महाराज के खिलाफ बुना गया ताना बाना
भाजपा में भी बगावत की आहट
निष्ठावान भाजपाई आये एक मंच पर
अविकल थपलियाल
देहरादून। सूत न कपास जुलाहों में लठ्ठम लट्ठा। फिर भी उत्तराखण्ड भाजपा में मुख्यमंत्री की जंग तेज हो गयी है। प्रधानमंत्री मोदी के अलावा पार्टी के कई बड़े नेताओं की उत्तराखंड के समर में तलवार भांजने के बाद टुकडों में बंटी भाजपा के अंदर संभावित दावेदार गोटियां बिछाने में जुट गए है।
हालांकि, भाजपा ने साफ तौर पर मुख्यमंत्री का चेहरा नही दिया है। लेकिन 1989 से अब तक सिर्फ लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सतपाल महाराज का इस बार विधानसभा की जंग में कूदना बाकि पार्टी नेताओं को चौंका गया।फरवरी 2014 में हरीश रावत के मुख्यमंत्री बनने के कुछ महीने बाद ही कांग्रेस को नमस्कार करने वाले महाराज ने सबसे पहले भाजपा का दामन पकड़ा। बाद में चर्चित राजनितिक खेल के बाद निष्ठावान भाजपाइयों के कड़े विरोध के बाद बहुगुणा गुट के विधायकों ने भाजपा में प्रवेश किया।
इस बीच, चुनावी रंगत के बीच मुख्यमंत्री की दौड़ में सतपाल महाराज के नाम की सर्वाधिक चर्चा होने के बाद पार्टी के निष्ठावान और नव प्रवेशी गुट ने अपने बंदोबस्त तेज कर दिए हैं। भाजपा के कुछ बड़े नेताओं ने इस मुद्दे पर अपने तीर तलवारों को धार देना शुरू कर दिया है। ये नेता किसी भी कीमत पर बाहर से आये नेताओं की संभावित ताजपोशी को रोकना चाहते है।
खबर तो यहां तक है कि चुनावी शोर के बीच कुछ निष्ठावान भाजपाइयों ने बागियों को सत्ता की दहलीज से उखाड़ फेंकने के लिए कई पहलुओं पर मंथन भी किया। यही नही, महाराज के विकल्प के तौर पर पार्टी नेता कोश्यारी, निशंक, अजय भट्ट, प्रकाश पन्त, त्रिवेंद्र रावत और केंद्रीय मंत्री अजय टम्टा के नाम ऐन मौके पर आगे करने पर भी राय बनी। ये बात भी काबिलेगौर है कि
चुनाव प्रचार के दौरान ही अमित शाह और जे पी नड्डा ने नये मुख्यमंत्री पर अलग-अलग बात कहकर इस बहस को नई उड़ान दी। नड्डा ने कहा कि विधायकों से ही मुख्यमंत्री बनेगा। नड्डा के इस स्टेटमेन्ट के बाद पुराने नेताओं में मची खलबली से हिले अमित शाह ने यह कहकर मुद्दे को ठंडा करने की कोशिश की कि मुख्यमंत्री सांसदों में से भी बन सकता है। यही नही, चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में मनोज तिवारी ने त्रिवेंद्र रावत को भावी मुख्यमंत्री घोषित कर बागी महाराज खेमे को असहज कर दिया।
फिलहाल, सालों से भाजपा की दरी बिछाने वाले नेताओं को कांग्रेस के बागियों की तेज चहलकदमी ने परेशानी में डाल दिया है । ये भी सच है कि विधानसभा चुनाव में बागियों की जीत पुराने नेताओं को भाजपा की राजनीति में हाशिये पर खड़ा कर देगी।
नतीजतन पुराने भाजपाई नेता अपने गिले शिकवे ताक पर रख बागियों के बढ़ते वर्चस्व को रोकने की जुगत में लग चुके हैं। लिहाजा कुछ सीटों पर चुनाव परिणाम उम्मीद के मुताबिक नही आएंगे।
महाराज के अलावा विजय बहुगुणा भी मौजूदा विधानसभा चुनाव में भाजपा हाईकमान के सतत संपर्क में है। कांग्रेस के जमाने से बहुगुणा गुट और महाराज खेमे की पुरानी अदावत किसी से छुपी नही है। और बहुगुणा गुट भी महाराज की किलेबन्दी को हर कीमत पर तोडना चाहेगा। सच ये भी है कि महाराज ने संघ के साथ अपने रिश्ते बेहतर बनाये हुए है। चुनाव प्रचार के दौरान ही महाराज का नागपुर जाना भी भाजपा में उनके बढ़ते वर्चस्व की ओर भी इशारा कर रहा है।
इस चुनावी संध्या पर कई बड़े महारथियों से सु सज्जित भाजपा में एक नई जंग की आहट साफ सुनाई दे रही है। चुनाव परिणाम के बाद भाजपा में बगावत का झंडा बुलंद हो जाये तो कोई आश्चर्य नही।