सेब की काश्तकारी में उत्तरकाशी जिला अग्रणीय

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  • उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में बेचा जा रहा

उत्‍तरकाशी : उत्तरकाशी जिले में बीते पांच वर्षों में सेब के बगीचे 5300 हेक्टेयर से बढ़कर 9372.59 हेक्टेयर क्षेत्र में फैल चुके हैं। इससे जिले में सेब का उत्पादन तो बढ़ा ही, काश्तकारों की संख्या भी बढ़ी है। यही कारण है कि वर्तमान में 8663 काश्तकारों की आजीविका का मुख्य जरिया सेब उत्पादन बन चुका है,और वे स्वरोजगार की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या उत्तरकाशी में सेब मंडी की है जो आज तक अस्तित्व में नहीं आ पाई है पिछली सरकारों द्वारा उत्तरकाशी के आराकोट में सेब मंडी खुलने की घोषणा तो हुई लेकिन घोषणा धरातल पर नहीं उतर सकी है। यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश के आढ़ती ही उत्तराखंड का सेब खरीदकर उसे हिमाचल की पैकिंग में दूसरे राज्यों की मंडियों को भेजते रहे हैं।

सेब के काश्तकारों की उद्यमशीलता को देखते हुए जिले के उद्यान विभाग ने काश्तकारों ने उद्यान विभाग से 94 हजार सेब की पौध मांगी है, जिसे 153 हेक्टेयर क्षेत्र में रोपा जाएगा। उत्तराखंड में सेब का सर्वाधिक उत्पादन उत्तरकाशी जिले में होता है। खासकर गंगा एवं यमुना घाटी तो सेब उत्पादन के लिए खास पहचान रखती हैं। देश एवं प्रदेश में सेब की बढ़ती मांग के चलते यहां काश्तकारों का रुझान सेब उत्पादन में लगातार बढ़ रहा है।

बीते 22 वर्षों से उत्तरकाशी में तैनात सेब विशेषज्ञ एनके सिंह बताते हैं कि बीते दो दशक में यहां के काश्तकारों ने पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश से सीख लेते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण अपनाया है। पहले उत्तरकाशी के आराकोट व हर्षिल वाले क्षेत्र में रॉयल डेलिसस, रेड डेलिसस व गोल्डन डिलिसस प्रजाति के सेब होते थे।

इनके पेड़ काफी बड़े होते हैं और शीतकाल के दौरान इनके लिए अच्छी बर्फबारी भी जरूरी है। ऐसे में काश्तकारों को अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता था। लेकिन, बीते 10-12 वर्षों से काश्तकारों का दृष्टिकोण बदला और उन्होंने स्पर प्रजाति के रेड चीफ, सुपर चीफ व गोल गाला के पौधों के बागीचे तैयार किए। एनके सिंह बताते हैं कि कम बर्फबारी होने पर भी स्पर प्रजाति के पेड़ों में उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ता है। इन पेड़ों की ऊंचाई बहुत अधिक नहीं होती और फलों की क्वालिटी और मात्रा भी अच्छी होती है।

सेब विशेषज्ञ एनके सिंह बताते हैं कि वर्तमान में उत्तरकाशी जिले में 20 हजार मीट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है। इसे 2020 तक बढ़ाकर 35 हजार मीट्रिक टन करने का लक्ष्य है।वहीँ उत्तरकाशी के अपर जिला उद्यान अधिकारी एके मिश्रा का कहना है कि जिले में हर वर्ष सेब का क्षेत्रफल बढ़ रहा है और काश्तकारों की संख्या भी।विभाग द्वारा काश्तकारों को उन्नत किस्म की पौध दी जा रही है। काश्तकारों का कहना है कि सेब की मांग बढऩे से हम काश्तकारों को भी अच्छा मुनाफा हो रहा है। उन्नत किस्म के पौधे लगाने के बाद सेब की पैदावार साल-दर-साल बढ़ रही है,और सेब के काश्तकारों में सेब के उत्पादन की तरफ उत्सुकता जागृत हुई है।

प्रदेश में सेब उत्पादन पर यदि नज़र दौडाई जाय तो उत्तरकाशी जिले में सर्वाधिक 9372.59 हेक्टयर क्षेत्रफल में 20529 मेट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है जबकि अल्मोड़ा जिले में 1577 हेक्टयर में 14137 मेट्रिक टन, नैनीताल जिले में 1242 हेक्टयर में 9066 मेट्रिक टन, देहरादून जिले में 4799 हेक्टयर में 7342 मीट्रिक टन, चमोली जिले में 1064 हेक्टयर में 3354 मीट्रिक टन, पौड़ी जिले में 1123 हेक्टयर में 3057 मेट्रिक टन, पिथौरागढ़ जिले में 1600 हेक्टयर में 3012 मीट्रिक टन और टिहरी जिले में 3820.34 हेक्टयर में 1910 मेट्रिक टन उत्पादन हो रहा है।