एक और सरू ताल…….!
मनोज इष्टवाल
सचमुच बिहंगम भव्य और थकान मिटा देने वाला उत्तराखंड और हिमाचल की सीमा रेखा बांटता सरू ताल पर्यटन की दृष्टि से अभूतपूर्व ! लेकिन पर्यटन और पर्यटक के राजस्व का फायदा सिर्फ हिमाचल सरकार ले रही है इधर उत्तराखंड सरकार आज भी बांये हाड़ बदन मोड़कर सोई हुई है जाने कब यह कुम्भकरणी नींद खुलेगी व हमारे उत्तराखंडी भी हिमाचली जनमानस की तरह साहसिक पर्यटन के दुनिया भर के पर्यटकों को चाईशिल टॉप ले जाकर सरू ताल के आस पास कैम्पिंग करवाकर प्रदेश सरकार के राजस्व की वृद्धि के साथ इसे अपनी रोजी-रोटी का जरिया बनायेंगे ।
शायद उत्तराखंड पर्यटन विभाग के कुछ टॉप अधिकारियों के अलावा शायद ही किसी को पता हो कि हमारे उत्तरकाशी जिले में एक नहीं बल्कि दो-दो सरू ताल हैं । प्रथम सरू ताल तो इसलिए ध्यान में होगा क्योंकि यहाँ सर-बडियार के आठ गॉव व सरनौल से हर बर्ष एक ग्रामीण जात्रा निकाली जाती है जो 4300 मीटर की उंचाई पर स्थित सरू ताल जाकर समाप्त होती है । इस ताल को कालिया नाग का जन्मस्थल माना जाता है ।
इस ताल तक पहुँचने के लिए ट्रेकर्स लगभग एक हफ्ते का समय निकालते हैं । देहरादून, मसूरी, नैनबा ग़, डामटा, नौगॉव, पुरोला, मोरी, नैटवाड़, सांकरी तक टैक्सी या अन्य वाहनों से सफ़र करने के बाद पर्यटक जूडा का तालाब,केदार कांठा बेसकैंप तक बुग्याल व जंगलों को पार कर पहुँचते हैं व एक दिन यहाँ कैंप करने के बाद अगले दिन केदारकांठा समिट पहुँचते हैं । केदारकांठा भी कैंप किया जाता है और अगले दिन डुंडा ठाक, गुजर हाट, पस्तारा होकर सरूताल की सुरम्य वादियों में पहुंचकर थकान मिटाते हैं । जहाँ ब्रह्मकमल व जयाणा/जयाड़ी के फूलों सहित विभिन्न प्रजाति के सैकड़ों पुष्प खिले होते हैं । अगस्त से अक्तूबर तक यह घाटी फूलों से लकदक रहती है । इस दौरान फूलों की सुगंध से मूर्छा आने का भी डर बना रहता है । यहाँ एक दो दिन बिताने के पश्चात अगली सुबह पर्यटक लंबा ठाक होकर सांकरी पहुँचते हैं ।
जाने क्यों उत्तराखंड सरकार इस ट्रेक रूट को देहरादून, मसूरी, नैनबाग़, डामटा, नौगॉव, बडकोट, राजगढ़ी, सरनौल तक सड़क मार्ग तय करने के बाद पहला कैंप सरनौल या राजगढ़ी नहीं करवाती क्योंकि इससे राज्य सरकार व क्षेत्रीय ग्रामीणों को दोहरे फायदे होंगे । पहला यह कि विलेज टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा और दूसरा यह कि यह राज्य सरकार की आमदनी के जरिये के साथ ग्रामीणों की आमदनी का जरिया भी बनेगा । वहीँ पर्यटकों को हमारी लोक संस्कृति में रचा बसा ग्रामीण परिवेश तो दिखने को मिलेगा ही साथ ही यहाँ से सरनौल – पौन्टी गॉव की सरहद से गुजरकर सरू ताल तक मात्र दो दिनों में आसानी से पहुंचा जा सकता है वहीँ पर्यटक यहाँ से केदारकांठा होकर या तो जरमोला धार उतर सकते हैं या फिर केदारकांठा बेस कैंप होते हुए सांकरी ।
