कद ही नहीं सीट बचाने की भी लड़ाई में भी फंसे हैं भाजपा और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष

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देहरादून : विधान सभा चुनाव प्रचार का आज आखिरी दिन चुनाव बड़ा दिलचस्प होता जा रहा है। जहां एक और भाजपा सत्ता में आने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को भुनाना चाह रही है, वहीँ कांग्रेस हरीश रावत ”हरदा” के संकल्पों के साथ मैदान मारने की कोशिश में है, लेकिन सबसे दिलचस्प लड़ाई इन दोनों पार्टियों के अध्यक्षों के वर्चस्व को लेकर हो चली है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट अपनी वर्तमान सीट रानीखेत से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीँ कांग्रेस के कप्तान किशोर उपाध्याय टिहरी को छोड़कर सहसपुर में भाग्य आज़मा रहे हैं। दोनों ही पार्टियों के कप्तानों के लिए चुनाव बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि नंबर गेम बढ़ाने लिए एक-एक सीट का जीतना जरुरी है। वहीँ अपनी पार्टियों में अपना कद बढ़ाने के लिए भी दोनों ही कप्तानों के लिए जीत भी जरूरी है। लेकिन फिलहाल दोनों की ही राह आसान नहीं लग रही है।

सूबे में भाजपा और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के सामने सीट ही नहीं कद बचाने की भी लड़ाई है, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट अपनी वर्तमान सीट रानीखेत से चुनाव लड़ रहे हैं तो वहीँ कांग्रेस के किशोर उपाध्याय टिहरी को छोड़कर सहसपुर में भाग्य आज़मा रहे हैं।

अजय की विजय ख़तरे में !
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट रानीखेत से चौथी बार विधान सभा चुनाव लड़ रहे हैं। अजय भट्ट ने साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के करण माहरा को 78 वोटों से चुनाव हराया था। ऐसे में जीत का अंतर ज्यादा नहीं होने के चलते अजय भट्ट को इस बार के चुनाव में खासी मेहनत करनी पड़ रही है। करण माहरा मुख्यमंत्री हरीश रावत के साले हैं। करन माहरा 2007 में अजय भट्ट को इसी सीट से चुनाव हरा चुके हैं। ऐसे में अजय भट्ट के लिए चुनौती कम नहीं है।
रानीखेत में माहरा परिवार का उत्तर प्रदेश के समय से दबदबा रहा है। करण माहरा के पिता गोविन्द सिंह माहरा तत्कालीन यूपी सरकार में मंत्री रहे चुके हैं। जिसके चलते प्रदेश की राजनीति में माहरा परिवार का खासा दख़ल हर दौर में रहा है। मुख्यमंत्री के ग्रह जनपद होने के चलते इस सीट पर हरीश रावत का भी पूरा जोर है। ऐसे में अजय भट्ट के लिए मुश्किलें कम नहीं हैं।

बागी बने अपने ही लोग
अजय भट्ट के लिए कांग्रेस के करन माहरा से ज्यादा चुनौती भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे प्रमोद नैनवाल हैं। नैनवाल कल तक रानीखेत में उनके सिपहसालार थे और आज उनके ही खिलाफ चुनावी ताल ठोक रहे हैं। ऐसे में अजय भट्ट को अपने ही लोगों से ज्यादा नुकसान हो रहा है। संगठन में ख़ासी पकड़ रखने वाले नैनवाल के एन मौके पर चुनावी ताल ठोकने से अजय भट्ट को बड़ा नुकसान हो रहा है। क्योंकि प्रमोद नैनवाल भाजपा के वोट बैंक में ही सेंध लगाएंगे, ऐसे में फायदा केवल कांग्रेस को होता नजर आ रहा है।

महत्वपूर्ण चुनावी समीकरण
रानीखेत विधान सभा क्षेत्र में जातीय समीकरण के आधार से 45% वोट क्षत्रिय, 24% ब्राह्मण, 3% मुस्लिम और 28% अन्य जातियों के मतदाता हैं। इस लिहाज से भी अजय भट्ट को खासा नुकसान हो सकता है, क्योंकि अजय भट्ट और प्रमोद नैनवाल दोनों ही ब्राह्मण उम्मीदवार हैं, जबकि करन माहरा क्षत्रिय उम्मीदवार होने के चलते भारी पड़ सकते हैं।

