अभिव्यक्ति कार्यशाला ने श्रीनगर में दिखाए रंगमंच पर रंग

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उत्तराखंड का रंगमंच :   सौ साल का सफर

kandwalउत्तराखंड के रंगमंच को सौ वर्ष पूरे हो गये हैं। इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि किस नाटक की पहली रंगमंचीय प्रस्तुति हुई लेकिन जो ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध हैं उनके अनुसार यहां विधिवत नाटकों की शुरुआत 1914­-15 के आपसपास हुई। ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर उत्तराखंड में नाटकों के लिखने की शुरुआत बहुत पुरानी है। साहित्य और संस्कृति प्रेमी चंद वंश के राजा रुद्रचन्द्र देव ने 1582 में ‘उषारागोदया’ तथा ‘ययाति चरित्रा’ आदि नाटकों की रचना की। हमें आधुनिक नाटकों का रूप 1911 के बाद ही दिखाई देता है। पहला नाटक गढ़वाली बोली के आदि नाटककार भवानी प्रसाद थपलियाल के ‘जय-विजय’ (1911) और ‘प्रह्लाद नाटक’ (1914) प्रकाशित हुये। टिहरी में भवानीदत्त उनियाल के नेतृत्व में ‘शेक्सपियर ड्रमेटिक ’ की स्थापना की गयी। इस प्रकार उत्तराखंड एक तरह से अपनी रंगमंच यात्रा के सौ वर्ष पूरे कर चुका है।

उत्तराखंड में रंगमंच के मूलतः दो रूप दिखाई पड़ते हैं। पहला लोक भाषाओं कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी का, गढ़वाल में वर्ष 1917 में टिहरी में भवानीदत्त उनियाल के नेतृत्व में ‘शेक्सपियर ड्रमेटिक क्लब’ की स्थापना की गयी। अक्टूबर 1919 में इस क्लब ने सर्वप्रथम ‘सत्य हरिश्चन्द्र’ नाटक का मंचन किया।

सौ वर्षों में कुछ प्रमुख मंचित नाटकों में ‘जय-विजय’ (1911) और ‘प्रह्लाद नाटक’ (1914) ‘यहूदी की बेटी’, आदि प्रमुख थे. आजादी के दौर में दौर में प्रहलाद नाटक में राष्ट्रीय चेतना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। आजादी के बाद उत्तराखंड में नाटकों  का नया दौर शुरू हुआ. 70 के दशक के बाद उत्तराखंड के नाटकों ने देश के मुख्यधारा के रंगमंच पर अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज की

अभिव्यक्ति कार्यशाला की पहल

jitubagadwaal‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ उत्तराखंड के रंगमंचीय सरोकारों को व्यापक रूप देते हुये यहां की रंगमंचीय यात्रा के सौ वर्षो को शताब्दी वर्ष के रूप में मनाना चाहती है। इस बात पर विवाद हो सकता है कि इसी वर्ष को शताब्दी क्यों मनाया जा रहा है, क्योंकि कई नाटक तो इससे पहले भी लिखे गये थे। नाटकों का मंचन भी छोटे-बड़े स्तर पर होता रहा है। यह बात ठीक भी है, लेकिन हमने इस समझ के साथ यह बीड़ा उठाया है कि हम एक सही मंशा से यहां के रंगमंच को प्रोत्साहित किया जाये। एक वजह यह भी है कि उत्तराखंड का रंगमंच जितना समृद्ध  रहा है, उसका प्रचार उतना ही कम है। इन सौ वर्षो में कई महत्वपूर्ण नाटक लिखे गये और बहुत सारी नाट्य संस्थायें भी बनी। उन्होंने बहुत अच्छा काम भी किया, लेकिन यहां के रंगमंच को जो स्थान मिलना चाहिये वह नहीं मिल पाया। ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ उत्तराखंड की रंगमंच यात्रा को याद करते हुये राज्य के विभिन्न हिस्सों में वर्ष भर नाटकों के मंचन का आयोजन करेगी जिससे नई पीढ़ी भी रंगमंचीय धारा से जुड़ सके। ‘उत्तराखंड का रंगमंचः सौ साल का सपफर’ नाम से इसका आयोजन किया जा रहा है जिसके तहत पहला कार्यक्रम शताब्दी  नाट्यात्सव के रूप में स्वामी मन्मथन सभागार गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में किया जा रहा है दूसरे चरण में  कुमायूं के विपिन त्रिपाठी प्रौद्योगिकी संस्थान द्वाराहाट अल्मोड़ा में किया जायेगा । जबकि शृंखला के  चरण में देश के राजधानी दिल्ली के एल टी जी सभागार में 17-18 दिसम्बर को  किया जायेगा।

