भाजपा उत्तराखण्ड : जिन पर बीड़ा – उन्हीं से पीड़ा

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शिव -संजय की मनमानी से सहमी हुई है उत्तराखंड भाजपा 
देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून  : चुनाव गुजर गया है, परिणामों का इंतजार है। मुख्यमंत्री बनने और बनाने का खेल जारी है। कांग्रेस के बागियों को लाकर भाजपा निरन्तर बैकफुट पर है, केदारनाथ आपदा जैसा बड़ा मुद्दा विजय बहुगुणा के भाजपा में आते ही बीजेपी के हाथ से निकल गया और यहीं हरीश रावत ने भाजपा को दबोच लिया। चुनाव से ठीक पहले पार्टी विद डिफरेन्स वाली भाजपा ने कांग्रेसी यशपाल और उनके बेटे को गुप्त डील के तहत बीजेपी से टिकट दे दिया। इस घटना के बाद भाजपा और सवालों में घिर गयी, पार्टी के हार्डकोर समर्थक भी हैरान हैं। चुनाव के अंतिम दौर में मोदी की रैलियों के बाद भाजपा के पाँव जमीं पर नहीं हैं। अगर भाजपा सरकार लाने में सफल रही तो कई विवादित सवाल दफ़न हो जायेंगे अन्यथा शिवप्रकाश और संजय के लिए चुनाव परिणाम उनकी मठाधीशी की विदाई साबित होंगे।

 

लम्बे समय से शिवप्रकाश उत्तराखण्ड भाजपा को मनचाहा हाँक रहे हैं, उनके विश्वस्त संजय उनकी गतिविधियों को अंजाम तक पंहुचाने में माहिर हैं। शिवप्रकाश भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री हैं, संजय कुमार राज्य भाजपा के संगठन मंत्री है और शिवप्रकाश के आँखों के तारे हैं यही कारण है कि तमाम आर्थिक, चारित्रिक और सांगठनिक आरोपों के बाद भी संजय की बादशाहत कायम है। संघ भाजपा में कुशल संगठन संचालन के लिए अपने प्रतिनिधि भेजता है जिन्हैं संगठन मंत्री कहा जाता है। उत्तराखण्ड में संघ का यह प्रयोग असफल रहा। सभी पूर्ववर्तियों पर जातिवाद, क्षेत्रवाद, चहेतों को प्रश्रय और अकूत सम्पति एकत्र करने के आरोप लगे हैं किन्तु संजय इन सबके चैम्पियन निकले। संजय ने शिवप्रकाश की अखण्ड कृपा से उत्तराखंड में भाजपा की छवि को धूल धूसरित किया। राज्य भाजपा कार्यालय बलबीर रोड कुत्सित, घृणित, विवादित और कुकृत्यों का केंद्र बन गया। अख़बार, मैगजीन, सोशल मीडिया में संजय के किस्से चटखारे लेकर छपते रहे हैं।
   

इस पूरे चुनाव में शिवप्रकाश ने राज्य के किसी भी बड़े नेता को मुँह नही लगाया। खण्डूरी, कोश्यारी, निशंक  न चुनाव में अपने समर्थकों को टिकट दिला पाये न चुनावी रणनीति में उनकी सुनी गयी। चुनाव में केवल वे केवल अपनी जनसभाओं हेतु  शिवप्रकाश के निर्देश तक सीमित रहे। शिवप्रकाश की मनमानी से आहत केंद्रीय प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान तथा जेपी नड्डा रस्म अदायगी के  तौर पर अपनी भूमिका में रहे किन्तु केंद्रीय नेतृत्व को उत्तराखण्ड भाजपा की दुर्दशा की पल पल की खबर देते रहे। श्याम जाजू भले प्रदेश प्रभारी हों पर उन्हें  थोक के भाव कार्यक्रम लगाकर व्यस्त रखा गया। इस हद तक दखल और मनमानी पर जाजू भी असंतुष्ट दिखे। कौन स्टार प्रचारक किस विधानसभा में जायेगा इन विषयों में तक किसी से चर्चा तक नहीं की गयी।

 

निरन्तर खबरें आती रही कि शिवप्रकाश उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे है, मुरादाबाद निवासी शिवप्रकाश सुनियोजित तरीके से खुद को जसपुर निवासी बताने लगे, लगे हाथ उत्तरप्रदेश निवासी संजय भी खुद को रुद्रपुर का बताने में पीछे नहीं रहे। खुद सीएम न बनने का वातावरण देख अब अपने यसमैन को कुर्सी पर बैठाने की रणनीति है जो केवल उनके इशारों पर चले। अजय भट्ट, अजय टम्टा और प्रकाश पन्त में से वे किसी एक की ताजपोशी की रणनीति में मशगूल हैं। कोश्यारी, निशंक, त्रिवेन्द्र सिंह रावत, हरक सिंह रावत और धन सिंह रावत जैसे तेज नेताओं से शिवप्रकाश संजय की जोड़ी सहमी रहती है। यह भी चर्चा रही कि कोश्यारी, निशंक को प्रचार में कम तवज्जो दी गयी, त्रिवेंद्र के क्षेत्र डोईवाला में मांग के अनुकूल स्टार प्रचारक नहीं दिये गये। हरक सिंह को अंतिम समय पर लैंसडौन के बजाय कोटद्वार में उलझाया गया। धनसिंह के क्षेत्र श्रीनगर में पहले से मोदी की रैली तय थी किन्तु उसे गौचर  में कराने के लिये ऐड़ी चोटी का जोर लगाया गया किन्तु धर्मेन्द्र प्रधान ने ये चाल सफल नहीं होने दी।इसी प्रकार  अल्मोड़ा में मोदी की रैली तय थी अंतिम समय में रैली को प्रकाशपन्त के पिथौरागढ़ में आयोजित किया गया।

 

चुनाव परिणामों के बाद भाजपा उत्तराखण्ड में महाभारत के संकेत तय है अगर भाजपा सरकार नहीं बना पाती है तो परिणामों के तुरन्त बाद अनेक लड़ाईयां, विदाई और परिवर्तन दिखेंगे अगर पार्टी सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री के नाम चयन के बाद शेष दावेदारों का मोर्चा नयी इबारत लिखेगा। अनुशासित कही जाने वाली भाजपा में इस हद तक की मनमानी राज्य के नेताओं की आपसी लड़ाई और गुटबाजी के कारण भी पैदा हुयी है दूसरा कारण कुछ नेताओं का शिव -संजय की मनमानी का अपने हितों के लिए समर्थन करना भी है।