रानीखेत में ही कैद होकर रह गए अजय
कांग्रेस के दबाव के चलते भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष होने के बावजूद अजय भट्ट रानीखेत से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। ऐसे में वे प्रदेश की अन्य विधानसभा सीटों पर दूसरे उम्मीदवारों के प्रचार के लिए कम ही निकल पा रहे हैं।

डगमगाती किशोर की नैया
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय के हाल भी कुछ ऐसे ही हैं, टिहरी से विधान सभा टिकट नहीं मिलने पर किशोर उपाध्याय ऋषिकेश से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन राजपाल खरोला का पलड़ा भारी होने के चलते किशोर को अंतिम समय में सहसपुर भेजा गया। अब ऐसे में सहसपुर किशोर को और सहसपुर को किशोर कितना रास आता है, यह तो परिणाम के बाद ही पता चलेगा।

बाहरी होने का ठप्पा लगाया 
टिहरी के रहने वाले किशोर के लिए सहसपुर बिल्कुल नई सीट है। क्योंकि उन्हें इस बात का कतई इल्म नहीं था कि हाईकमान उन्हें यहाँ से चुनाव लड़ने को भी कह सकता है। ऐसे में किशोर को सहसपुर विधानसभा में बाहरी होने का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। क्योंकि सहसपुर सीट पर चुनाव लड़ रहे सभी प्रमुख उम्मीदवार सहसपुर के ही रहने वाले हैं।

कांग्रेस से बागी आर्येन्द्र शर्मा कर सकते हैं नुकसान
किशोर उपाध्याय के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2012 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे आर्येन्द्र शर्मा हैं। पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के खासमखास रहे आर्येन्द्र शर्मा का सहसपुर सीट पर दबदबा रहा है। ऐसे में किशोर के लिए आर्येन्द्र से पार पाना आसान नहीं है। इतना ही नहीं वे पिछले चार साल से सहसपुर विधानसभा क्षेत्र में काम करते आ रहे हैं जिसका लाभ उनको इस चुनाव में मिलता नज़र आ रहा है।

मुस्लिम वोट का बंटना तय
सहसपुर सीट पर 26% से ज्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं, जो कांग्रेस के साथ बसपा और सपा में भी बटते हैं। वहीँ कांग्रेस के बागी आर्येन्द्र शर्मा की भी मुस्लिम वोटर्स पर ख़ासी पकड़ है। जिसके चलते किशोर की दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं। सहसपुर सीट पर करीब 11% ब्राह्मण, 18 % ठाकुर, 18% एससी/ एसटी, 11% ओबीसी और 18% अन्य जातियों के वोटर्स हैं, जो अलग-अलग पार्टियों में बटा हुआ है।

किशोर भी सहसपुर में हुए कैद
सहसपुर में लगातार मिल रही चुनौतियों के चलते किशोर उपाध्याय यहाँ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष होने के बाउजूद किशोर अन्य उम्मीदवारों के प्रचार में नहीं जा पा रहे हैं। ऐसे में किशोर की नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल उठ रहे हैं।

अध्यक्षों का राजनीतिक भविष्य तय करेगा यह चुनाव
अजय भट्ट और किशोर उपाध्याय दोनों के ही लिए ये विधानसभा चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है। अगर ये अपनी सीट बचा पाते हैं तो पार्टी में इनका कद और बढ़ जाएगा। क्योंकि मुश्किल हालात में जीत इनके पॉलिटिकल करियर को और आगे बढ़ाएगी, लेकिन इनकी हार के साथ पार्टी में भी इनके वजूद पर सवाल खड़े हो सकते हैं। कुल मिलाकर दोनों सीटों पर और दोनों अध्यक्षों के सामने जहाँ अपने कद को बचाने का दबाव है वहीँ विधान सभा सीट जीतने का भी चैलेंज है यही कारण है यहाँ यह लड़ाई बेहद दिलचस्प मोड़ पर आ खड़ी हुई है।