डोबरा चांठी पुल को लेकर कांग्रेस ने उठाए कई सवाल

पुल पर अब तक 300 करोड़ खर्च हो चुकालेकिन अब बताया जा रहा मात्र 103 करोड़ का कुल खर्च

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पहले पुल की क्षमता 18 टन बता रहे थे अब चला पता कि पुल की क्षमता तो है केवल 10 टन एक्सेल लोड

पुल के निर्माण से ही भविष्य की दुर्घटनाओं के मिलने लगे संकेत

स्वीकृत पुल  दो लेन की बजाए अब बन रहा एक लेन का पुलजो जनता के साथ है  एक बड़ा धोखा !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून । मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रचार समन्वयक और पूर्व मंत्री धीरेंद्र प्रताप और डोबरा चांटी पुल बनाओ संघर्ष समिति के संयोजक व कांग्रेस नेता राजेश्वर पैन्यूली ने डोबरा चांठी पुल के निर्माण में हो रही धांधलियों को देखते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से इस गभीर मामले में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

कांग्रेसी नेताओं ने यहां जारी बयान में इस पुल के निर्माण में हो रही निरंतर देरी और इस स्वीकृत पुल की जगह अब दो लेन की बजाए एक लेन के पुल बनाए जाने को जनता के साथ एक बड़ा धोखा बताते इस पुल की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अब तक इंजीनियर इस पुल की क्षमता 18 टन बता रहे थे परंतु अब सूचना के अधिकार से पता चला है कि पुल की क्षमता 10 टन एक्सेल लोड बताई जा रही है।

उनका कहना है कि पुल पर अब तक 300 करोड़ खर्च हो चुका है अभी सूचना का अधिकार से जुटाई गई जानकारी के अनुसार अभी तक मात्र 103 करोड़ का ही कुल खर्च ही पुल पर बताया जा रहा है। जिस तरह से भ्रामक सूचनाएं दी जा रही हैं उससे पुल की गुणवत्ता भी प्रश्नों के घेरे में आ गई है।

इनका कहना है कि वर्ष 2008 से खरीदे गए जंग लगे लोहे का इस्तेमाल अब इस पुल पर किया जा रहा है। यह लोहा कहीं पुल के भविष्य के लिए घातक साबित ना हो इस पर भी कांग्रेस के नेताओं ने संशय जताया है। प्रताप नगर क्षेत्र में आने वाले इस पुल पर वाहनों का भारी दबाव रहने वाला है। इससे साफ है मात्र 10 टन और सिंगल लेन वाला पुल क्षेत्र की समस्याओं का समाधान कर पाएगा इसमें भी संदेह है।

पुल की गुणवत्ता के चलते खतरे के आसार जताते हुए धीरेंद्र प्रताप और राजेश्वर पैन्यूली ने कहा है कि इस पुल के निर्माण से ही भविष्य की दुर्घटनाओं के संकेत मिलने लगे है। उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का इस ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा है की जनता की भलाई के लिए वह इस मामले में खामोश ना रहे और तत्कालविशेषज्ञों का एक उच्चस्तरीय अध्ययन दल मौके पर भेजकर निर्माण की संपूर्ण जानकारी एकत्रित करें जिससे भविष्य में होने वाली किसी भारी दुर्घटना से इस क्षेत्र को बचाया जा सके ।