बदरीनाथ धाम के कपाट हुए शीतकाल के लिए बंद

इस वर्ष की चारधाम यात्रा का हुआ समापन

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अब अगले वर्ष ग्रीष्म काल में होंगे चारों धामों के श्रद्धालु दर्शन

बदरीनाथ धाम में रिकॉर्ड 12 लाख 40 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने किए दर्शन  

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

जोशीमठ : रविवार सायं पांच बजकर 13 मिनट पर शीतकाल के लिए श्री बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ ही इस वर्ष की चार धाम यात्रा का भी समापन हो गया अब अगले वर्ष ग्रीष्म काल में एक बार फिर विधि-विधान से हिमालय में स्थित चारों धामों के श्रद्धालु दर्शन कर पाएंगे। इस साल बदरीनाथ धाम में रिकॉर्ड 12 लाख 40 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। पिछले साल यह आंकड़ा दस लाख 58 हजार 490 था। 

गौरतलब हो कि इससे पहले गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ के कपाट बंद हो चुके हैं। रविवार सायं  शीतकाल के लिए बदरीनाथ धाम के भी कपाट बंद कर दिए गए। इसी के साथ चार धाम यात्रा का भी समापन हो गया। इस दौरान करीब नौ हजार से ज्यादा श्रद्धालु इस खास पल के साक्षी बने। भगवान बदरी नारायण की चल विग्रह उत्सव डोली सोमवार को अपने शीतकालीन पूजा स्थल योगध्यान बदरी मंदिर के लिए रवाना होगी।

रविवार दोपहर डेढ़ बजे सायंकालीन पूजा संपन्न होने के बाद अपराह्न तीन बजे से कपाट बंद होने की प्रक्रिया शुरू हो गईं। इसके बाद शाम पांच बजकर 13 मिनट पर धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। इस अवसर पर पूरे मंदिर परिसर को गेंदे के फूलों से सजाया गया । 

इससे पूर्व कपाट बंद होने की प्रक्रिया के तहत शनिवार को मुख्य पुजारी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने माता लक्ष्मी की विशेष पूजा करने के बाद लक्ष्मी जी का आह्वान किया। रविवार को कपाट बंद होने से पहले माता लक्ष्मी को भगवान बदरीनाथ के मंदिर में विराजमान किया गया।

इससे पूर्व बद्रीनाथ अंदिर परिसर को 51 कुंतल गेंदे के फूलों से सजाया गया था।  बदरीनाथ धाम में तड़के भगवान बदरी-विशाल की नित्य पूजा के साथ ही अभिषेक व महाभिषेक किया। इसके बाद राजभोग व बालभोग लगाया गया। दोपहर तक आम श्रद्धालु भगवान नारायण के दर्शन करते रहे। दोपहर बाद इस वर्ष की अंतिम सायंकालीन पूजाएं शुरू हुईं। धाम के मुख्य पुजारी रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने भगवान का फूलों का शृंगार उतारने के बाद उनके शरीर पर घृत कंबल ओढ़ाई। यह घृत कंबल बदरीनाथ के पास स्थित माणा गांव की महिलाएं पारम्परिकतौर से सदियों से तैयार करती रहीं हैं। इसके बाद भगवान की डोली को मंदिर के रावल के आवास में ले जाया गया जहाँ से सोमवार सुबह पांडुकेश्वेर ले जाया जायेगा।   

इस दौरान रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी ने सखी का वेष धारण कर मां लक्ष्मी को गोद में उठाकर गर्भगृह में विराजित किया। इसके बाद बदरीनारायण के बाल सखा उद्धव व देवताओं के खजांची कुबेर को गर्भगृह से बाहर लाया गया। उद्धव रावल के निवास स्थान और कुबेर बामणी गांव के नंदा देवी मंदिर में रात्रि विश्राम करेंगे। इसके साथ ही शंकराचार्य की गद्दी भी जोशीमठ के लिए प्रस्थान करेगी। कपाटबंदी के अवसर पर गढ़वाल स्काउट के बैंड की धुनों पर माहौल भक्तिमय हो गया। इस मौके पर बदरी-केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष, सीईओ बीडी सिंह,  पूर्व काबिना मंत्री राजेंद्र भंडारी, जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी, चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया और पुलिस अधीक्षक यशवंत सिंह उपस्थित थे।

भविष्य बदरी धाम के कपाट भी हुए बंद

बदरीनाथ धाम के साथ ही सुभाई गांव स्थित भविष्य बदरी धाम के कपाट भी बंद कर दिए गए। इस मौके पर वेदपाठी, हक-हकूकधारी व बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। परंपरा के अनुसार जोशीमठ-मलारी हाईवे पर जोशीमठ से 17 किमी दूर स्थित भविष्य बदरी मंदिर के कपाट भी बदरीनाथ धाम के साथ ही खोले और बंद किए जाते हैं।

मध्यमेश्वर के 21 को बंद होंगे कपाट

पंचकेदारों में शामिल द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर के कपाट 21 नवंबर को सुबह सात बजे शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे। इसके लिए श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति तैयारियों में जुट गई है। मंदिर समिति के कार्याधिकारी एनपी जमलोकी ने बताया कि कपाटबंदी के बाद इसी दिन भगवान मध्यमेश्वर की उत्सव डोली रात्रि विश्राम के लिए अपने प्रथम पड़ाव गौंडार पहुंचेगी। 22 नवंबर को डोली राकेश्वरी मंदिर रांसी, 23 नवंबर गिरिया और 24 नवंबर को अपने शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ पहुंचेगी। अगले छह माह बाबा मध्यमेश्वर यहीं अपने भक्तों को दर्शन देंगे।