शताब्दी नाट्योत्सव के तहत वर्ष भर अभिव्यक्ति कार्यशाला उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर  नाट्य कार्यशालाओं का आयोजन करेगी । कोशिश होगी कि इन कार्यशालाओं माध्यम से स्थानीय प्रतिभायें उभरकर आयें। दूरस्थ क्षेत्रों में अभिनय की प्रतिभा होने के बावजूद उन्हें आगे आने का मौका नहीं मिलता। इन प्रतिभाओं को हम रामलीला या कुछ छोटे-मोटे आयोजनों में देख पाते हैं। सरकारी और गैरसरकारी स्कूलों में अब कई जगहों पर संगीत का पाठ्यक्रम चलाये जा रहे हैं। इन विद्यालयों को चिन्हित कर यहां नाटक तैयार कराकर उनकी स्कूल स्तर पर प्रस्तुतियां कराई जायेंगी। इन आयोजनों के समापन पर रंगमंच के जाने-माने लोगों को बुलाया जायेगा जो उन्हें अभिनय की बारीकियां समझा सके। यह आयोजन कुमाऊं और गढ़वाल मंडल के पांच-पांच स्थानों पर किया जा सकता है।

कुमाऊं मंडल में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत , हल्द्वानी तथा बागेश्वर

गढ़वाल मंडल में श्रीनगर, गोपेश्वर, नई टिहरी, उत्तरकाशी तथा रुद्रप्रयाग

सेमिनार/संगोष्ठी

रंगमंच को प्रोत्साहित करने और उसे उत्तराखंड में लोकप्रिय बनाने के लिये लिये इस शताब्दी वर्ष में कुछ सेमिनार/गोष्ठियों को आयोजन भी किया जायेगा। इसके लिये पिफलहाल तीन जगहों पर बड़े सेमिनार किये जायेंगे। राजधानी दिल्ली, पौड़ी और पिथौरागढ़ में ये सेमिनार आयोजित किये जायेंगे। अगर संभव हुआ और लोगों कस सकारात्मक दृष्टिकोण रहा तो इन्हें गोष्ठियों के रूप में वर्षभर और जगहों पर भी किया जा सकता है। इन सेमिनार/गोष्ठियों में हिन्दी और अन्य भाषा के रंगकर्मियों और रंगमंच से जुड़े जानकारों के अलावा लोक विधाओं से जुड़े लोगों को भी बुलाया जायेगा।

शताब्दी समारोह का समापन

पूरे वर्ष भर उत्तराखंड उपरोक्त कार्यक्रम करने के बाद इस शताब्दी वर्ष का भव्य समापन किया जायेगा। इस अवसर पर उन सभी प्रतिभागियों को इसमें शामिल किया जायेगा जो कार्यशालाओं, कुमाऊं महोत्सव और गढ़वाल महोत्सवों में अपनी भागीदारी कर चुके हैं। इस समारोह में वर्षभर के आयोजनों में अच्छा काम करने वालों को पुरस्कृत भी किया जायेगा। शताब्दी वर्ष का समापन भी उसी तरह संपन्न होगा जैसे इसका उद्घाटन हुआ था। इस अवसर पर आजतक की रंगमंच की यात्रा पर एक दस्तावेज भी प्रकाशित किया जायेगा। सभी नाट्य प्रस्तुतियों की सीडी भी लोकार्पित की जायेगी। रंगमंच से जुड़े पुराने और नये लोगों का सम्मान भी किया जायेगा।