उत्तराखण्ड का ये ‘चीन प्रेम’ ठीक नहीं ..

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योगेश भट्ट 

चीन और भारत के असहज रिश्ते किसी से छुपे नहीं हैं। इस महीने की शुरुआत में दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा के बाद एक बार फिर दोनों देशों के संबंधों में ‘तनाव’ है। लेकिन इस बीच उत्तराखंड में चीन के लिए ‘रेड कार्पेट’ बिछाने की तैयारी चल रही है।

खबर है कि चीन की दर्जनभर कंपनियां उत्तराखंड में करीब छह हजार करोड़ रुपये का निवेश करने जा रही हैं, सरकार इसके लिए तैयार है । दावा किया जा रहा है कि इस भारी-भरकम निवेश के चलते चालीस हजार लोगों के लिए रोजगार के दरवाजे खुलेंगे और उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को गति मिलेगी। इन कंपनियों को उत्तराखंड में निवेश के लिए आमंत्रित करने की पहल पिछली सरकार के दौर से चल रही थी, जो अब जाकर फलीभूत हुई है।

पिछली सरकार का ‘चाइना प्रेम’ किसी से छुपा नहीं है। तब देहरादून में प्रस्तावित स्मार्ट सिटी का प्रोजक्ट तैयार करने का जिम्मा तक सरकार ने चाइना की एक यूनिवर्सिटी को दे दिया था, जिस पर खूब बवाल मचा था। बहरहाल चाइनीज कंपनियों का उत्तराखंड में आ कर काम करने का मसला निवेश के जुड़ा है, मगर इससे एक बाजिब चिंता भी खड़ी होती है।

चिंता यह कि जिस देश के साथ हमारे राजनीतिक, सामाजिक एवं सामरिक रिश्ते तनावपूर्ण हों, उस देश की कंपनियों का उत्तराखंड में निवेश के लिए आना कितना सही होगा? दर्जनभर से ज्यादा चाइनीज कंपनियां जब उत्तराखंड में छह हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश करेंगी तो प्रदेश के औद्योगिक बाजार पर उनका पूरी तरह दबदबा होना निश्चित है। उत्तराखंड की सीमा चीन से लगी हुई है।

प्रदेश के बाराहोती क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के बीच लंबे वक्त से सीमा विवाद चल रहा है। ऐसे में इतनी बड़ी ताकत के साथ चाइनीज कंपनियों का उत्तराखंड में आना क्या सामरिक दृष्टि से सुरक्षित होगा? एक सवाल यह भी कि जो सरकारें माओवाद को प्रदेश के लिए बड़ा खतरा बताती रही हैं, क्या चाइनीज कंपनियों की इतनी ज्यादा आमद से उन्हें माओवाद के फलने-फूलने की आशंका नहीं नजर आती? क्या मौजूदा सरकार जनता को यह भरोसा दिला सकती है कि चाइनीज कंपनियों द्वारा प्रदेश में इतना बड़ा निवेश विशुद्ध रूप से व्यावसायिक मसला है और इसके पीछे चाइना की कोई और मंशा नहीं है? ये सब वो सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार को जरूर देना चाहिए, ताकि जनता के मन में किसी तरह की शंका न रह सके। एक बड़ा सवाल इन कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले रोजगार को लेकर भी है।

दावा किया जा रहा है कि इन कंपनियों के आने से प्रदेश में चालीस हजार नया रोजगार पैदा होगा। लेकिन किस तरह का रोजगार पैदा होगा, यह अभी साफ नहीं है। चूंकि चाइनीज कंपनियां तकनीक के लिए जानी जाती हैं, लिहाजा जाहिर है कि वे ज्यादातर काम को मशीनों से ही अंजाम देंगी। ऐसे में लोगों को किस तरह का और कितने वेतन पर काम मिलेगा, यह बड़ा सवाल है। जिन बारह कंपनियों द्वारा प्रदेश में निवेश किए जाने की बात कही जा रही है, उनमें से एक के बारे में बताया जा रहा है कि वह प्रदेश में वाइनरी यानी शराब बनाने का काम करेगी।

यदि ऐसा है तो यह अपने आप में बेहद हैरान करने वाला है। जिस वक्त प्रदेश में शराब बंदी को लेकर जगह-जगह आंदोलन चल रहे हैं, लोग कई दिनों‍ से सडकों पर हैं, सरकार खुद शराबबंदी की बात कह रही है, ठीक उसी वक्त एक चाइनीज कंपनी प्रदेश में शराब का कारोबार करने की तैयारी कर रही है। क्या यह विरोधाभास की स्थिति नहीं है?

कुल मिलाकर असल बात यह है कि चीन की कंपनियों का प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में आना और इतना बड़ा निवेश करना, सामान्य बात तो नहीं मानी जा सकती है। बहुत संभव है कि इसके पीछे चाइना की कोई और ‘मंशा’ हो, जिसे हम अभी नहीं समझ पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में चाइनीज कंपनियों के लिए रेड कार्पेट बिठाना सरकार का बेहद ‘रिस्क’ भरा कदम है।