हर्षिल की उन ऊपरी पहाड़ियों पर 10 किमीं तक फैली आग

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इन पहाड़ियों पर दिसंबर में होती थी बर्फबारी

उत्तरकाशी  :  उत्तराखंड में हर्षिल की उन ऊपरी पहाड़ियों पर जहां दिसंबर के महीने में बारिश और बर्फबारी होती थी, वहां 18 दिन से आग धधक रही है। यह आग बगोरी फायरिंग रेंज में सुलगी, और सिविल वन, सेब के बगीचे से होकर देवदार, कैल, भोजपत्र के घने जंगलों में 10 किमी तक फैल चुकी है। डीएफओ ने जंगल की बेशकीमती जैव विविधता को खत्म कर रही इस आग के लिए सेना की 12 ग्रेनेडियर के अधिकारियों को दोषी माना है और रेंजर को उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि ऊँची पहाड़ियों पर बीते दिन से हो रही बर्फवारी के बाद आग पर काफी हद तक स्वतः ही बुझ रही है।

वन विभाग के मुताबिक आग की शुरुआत सेना की 12वीं ग्रेनेडियर फायरिंग रेंज से हुई और लापरवाही के चलते यह फैलती गई। धधकती आग से इस क्षेत्र का तापमान इन दिनों 18 डिग्री से ऊपर पहुंच चुका है, पिछले सालों तक यहां इस मौसम में दो से पांच डिग्री तापमान हुआ करता था।

तेज बारिश और बर्फबारी इस मौसम की खासियत हुआ करती थी। स्थानीय नागरिक बताते हैं कि पिछले कई सालों के मुकाबले दिसंबर 2015 में बर्फबारी काफी कमजोर रही, मगर जंगल के धधकने का ऐसा मंजर इन दिनों में उन्होंने बीते सालों में कभी नहीं देखा।

18 दिन से धधक रही यह आग हर्षिल से करीब 10 किलोमीटर दूर बलदोड़ी के जंगलों तक फैल चुकी है। इस क्षेत्र में देवदार, कैल, भोजपत्र के जंगल के अलावा सतुआ, अतीश, कौड़ाई, मीठा, जटामासी आदि ढेरों वनस्पतियों का खजाना है। यहां हिम तेंदुआ व कस्तूरी मृग का वास स्थल भी है। आग लगने को लेकर सेना को जिम्मेदार ठहराए जाने को लेकर सेना का पक्ष जानने का प्रयास किया गया, मगर फिलहाल कोई कुछ कहने को तैयार नहीं हुआ।

जंगल की आग से निपटने के लिए बनाई गई वनाग्नि -2017 कार्ययोजना धरातल पर उतरने से पहले ही हर्षिल के जंगलों में भड़की आग ने वन विभाग को बेमौसम चुनौती दे दी है। दरअसल, वन विभाग इस स्थिति का समय से अंदाज नहीं लगा सका कि नीयत समय पर बरसात और बर्फबारी न होने की वजह से जंगलों में नमी घट रही है, इससे आग का खतरा बढ़ गया है। एक चिंगारी दावानल बन सकती है।

सामान्यत: जंगलों में आग का मौसम तो फरवरी-मार्च के बाद आता है, बीते साल फरवरी के पहले सप्ताह में उत्तरकाशी में पहली आग भड़की थी। माना जाता है कि दिसंबर के महीने में जंगलों में भरपूर नमी रहती है। इसी वजह से इसे फायर लाइन काटने का मौसम कहा जाता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन ने स्थिति उलट दी है। इससे पत्ते, खेत के घूंट, पेरुल और कचरा जलाने से जंगल आग पकड़ रहे हैं। प्रतिवर्ष जंगलों में आग की घटनाओं के मद्देनजर महानिदेशक वन एवं पर्यावरण डॉ. एसएस नेगी ने वन विभाग को आग से निपटने की रणनीति बनाने के आदेश दिए थे।

इस पर प्रमुख वन संरक्षक (परियोजनाएं) जयराज की अध्यक्षता में वन विभाग के आला अधिकारियों की बैठक में कार्ययोजना फाइनल की गई। वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. ओमवीर सिंह का कहना है कि जंगलों में नमी बनाए रखने के लिए जंगलों में ‘वॉटर होल’ बनाने की योजना बनाई गई है, जिससे जंगलों में नमी बनी रहे। वन विभाग ने वनाग्नि-2017 कार्ययोजना तैयार भी कर ली, मगर इस कार्ययोजना के लागू होने के पहले ही जंगलों ने आग पकड़नी शुरू कर दी।