अब आते हैं जनपद उत्तरकाशी के ही दूसरे बेहद खूबसूरत सरू ताल पर जोकि समुद्र तल 3600 मीटर की उंचाई पर स्थित है और यह ताल हिमाचल व उत्तराखंड प्रदेश की सीमायें बांटता है जिसे हिमाचल सरकार रोहडू जिला शिमला का हिस्सा मानती है और प्रतिबर्ष वहां कई साहसिक पर्यटन से जुड़ी गतिविधियाँ आयोजित करवाती है । यह जहाँ हिमाचल के पावर नदी घाटी में हैं वहीँ हिमाचल इसे चांशल दर्रे के रूप में प्रचारित कर विश्व स्तर पर इस ताल को मैप में शामिल करवा चुकी है । यही नहीं यहाँ हिमाचल सरकार हिमक्रीड़ा का आयोजन करवाकर इसे विश्व भर के पर्यटकों की नजर में शामिल करवाने का हर सम्भव प्रयास करती है ।
रोहडू से चन्द्रनाहन, चिडगॉव होकर यहाँ पहुँचने के लिए हिमाचल सरकार ने सड़क मार्ग व्यवस्थित किया है जिस से आप बहुत आसानी से 30-40 किमी । सफ़र कर पहुँच जाते हैं जबकि ट्रेकर्स चिडगॉव से जंगल मार्ग होकर ट्रेक करना पसंद करते हैं । सरू ताल के आस-पास फैले बुग्यालों को हिमाचल के लोग चान्शल कहते हैं जबकि उत्तराखंडी बंगाणी समाज इसे चाईशिल पर्वत कहती है । उत्तराखंड से यहाँ तक पहुँचने के लिए तीन सड़क मार्ग हैं । जिनमे पहला मार्ग देहरादून, मसूरी, नैनबाग़, डामटा, नौगॉव, पुरोला, मोरी, हनोल, त्यूनी, आराकोट होकर बलावट, मौन्डा तथा दूसरा सड़क मार्ग देहरादून, विकास नगर, कालसी, साहिया, चकराता, कोटि-कनासर, त्यूनी, आराकोट, बलावट होकर मौन्ड़ा व तीसरा सडक मार्ग देहरादून, विकासनगर, हरिपुर, कोटि-इच्छाडी, क्व़ाणु, मीनस, अटाल, त्यूनी,आराकोट होकर बलावट, मौन्डा पहुंचता है । यह क्षेत्र उत्तराखंड की सेब घाटी के नाम से मशहूर है । यहाँ से चांशल या चाईशिल पैदल मार्ग की दूरी लगभग 10-12 किमी । है । यह बेहद खूबसूरत ट्रेक रूट है जिसमे बीच बीच में भेडालों के कैंप व रुकने हेतु टेंट लगाए जा सकते हैं । बंगाण क्षेत्र के स्थानीय निवासी एक दिन में ही चाईशिल पहुँच जाते हैं जहाँ से स्वर्गारोहिणी, कालानाग व बन्दरपूँछ की सुरम्य हिमशिखरों के दर्शन होते हैं । मीलों तक फैले इन लम्बे बुग्यालों के बीच स्थित सरू ताल का बिहंगम नजारा देखते ही बनता है । जहाँ एक ओर इसे हिमाचल सरकार पर्यटन के माध्यम से इसे विश्व व्यापी आर्थिकी का जरिया बना चुका है वहीँ उत्तराखंड सरकार आज भी नींद से नहीं जागी है । यह ताल कितना उत्तराखंड में और कितना हिमाचल में है यह अनुमान नहीं है लेकिन स्थानीय निवासी इसे उत्तराखंड व हिमाचल का हिस्सा मानते हैं ।
बात यह भी नहीं कि ताल किस प्रदेश सरकार के हिस्से का है बल्कि बात यह है कि चान्शल बुग्याल व सरु ताल तक आज भी उत्तराखंड सरकार क्यों नहीं पहुँच पाई जबकि बलावट, मौन्ड़ा व आस-पास के ग्रामीण इस आस के साथ जी रहे हैं कि देर सबेर यह जरुर उनकी आर्थिकी का हिस्सा बनेगा बस एक पहल करने भर की देर है ।