16 हज़ार सरकारी स्कूल और  70 हजार अध्यापक फिर भी शिक्षा व्यवस्था चौपट 

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काश, यह योजना परवान चढ़ जाती …

योगेश भट्ट 
राज्य की सरकारी शिक्षा के सिस्टम को वाकई बड़े क्रांतिकारी परिवर्तन की दरकार है l चर्चा है कि नयी सरकार राज्य में बड़ी संख्या में चल रहे अनावश्यक सरकारी स्कूलों को बन्द कर एक नयी योजना पर इन दिनों काम कर रही है । ब्लाक स्तर पर मॉडल आवासीय विद्यालय खोलने की योजना को धरातल पर उतारने में कामयाब होती है तो, अपनी आप में यह बड़ी उपलब्धि होगी । राज्य का सालाना कुल बजट तकरीबन चालीस हजार करोड़ रुपये का है। जिसमें से अकेले शिक्षा पर सात हजार करोड़ से अधिक खर्च होता है , इसके बावजूद सरकारी शिक्षा की हालत सबसे ज्यादा खराब है।

प्राथमिक से लेकर पीजी स्तर तक शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। गुणवत्ता में आ रही गिरावट को लेकर अधिकारियों और शिक्षकों की ‘फौज’ सवालों के घेरे में है। शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर घड़ियाली आंसू तो खूब बहाए जा रहे हैं, लेकिन उसकी दशा सुधारने को लेकर किसी के पास कोई ‘रोडमैप’ नहीं है। प्राईमरी स्कूलों में कहीं अध्यापक नहीं है, तो कहीं बच्चे नहीं हैं। कहीं इमारत नहीं है, तो कहीं बैठने के लिए फर्नीचर नहीं हैं। कुल मिलाकर हालत बेहद खराब हैं। बहरहाल शिक्षा की स्थिति सुधारने का दावा करते हुए नई सरकार का कहना है कि प्रदेश भर में दस से कम छात्र संख्या वाले सरकारी स्कूलों को बंद कर उनके आस-पास अत्याधुनिक सुविधाओं वाले आवासीय विद्यालय खोले जाएंगे। बकौल शिक्षा मंत्री, इन आवासीय विद्यालयों को मॉडल विद्यालय के तौर पर स्थापित किया जाएगा। सरकार अगर दस छात्र संख्या वाले स्कूलो को बन्द करती है तो 1900 से अधिक स्कूल बन्द हो जाएंगे।

 काश, ऐसा हो पाता। सोलह सालों में सरकारों की तरफ से मॉडल विद्यालयों की वकालत तो खूब की गई, इसके लिए दावे और वादे भी हुए, लेकिन बात जब इन्हें धरातल पर उतारने की आई तो नतीजा रह बार सिफर रहा। जबकि हकीकत में सबसे ज्यादा आवश्यकता सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारने की है। लेकिन गुणवत्ता सुधारने के बजाय हर सरकार का ध्यान नए-नए स्कूल खोलने पर रहा।

इन स्कूलों के खोले जाने की वजह अक्सर ‘राजनीतिक’ रही है । जहां नए स्कूल की जरूरत ही नहीं थी, वहां भी स्कूल खोल दिए गए। जहां पहले से ही स्कूल थे वहां भी स्कूल खोल दिए गए। इस राजनीतिक तुष्टीकरण का दुष्परिणाम यह हुआ कि प्रदेश भर में स्कूल ही स्कूल खुल गए, जिनमें सुविधा और संसाधनों के नाम पर टाट-पट्टी तक का इंतजाम नहीं किया गया। वर्तमान में प्रदेश में प्राइमरी से लेकर इंटर स्तर तक के 16000 के करीब सरकारी स्कूल हैं, जिनमें लगभग 70 हजार अध्यापक हैं।

अध्यापकों की इतनी भारी फौज के बावजूद सरकारी स्कूलों की दशा बेहद चिंताजनक है। ऐसे में सबसे ज्यादा जरूरत इसी बात की है कि शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास किए जाएं। दस से कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को बंद कर अत्याधुनिक सुविधाओं और संसाधनों वाले आवासीय स्कूल खोलने का सरकार का फैसला वाकई में अच्छा है।

अच्छे आवासीय विद्यालय खुलेंगे तो वहां शिक्षा का माहौल भी बनेगा, भविष्य भी सुधरेगा । निसंदेह शिक्षा की गुणवत्ता भी सुधरेगी लेकिन जब तक यह धरातल पर नहीं उतरता, तब तक इसे ‘सब्जबाग’ ही कहा जाएगा । ऐसे दावे तो पहले भी होते आये हैं । बहरहाल प्रचंड बहुमत वाली सरकार से उम्मीद की जानी जाहिए कि उसका दावा सब्जबाग बन कर न रह जाए बल्कि धरातल पर उतरे।

सूबे के 95 हजार बच्चों की शिक्षा को केंद्र का झटका

उत्तराखंड में डबल इंजन सरकार है। बावजूद इसके आरटीई के तहत पब्लिक स्कूलों में कोटे की 25 फीसदी सीटों पर एडमीशन पाने वाले 95 हजार से अधिक बच्चों को इस साल भी शिक्षा प्रतिपूर्ति नहीं मिल पाई है। प्रदेश सरकार को इसके लिए 91 करोड़ से अधिक की दरकार है। केंद्र से यदि यह धनराशि न मिली तो इसे राशि को राज्य सरकार को वहन करना होगा।

प्रदेश में वर्ष 2011-12 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू किया गया। एक्ट के लागू होने से लेकर अब तक 95 हजार से अधिक गरीब और अपवंचित वर्ग के बच्चों को पब्लिक स्कूलों में कोटे की 25 फीसदी सीटों पर दाखिला दिया गया। इसमें वर्ष 2016-17 में प्रदेश के मान्यता प्राप्त 4169 पब्लिक स्कूलों में से 3922 स्कूलों में 19018 बच्चों को दाखिला दिया गया।

जबकि इस साल भी बच्चों को आरटीई के तहत एडमीशन हो रहे हैं। नियमानुसार इन बच्चों की शिक्षा प्रतिपूर्ति (फीस एवं अन्य खर्च) का शत प्रतिशत केंद्र को वहन करना था, लेकिन केंद्र की ओर से प्रदेश को शिक्षा प्रतिपूर्ति नहीं मिल पाई है। शिक्षा प्रतिपूर्ति समय पर न मिलने से अब कई स्कूलों ने गरीबों के इन बच्चों को स्कूल से निकालना शुरू कर दिया है।

इनके एडमीशन में भी यह स्कूल आनाकानी कर रहे हैं। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि बच्चों की शिक्षा प्रतिपूर्ति के लिए समय-समय पर केंद्र को प्रस्ताव भेजे जाते रहे हैं, लेकिन केंद्र की ओर से न पिछले साल न ही इस वर्ष अब तक शिक्षा प्रतिपूर्ति मद में कोई बजट मिल पाया है।

आरटीई राज्य समन्वयक सुनील भट्ट ने बताया कि आरटीई के तहत शिक्षा प्रतिपूर्ति पर प्रदेश सरकार अब तक एक अरब 37 करोड़ 90 लाख रुपये वहन कर चुकी है। इसके लिए अभी 91 करोड़ रुपये की दरकार है, लेकिन न केंद्र से न ही राज्य सरकार से इस मद में कोई धनराशि मिल पाई है।