एक प्रोफेसर की फर्जी वाड़े की यात्रा

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एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन संस्थानों का निदेशक बन बैठा प्रोफ़ेसर

देहरादून : कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर में फर्जी नियुक्ति सहित मास्टर डिग्री प्राप्त करने से पहले ही सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति का मामला काफी चर्चित रहा, लेकिन जांच विश्वविद्यालयस्तर पर ही दबा दी गयी, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने इसे काफी जोर शोर से उठाया था। अब यह मामला उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के दरबार में फाइलों में दौड़ लगा रहा है।

पत्र में कहा गया है कि अल्मोड़ा परिसर में कंप्यूटर लैब के लिए 2009-2010 में खरीदे गए कंप्यूटरो में धांधली, जिसकी जांच में यह चर्चित  प्रोफ़ेसर दोषी पाए गए थे, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गयी। तब यह मामला काफी चर्चित रहा और अख़बारों की सुर्ख़ियों में भी रहा, मामले को उछलता देख  चर्चित प्रोफ़ेसर ने जून 2010 में कुमायूं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर से अवकाश लेकर उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी में कंप्यूटर विभाग में ही प्रोफेसर के पद का कार्यभार ग्रहण किया और विश्व विद्यालय के देहरादून परिसर में निदेशक के पद पर कार्यभार ग्रहण कर लिया।

पत्र में कहा गया है कि यह चर्चित प्रोफेसर बहुत चतुर और दिग्भ्रमित करने वाले व्यक्तियों में शुमार  हैं जो बातों ही बातों में लोगों को बेवकूफ बनाकर अपने लिए रास्ता बनाते रहे हैं। बताया गया है इन चर्चित प्रोफ़ेसर महोदय ने जिस दिन से उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के देहरादून परिसर में परिसर निदेशक के पद का कार्यभार ग्रहण किया उस दिन से विश्वविद्यालय का एक भी काम नहीं किया। जो तीन उपनल कर्मी सात साल पहले थे वही आज भी कार्यरत हैं और दो अकादमिक सहायक जो विश्वविद्यालय का काम न कर केवल चर्चित प्रोफ़ेसर के लिए कार्य करते हैं, वहीँ सफाई कर्मी से लेकर तृतीय श्रेणी के सभी कर्मी पन्त के घर व उनके व्यक्तिगत कार्यों पर लगे रहते हैं। स्वयं भी एक माह में कुल पांच दिन भी परिसर में नहीं बैठते। इस परिसर की स्थापना गढ़वाल क्षेत्र के छात्रों को सुविधा देने के लिए की गयी थी, लेकिन परिसर में कोई कार्य न होने से छात्र परेशान रहते हैं, उन्हें अपनी हर छोटी -बड़ी समस्या के लिए हल्द्वानी ही जाना पड़ता है जोकि सरकार सहित विश्वविद्यालय और छात्रों के साथ धोखा है।

मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि पिछली कांग्रेस सरकार में चर्चित प्रोफेसर की पकड़ होने से इन्होने को यूसैक (उत्तराखंड अन्तरिक्ष उपयोग केन्द्र) यूसर्क (उत्तराखंड शिक्षा एवं अनुसंधान केन्द्र) के निदेशक की कुर्सियां भी हथिया ली थी, जिनपर वे अभी तक बैठे हुए हैं पत्र में उनपर इन संस्थानों में क्षेत्रवाद,भ्रष्टाचार को चरम सीमा तक पहुँचाने का भी आरोप लगाया गया है।

पत्र में कहा गया है कि चर्चित प्रोफेसर द्वारा सबसे बड़ा फर्जीवाडा पिछली सरकार की उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. इंदिरा हृदयेश की आड़ में किया गया। उनके द्वारा अपनी पकड़ से शासनस्तर पर पिछली तिथि से बिना कार्मिक की अनुमति व संस्तुति से वीआरएस (स्वेच्छिक सेवा निवृति) लिया गया, जोकि वित्तीय व अनुशासनात्मक भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है। चर्चित प्रोफेसर जब 2010 में कुमायूं विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर के पद से उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में पांच वर्षों के लिए छुट्टी पर आते हैं इस दौरान उनके सारे फण्ड कुमायूं विश्व विद्यालय में जमा होते रहे, तो वे अचानक 2016 में पिछली तिथि 2010 से कुमायूं विश्वविद्यालय के वीआरएस कैसे ले सकते हैं। यह घोर वित्तीय अनियमितता का मामला है जिसपर गहराई से जांच होनी चाहिए, ऐसा कैसे हो सकता है कि एक ही पद पर व्यक्ति एक ही राज्य के एक विश्वविद्यालय के वीआरएस लेकर पूरी पेंशन ले और दूसरे विश्वविद्यालय से पूरा वेतन यह शासनादेशों को तार-तार करने वाला जघन्य अपराध की श्रेणी में आता है।
मुख्यमंत्री को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि चर्चित प्रोफ़ेसर और उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय व अन्य सम्बंधित संस्थानों का एक ऐसा अधिकारी व प्रोफ़ेसर है जो न तो उपस्थिति पंजिका में उपस्थिति दर्ज करते हैं और न ही बायो मीट्रिक मशीन में। किस आधार पर उत्तराखंड मुक्त विश्व विद्यालय इनका वेतन आरहित करता है, यह भी एक जांच का विषय है। उत्तराखंड मुक्त विश्विद्यालय के कंप्यूटर विषय के प्रोफ़ेसर के नाते चर्चित प्रोफ़ेसर के द्वारा एक भी इकाई व एक भी पुस्तक तैयार नहीं की गयी, जबकि विश्व विद्यालय में शिक्षकों का कार्य छात्रों के लिए पुस्तक व पाठ्यक्रम तैयार करना ही है।

पत्र में कहा गया है कि यह ध्यान देने वाली बात है कि चर्चित प्रोफ़ेसर का अधिकतम समय अपने लिए संसाधनों के उपयोग के लिए प्रयोग होता है वह दिन भर नेताओं और अधिकारियों से लायजनिंग के लिए परिसर से नदारद रहते हैं वह किसी भी तरह से उनके नजदीक जाकर अपने लिए स्थान बनाने की कोशिश करते हैं और सम्बंधित कार्मिकों व अधिकारियों तथा मंत्रियों को धोखे में रखने का प्रयास करते हैं।

पत्र के अंत में कहा गया है कि उपरोक्त सारे मामले चर्चित  प्रोफ़ेसर के घोर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के हैं जिनपर जांच होनी चाहिए और देश में ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। ताकि राज्य में स्वस्थ शैक्षणिक और अनुशासन का वातावरण बन सके।