Social Progress में देश में चौथे स्थान पर आया उत्तराखंड

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  • सामाजिक प्रगति के मामले में देश में केरल सबसे ऊंचे तो बिहार अंतिम पायदान पर 
  • केंद्र की आर्थिक सलाहकार परिषद व नीति आयोग के निर्देश पर तैयार हुआ सोशल प्रोग्रेस इंडेक्स

अरविंद शेखर

देहरादून : उत्तराखंड के लिए एक शानदार खबर है। सामाजिक प्रगति के क्षेत्र में उत्तराखंड देश में चौथे स्थान पर है। उसके पहले केवल केरल, हिमाचल और तमिलनाडु हैं। दरअसल हाल में ही केंद्र सरकार की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय, नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत और डॉ. योगेश्वर सूरी के निर्देश पर एक सामाजिक प्रगति सूचकांक तैयार किया गया है।

गुड़गांव स्थित इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पटेटिवनेस ने इस सूचकांक को तैयार किया है। इस सामाजिक सूचकांक पर आधारित इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पटेटिवनेस के अमित कपूर की रिपोर्ट के मुताबिक देश में देश के राज्यों की सामाजिक प्रगति मापने के लिए के सामाजिक प्रगति सूचकांक में उत्तराखंड देश में चौथे स्थान पर है। दरअसल, सामाजिक प्रगति सूचकांक देश में नया प्रयोग है। इस सूचकांक में सामाजिक प्रगति के विभिन्न मानको के हिसाब से राज्यों को अंक दिए गए हैं।

सूचकांक तैयार करते हुए बुनियादी मानव जरूरतें (पुष्टाहार व स्वास्य सेवाएं, पानी एवं स्वच्छता, आवास,, निजी सुरक्षा), बेहतर जीवन के बुनियादी तत्व (बुनियादी ज्ञान तक पहुंच, सूचना एवं संचार तक पहुंच, स्वास्य एवं तंदुरुस्ती, आर्थिक गुणवत्ता) और लोगों के लिए अवसरों की उपलब्धता यानी वैयक्तिक अधिकार, निजी आजादी व विकल्प, सहिष्णुता व समावेशन, उच्च शिक्षा तक पहुंच आदि मानकों के आधार पर राज्यों को नंबर दिए गए।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिपोर्ट से विकास के एक नए मॉडल को बनाने में मदद मिल सकती है क्योंकि इससे साफ हो गया है कि आर्थिक विकास और सामाजिक विकास में कोई सीधा संबंध नहीं होता। यानी जीडीपी ज्यादा भी हो तो भी समाज पिछड़ा रह सकता है। रिपोर्ट में देश के राज्यों को उनकी प्रगति के स्कोर के हिसाब से तीन समूहों में बांटा गया है। पहला समूह उन राज्यों का है जहां सामाजिक प्रगति सबसे अधिक हुई है। दूसरा समूह मध्यम सामाजिक प्रगति वाले राज्यों का है और तीसरा समूह उन राज्यों का है जिनका सामाजिक विकास में पिछड़ापन अभी बहुत बाकी है। देश में बिहार सबसे ज्यादा सामाजिक रूप से पिछड़ा राज्य है।

आर्थिक विकास का अर्थ सामाजिक प्रगति नहीं

रिपोर्ट में गुजरात व केरल की तुलना से साफ है कि आर्थिक विकास सामाजिक विकास का पैमाना नही है। कैंब्रिज विवि के सेंटर फॉर डेवलरमेंट स्टडीज के नित्य मोहन खेमका द्वारा किए गए गुजरात व केरल के तुलनात्मक अध्ययन के मुताबिक किसी भी राज्य की आर्थिक प्रगति उसके सामाजिक विकास को नहीं दिखाती। अध्ययन के मुताबिक गुजरात राज्य का सकल घरेलू उत्पाद एसजीडीपी 120.91 बिलियन डॉलर है जबकि केरल का 59.70 बिलियन डॉलर. लेकिन सामाजिक प्रगति में वह केरल से बहुत पीछे है। गुजरात को सामाजिक प्रगति सूचकांक में 56.65 तो केरल को 68.09 अंक मिले है। इसमें केरल ने सत्ता के विकेंद्रीकरण, पंचायतों को और अधिक संसाधन देने में अन्य राज्यों से बेहतर काम किया है। राज्य में महिला साक्षरता, भूमि सुधार के क्षेत्र में भी बहुत अच्छा काम हुआ है।

सामाजिक प्रगति में सबसे बेहतर 15 राज्यों के इंडेक्स में अंक 
केरल-68.09, हिमाचल प्रदेश-65.39, तमिलनाडु-65.34, उत्तराखंड-64.23, गोवा- 63.39, मिजोरम 62.89, सिक्किम-62.72, पंजाब-62.18, दिल्ली-60.17, कर्नाटक-59.72, महाराष्ट्र-57.88, हरियाणा-57.27, नागालैंड-56.76, छत्तीसगढ-56.69. गुजरात -56.65

सामाजिक प्रगति में मध्यम प्रगति वाले सात राज्यों के इंडेक्स में अंक 
आंध्र प्रदेश-56.13, मणिपुर-55.50. जम्मू-कश्मीर-55.41, अरुणाचल प्रदेश-55.24, मध्य प्रदेश-55.03, पश्चिमी बंगाल-54.37, मेघालय-53.51

सामाजिक प्रगति में सबसे पिछड़े सात राज्य 
त्रिपुरा-53.22, राजस्थान-52.31, उड़ीसा-51.64, उत्तर प्रदेश-50.96, असम-48.53, झारखंड-47.80, बिहार-44.89