयोग का रास्ता साफ होगा।

प्रतिष्ठित समाज सेवी संस्था मौलाना अबुल कलाम आजाद अल्पसंख्यक कल्याण समिति (माकाक्स) के केन्द्रीय अध्यक्ष तथा पिछले 20 वर्षों से देश में हिन्दी के विकास तथा व्यापक प्रयोग को संघर्षरत नदीम उद्दीन एडवोकेट ने भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, कानून मंत्री तथा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को मेल व पत्र भेजकर आम जनता के हित व न्याय व राष्ट्रभाषा के विकास के लिये यह मांग की है।

श्री नदीम के अनुसार उत्तराखंड, इलाहाबाद, पटना, राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित हिन्दी भाषी राज्यों के उच्च न्यायालयों में संविधान के अनुच्छेद 348(2) के अन्तर्गत हिन्दी के वैकाल्पिक प्रयोग को अधिकृत किया गया है लेकिन उन्हें अधिकृत होने के वर्षों बाद भी यहां हिन्दी का व्यापक प्रयोग नहीं हो पा रहा है। इसके लिये आवश्यक है कि इन न्यायालयों में जिन जजों की नियुक्ति हो वह हिन्दी के जानकर हों और उनको हिन्दी में कार्य करने का व्यापक अनुभव हो। इससे जहां इन उच्च न्यायालयों में शत-प्रतिशत हिन्दी के प्रयोग का रास्ता साफ होगा। साथ ही इनके अधीनस्थ न्यायालयों में अनाधिकृत रूप से अंग्रेजी प्रयोग पर रोक लगेगी।

श्री नदीम के अनुसार इसका एक लाभ यह भी होगा कि सेवानिवृत्ति के बाद जब यह जज इन राज्यों के आयोगों व ट्रिब्युनलों में नियुक्त होंगे तो वहां भी शत-प्रतिशत हिन्दी का प्रयोग होगा। इसके साथ ही भविष्य में सुप्रीम कोर्ट में हिन्दी प्रयोग का रास्ता साफ होगा।

श्री नदीम ने बताया कि 2011 की जनगणना के भाषा सम्बन्धी 2018 में प्रकाशित आंकड़ों से प्रमाणित हो गया है कि इन राज्यों में अंग्रेजी मातृभाषा वाले लोगों की संख्या नगण्य है। ऐसी स्थिति में चन्द लोगों की सुविधा के लिये अंग्रेजी का प्रयोग न तो न्यायसंगत है और न ही व्यवहारिक। आज इन उच्च न्यायालयों में अधिकतर मामलों में वाद कारियों को यह पता ही नहीं होता है कि उनके अधिवक्ता ने उनकी ओर से क्या लिखा है और न्यायालय में बहस में क्या कहा है। यहां तक की फैसला भी समझने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है।

अंग्रेजी में शपथ पत्र फाइल होने तथा अन्य राजकार्य हिन्दी में होने से शपथकर्ता द्वारा समझकर शपथपत्र भी फाइल नहीं हो पाते और हिन्दी की अन्य सरकारी कार्यवाही से शपथपत्र बनाने में अनावश्यक रूप से शपथपत्र व उत्तर फाइल करने में देरी होती है जो शीघ्र न्याय मिलने में एक बड़ी बाधा है।

2011 की जनगणना के 2018 में प्रकाशित भाषा संबंधी आंकड़ों के अनुसार हिन्दी भाषी राज्यों में अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या नगण्य है तो यहां की न्यायपालिका में अंग्रेजी प्रयोग का कोई औचित्य ही नहीं है। आंकड़ों के अनुसार हिमाचल प्रदेश में केवल 1043, उत्तराखंड में केवल 1385, राजस्थान में 13202, उ0प्र0 में 13085, बिहार में 4052, झारखंड में 2431, छत्तीसगढ़ में 1398, मध्यप्रदेश में 2381 लोग ही अंग्रेजी बोलने व मातृभाषा वाले है।