यह ‘वीआरएस’ है या ‘सेफ एग्जिट’..?

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पंवार के वीआरएस से लेकर नयी नियुक्ति तक पूरी कहानी में ‘झोल’ ही ‘झोल’ 

योगेश भट्ट 
दस अगस्त को आईएएस उमाकांत पंवार की स्वैच्छिक सेवानिवृति को सरकार द्वारा मंजूरी देना, ठीक उसी दिन, नियोजन विभाग द्वारा उन्हें हाल ही में कैबिनेट से मंजूर ‘उत्तराखंड स्टेट सेंटर फार पब्लिक पालिसी एंड गुड गवर्नेंस’ का’ निदेशक नामित करना और उसी दिन उमाकांत पंवार द्वारा पदभार ग्रहण करना, सब कुछ एक ही दिन। आखिर ऐसी कौन सी आपातकालीन स्थिति थी या कौन सी मजबूरी थी जो सरकार को सबकुछ एक ही दिन में करना पड़ा? कुछ तो ऐसा है ज़िसकी पर्देदारी सरकार और पंवार दोनो कर रहे हैं ।

दरअसल पंवार के वीआरएस से लेकर नयी नियुक्ति तक पूरी कहानी में ‘झोल’ ही ‘झोल’ है। जो सरकार आईएएस अफसर पर कोई एक्शन नही लेने पर तर्क देती है कि यह अधिकार केंद्र के डीओपीटी का है, वो राज्य सरकार एक आईएएस के वीआरएस पर खुद निर्णय कैसे कर सकती है? जिस तरह से यह घटनाक्रम घटित हुआ, उससे बहुत संभव है कि पंवार ने वीआरएस लिया नहीं बल्कि उन्हें वीआरएस दिलाया गया है। तमाम हालात के मददेनजर इसके महज दो ही कारण हो सकते हैं एक तो यह कि सरकार उनकी काबलियत को देखते हुए उन्हें मिनी नीति आयोग कही जा रही नवसृजित संस्था को स्थापित करने का पूरा जिम्मा सौंपना चाहती हो , दूसरा यह कि किसी खास कारण के चलते उन्हे नौकरशाही की मुख्यधारा से हटाना हो ।

बताते चलें उमाकांत पंवार की गिनती प्रदेश के वरिष्ठ नौकरशाहों में थी, पूरे सेवाकाल में वह अधिकांशत: अहम पदों पर ही रहे । सन 1991 बैच के आईएएस अफसर पंवार प्रमुख सचिव थे और उनके पास अभी तकरीबन दस साल की सेवा शेष थी। ऐसे में उनका अचानक वीआरएस लेना और फिर राज्य सरकार द्वारा उन्हें प्लानिंग से जुड़ी ऐसी संस्था जो अभी वजूद में भी नहीं आयी है, उसमें तैनाती देना पंवार को मुख्यधारा से अलग करने जैसा ही है।

सवाल यह उठता है कि ‘उत्तराखंड स्टेट सेंटर फार पब्लिक पालिसी एंड गुड गवर्नेंस’ में नियुक्ति के लिए सरकार ने पंवार का चयन किन खूबियों के आधार पर किया? परफार्मेंस के हिसाब से यदि बात की जाए तो पंवार एक औसत अधिकारी रहे हैं। ना ही उनका नाम ईमानदार अधिकारियों की फेहरिस्त में शामिल रहा है और ना ही उनके नाम कोई विशेषज्ञता या विशेष उपलब्धि रही है। उल्टा उनकी हर पोस्टिंग के साथ कोई न कोई किस्सा या आफ द रिकार्ड कहानी जुड़ी ही रही है।

राज्य बनने के वक्त जिस महकमे को राजधानी निर्माण संबंधी कार्यों का जिम्मा दिया गया उसका मुखिया रहते हुए चहेती कंपनियों को फायदा पहुंचाने का आरोप भी उनके ऊपर रहा। तब से लेकर आज तक पंवार के बारे में तमाम चर्चाएं आम रही हैं। देहरादून में ही एक रिजार्ट व अन्य प्रोपर्टी को लेकर तो अन्य मामलों भी उनका नाम खासा चर्चाओं में है। ऐसे में मिनी नीति आयोग बताई जा रही इस संस्था के निदेशक पद पर पंवार की नियुक्ति का आधार यदि वास्तव में काबिलियत ही है, तो यह आश्चर्यजनक है ।

क्योंकि इस लिहाज से तो सरकार के पास उनसे भी लाख बेहतर कई और विकल्प हो सकते थे। इसी से जुड़ा एक अहम सवाल यह भी है कि जिस पद पर पंवार की नियुक्ति या चयन हुआ है, उसके लिए क्या कोई प्रक्रिया अपनाई गई? यदि कोई प्रक्रिया नहीं अपनाई गई तो यह नियुक्ति तो फिर अपने आप में संदेहास्पद है। जानकारी के मुताबिक पंवार ने इसी महीने तीन अगस्त को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन किया था। इसके लिए उन्होंने क्या कारण दिया यह अभी साफ नहीं है।

नियमानुसार वीआरएस के लिए तीन महीने पहले सूचना दी जानी चाहिए। लेकिन पंवार के मामले में इस नियम को शिथिल करते हुए मात्र सप्ताह भर में ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति मंजूर कर दी गई। जबकि हो यह भी सकता था कि अगर वाकई उनका उक्त पद पर चयन हुआ ही था तो वह चयन के बाद भी वीआरएस का आवेदन कर सकते थे। एक अहम तथ्य यह भी है कि फिलहाल पंवार का चयन निदेशक के तौर पर हुआ है जबकि ‘उत्तराखंड स्टेट सेंटर फार पब्लिक पालिसी एंड गुड गवर्नेंस’ का जो ढांचा कैबिनेट में मंजूर हुआ उसमें निदेशक का पद ही नहीं है। उसमें मुख्य कार्याधिकारी तथा अपर मुख्य कार्याधिकारी के पद मंजूर हैं, निदेशक का पद तो था ही नहीं । ऐसे में फिलवक्त पंवार का वीआरएस और नयी तैनाती एक बड़ा रहस्य है।

सवाल सीधे सरकार पर भी है ,जो सरकार मंत्रिमंडल में खाली दो पदों को पांच महीने बीतने के बाद भी न भरे, जिसकी नजर में इन पदों की कोई महत्ता न हो उसी सरकार की नजर में एक पद कैसे इतना अहम हो गया कि उस पर रातोंरात तैनाती कर दी गई? सवाल उमाकांत पंवार पर भी है जिन्होने महज इस पद के लिए अपनी सेवा के बाकी बचे दस वर्षों की बलि दे दी? जबकि वह वाकिफ हैं कि नौकरशाहों के लिए सेवानिवृत होने के बाद पुनर्वास की व्यवस्था उत्तराखंड में एक परम्परा है। ऐसे में पंवार का असमय वीआरएस लेना और उस पर राज्य सरकार द्वारा उन्हें सरकार में ही एडजस्ट कर देना इस ओर भी इशारा करता है कि कहीं यह सारी कवायद पंवार के ‘सेफ एग्जिट’ गेम का हिस्सा तो नहीं ।बहरहाल जो भी हो उम्मीद है कि ‘सच’ जल्द सामने आयेगा।