सरकार दवा खरीदती रही और घोटाले पर घोटाले होते रहे !

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यहाँ दवा को गोदामों में रखकर उनकी एक्सपायरी डेट का होता है इंतज़ार!

वहां गरीब तबका दवा के इंतज़ार में दम तोड़ने को है मजबूर !

इधर गरीबों को बाँटने के लिए दवा के लिए पैसे की कमी का होता है रोना!

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : उत्तराखंड में बीते एक दशक से कई दवा घोटाले हुए हैं लेकिन आज तक किसी भी दवा घोटाले पर किसी भी अधिकारी को सजा नहीं हुई और घोटाले पर घोटाले होते चले गए ।  ताज़ा मामला भी दवा घोटाले से जुड़ा बताया जा रहा है जब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य निदेशालय ने गोदामों में रखी एक्सपायरी डेट को पार कर चुकी लगभग चार करोड़ रुपये की दवा को ठिकाने लगाने के लिए राज्य के चिकित्सालयों को भेजा है।  इससे यह साफ़ हो गया है कि सूबे के अस्पतालों में जहाँ दवा के अकाल के कारण कई गरीब दम तोड़ने को मजबूर हैं वहीँ सरकारी पैसे से खरीदी गयी करोड़ों की दवा को जान-भूझकर सरकारी गोदामों में रखकर उनकी एक्सपायरी डेट का इंतज़ार किया जाता है और उसके बाद उसको ठिकाने लगाने के लिए भी सरकारी पैसा बर्बाद किया जाता है वहीँ सरकार के पास सूबे के गरीबों को बाँटने के लिए दवा के लिए पैसे की कमी का रोना रोया जाता रहा है।

गौरतलब हो कि इससे पहले सीएमओ कार्यालय, दून अस्पताल ने वर्ष 2012-13 और 2013-14 में कुल 7. 80 करोड़ की दवाई खरीदी। जिसमें 1. 06 करोड़ की अनियमितता मिली थी। दवा नीति के अनुसार दवाई 16 फीसदी कम दरों पर खरीदनी थी। लेकिन ऊपर से नीचे तक के अधिकारियों ने मनमाने दामों पर खरीद ली। जिससे सरकार को 1 करोड़ का चूना लगा था। हालाँकि इस मामले पर भी आज तक किसी के खिलाफ कोई कार्रवाही नहीं हुई है।

वहीँ इसी दौरान 2014 में भी सरकार ने दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की फौरी तौर पर संस्तुति की थी, लेकिन गर्भवती महिलाओं, जच्चा- बच्चा की दवा के लिए केंद्र सरकार से मिले बजट को कौन पी गया, इसका आज तक पता नहीं चला है।

  वहीँ इसी दौरान उत्तराखंड में दवा घोटाले का खुलासा रुड़़की स्थित स्वास्थ्य विभाग के ड्रग वेयर हाउस से हुआ था, जहां लगभग सवा करोड़ की दवा नवजात और उनकी माताओं तक बंटने के इंतजार में एक्सपायर हो गई थी। रुड़की ड्रग वेयर हाउस के 2008 से 2010 के इस मामले को अफसरों ने दबा दिया था। इस मामले को हरिद्वार निवासी आरटीआई एक्टीविस्ट रमेश चंद्र शर्मा ने उठाया था। शर्मा की मेहनत रंग लाई और लोकायुक्त ने इस मामले की जांच कराई तो खुलासा हुआ कि सवा करोड़ की दवा गर्भवती महिलाओं, जच्चा- बच्चा को बांटने की बजाय वेयर हाउस में रहने दी।

इस घोटाले की ख़ास बात यह रही जिस तरह से दवा खरीदने में अफसरों ने ख़ास रुचि दिखाई थी,उस तरह से राज्य के उन अस्पतालों तक उस दवा को पहुँचाने में रूचि नहीं दिखाई गयी और इस दवा का भी एक्सपायरी डेट का अधिकारी इंतज़ार करते रहे।

वहीँ जब यह मामला उठा तो तत्कालीन लोकायुक्त ने इस मामले में एनआरएचएम में संयुक्त निदेशक (आरसीएच) सहित नौ अफसरों, कर्मचारियों को दोषी पाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई और सरकारी रकम वसूलने की संस्तुति सरकार से की थी, लेकिन यह मामला तब से लेकर अब तक की सरकारों के पास फाइलों में ही दबा हुआ है। न तो किसी अधिकारी से सरकारी पैसे की वसूली हुई और न किसी कोई सजा ही अब तक हुई है। 

गौरतलब हो कि तत्कालीन लोकायुक्त के इस फैसले के बाद आरटीआई एक्टीविस्ट शर्मा ने स्वास्थ्य विभाग से लगभग 14 करोड़ की दवा खरीद से लेकर वितरण तक की जानकारी सूचना के अधिकार के तहत मांगी थी। बाद में यह मामला उत्तराखंड सूचना आयोग पहुंचा था ,जहां सूचना आयुक्त के आदेश के बाद भी स्वास्थ्य विभाग के अफसर यह नहीं बता पाए कि लगभग सवा 11 करोड़ की दवा कहां और किनको बांटी गई।

मामले में तत्कालीन सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा ने वर्ष 2013 में राज्य सरकार से दवा घोटाले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकार ने इस मामले में कोई पैरवी नहीं की यानि इससे साफ़ था कि इस घोटाले में सरकार में बैठा किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति की संलिप्तता रही है, यही कारण रहा कि वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान इस दवा घोटाले की जांच का जिन्न एक बार फिर बाहर निकला और सूबे के चुनाव लड़ रहे दोनों राजनीतिक दलों ने सत्ता में आने के बाद इस घोटाले की सीबीआई से कराने की बड़ी-बड़ी बातें और वादे सूबे की जनता से किये लेकियन चुनाव जीतने के बाद जहाँ कांग्रेस अपने वादे से मुकर गयी वहीँ विपक्षी भाजपा ने भी इस घोटाले पर चुप्पी साध ली।

पिछले घोटालों पर पर जब कुछ नहीं हुआ तो इस बार भी घोटाला कर दिया गया और अब लगभग चार करोड़ की दवा को ठिकाने लगाये जाने की प्रक्रिया शुरू हो गयी है और यह एक्सपायरी डेट की दवा को सूबे के जिलों के चिकित्सालयों में भेजा गया है ताकि वहीँ से इसको ठिकाने लगाया जा सके। राजधानी में चर्चाएँ आम हैं कि सरकार के शीर्ष में बैठा एक आला अधिकारी ही बीते कई सालों से इस तरह से दवा घोटाले को अंजाम देता आ रहा है वतर्मान में में वह इतना पावरफुल है कि कोई उसके खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत करने की स्थिति में नहीं है।  जबकि चर्चाएँ तो यह भी हैं कि इसी अधिकारी की कई दवा कंपनियों से सांठ-गांठ है और एक कंपनी ने तो महीनों पहले इस अधिकारी के हार्ट के ओपरेशन का मुम्बई में पूरा खर्चा भी उठाया था ।