मजबूत’ त्रिवेंद्र की ‘मजबूर’ कैबिनेट…

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योगेश भट्ट 
जिस तरह निर्विवादित तरीके से त्रिवेंद्र सिंह रावत को 57 विधायकों ने अपना नेता चुना, उससे यह लगा कि वे एक मजबूत मुख्यमंत्री साबित होंगे । लेकिन पहले ही पायदान पर उनकी ‘मजबूती’ में ‘मजबूरी ‘साफ झलकने लगी है।

उनकी कैबिनेट में शामिल चेहरे यह ‘हकीकत’ बयान करने के लिए काफी हैं। प्रचंड बहुमत से बनने वाली सरकार, एक साफ सुथरी कैबिनेट तैयार करने में न जाने क्या संतुलन साधने के फेर में पड़ गई? जिस वक्त त्रिवेंद्र कैबिनेट के सदस्य परेड ग्राउंड में शपथ लेते हुए यह पंक्ति पढ रहे थे कि वे संविधान के प्रति पूरी निष्ठा रखते हुए, भय, पक्षपात, अनुराग और द्वेष के बिना न्याय करेंगे, कुछ चेहरों को देख तो उस वक्त वहां मौजूद जनसमूह ने भी संभवत: यह महसूस किया होगा कि मानो कोई सीने पर ‘नश्तर’ चला रहा है। क्योंकि कैबिनेट में शामिल किए गए कुछ मंत्रियों का ‘रिकार्ड’ इन शब्दों से दूर-दूर तक मेल नहीं खाता।

कैबिनेट में शामिल किए गए हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य तो ऐसे चेहरे हैं, जो कांग्रेस शासन में भी मंत्री रहते हुए तमाम विवादों में रहे हैं। छवि के लिहाज से देखें तो इनकी छवि साफ सुधरी नहीं ठहराई जा सकती। दूसरी ओर, पहली बार मंत्री बनाए गए अरविंद पांडे की बात करें तो आपराधिक छवि होने के बावजूद उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। इससे साफ होता है कि मंत्री बनने के लिए छवि कोई पैमाना नहीं है।

सवाल यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी थी कि इतना प्रचंड बहुमत होने के बावजूद वे बागियों और दागियों से किनारा नहीं कर पाए? जहां तक बागियों की बात है तो उनसे बगावत भाजपा ने नहीं करवाई, बल्कि वे अपने तत्कालीन नेतृत्व यानी हरीश रावत की कार्यशैली और रीति-नीति से परेशान थे। यह बात खुद बागियों ने ही स्वीकारी थी कि वे हरीश रावत की मनमानी से परेशान हैं । इसके बाद उनका भाजपा का दामन थामना और उस पर उन्हें मंत्री बनाया जाना, वह भी तब जबकि बहुमत जैसी कोई मजबूरी न हो, बेहद आश्चर्यजनक है।

सवाल यह उठता है कि यदि इन्हें मंत्री न बनाया जाता तो सरकार को कौन सा खतरा होना था? दूसरा सवाल यह कि, बिना मंत्री बने, केवल विधायक रहते हुए क्या ये बागी प्रदेश के विकास में योगदान नहीं दे पाते? ये वो सवाल हैं जो न केवल भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं के ही नहीं बल्कि प्रदेश की आम जनता के जेहन में भी हैं। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का दावा था कि वह सत्ता में आने पर जातिवाद और क्षेत्रवाद जैसी बुराइयों से ऊपर उठकर काम करेगी।

सरकार में सबको प्रतिनिधित्व दिया जाएगा। इसके बाद जब जीत मिली और त्रिवेंद्र विधायक दल के नेता चुने गए तो उनका पहला बयान यही था कि, उनकी सरकार पारदर्शी, भ्रष्टाचारमुक्त और गरीबोन्मुखी होगी। क्या इस कैबिनेट से यह उम्मीद की जा सकती है? जाहिर है कुछ तो मजबूरियां होंगी जिनके चलते त्रिवेंद्र को इतनी ‘मजबूर’ कैबिनेट बनानी पड़ी। ऐसे में तो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस दावे पर भी सवाल उठता है, जो उन्होंने अपनी चुनावी रैली में किया ।

देहरादून में हुई रैली में मोदी का कहना था कि प्रदेश में भाजपा की नई सरकार उनकी निगरानी में काम करेगी। लेकिन नई सरकार में जो मंत्री बनाए गए हैं, उनमें से कुछ तो ऐसे हैं, जिनकी फितरत ही यही है कि वे किसी की भी निगरानी में काम नहीं करते। बहरहाल मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनकी टीम को बधाई और शुभकामनाएं, इस उम्मीद के साथ कि वे मजबूर कैबिनेट से प्रदेश को मजबूती के साथ सही दिशा में ले जा सकें।

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