देश में नौनिहालों की स्थिति चिंताजनक !

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  • बाल अपराधों में सर्वधिक असुरक्षित स्थान देश की राजधानी दिल्ली
  • दिल्ली में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर सबसे ज्यादा 25.4फीसदी 
  • बलात्कार के मामले में मध्यप्रदेश शीर्ष पर
  • सभी घटनाएं समाज के दूषित और घृणित चेहरे को लाती हैं हमारे सामने 

रूचिता बहुगुणा उनियाल

नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो NCRB के आँकड़े कहते हैं कि 2015 से 2016 के बीच बच्चों के प्रति अपराध के मामले 11%.बढ़े 2017 और 2018  में इस % में जबरदस्त उछाल आया । रोजाना लगभग  290 बच्चे अलग अलग प्रकार के अपराधों के शिकार होते हैं। इन अपराधों में मुख्य रूप से यौन शोषण, बलात्कार,  बाल तस्करी, और अपहरण हैं। बच्चों के प्रति हो रहे अपराधों में सबसे ज्यादा असुरक्षित स्थान देश की राजधानी दिल्ली है। NCRB  के अनुसार दिल्ली में बच्चों के खिलाफ अपराध की दर सबसे ज्यादा 25.4% थी। जबकि बलात्कार के मामले में मध्यप्रदेश शीर्ष पर है।

बात वर्ष 2011 की ,की जाए तोे देश की राजधानी दिल्ली में बाल अपराध के सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए।आँकड़ों की मानें तो 2011 में बच्चों के खिलाफ अपराध के  33098 मामले दर्ज हुए जबकि 2010 में ये सिर्फ 26694 किए गए थे ,यानि कि एक वर्ष में बच्चों के खिलाफ अपराधों में 24% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। जहाँ तक नई पीढ़ी को बर्बाद करने का मामला है तो उसमें सबसे ज्यादा विकृत अपराध बच्चियों के साथ बलात्कार जैसा घिनौना अपराध है।

एक बच्चे के मनोविज्ञान के हिसाब से सोचा जाए तो यदि वो बच्चा या बच्ची यौन शोषण के बाद जीवित रह जाता है तो जीवनभर के लिए उसके मानस पटल पर वो जघन्य अपराध अंकित हो जाता है। इस प्रकार से वो बालिका या बालक कुंठाग्रस्त होकर ही जीवन गुजारता है।

उन्नाव में एक लड़की द्वारा विधायक पर गैंगरेप का आरोप हो या फिर कठुआ मामला, जहाँ रिसाना में दो समुदायों की लड़ाई में एक नाबालिग मासूम 8 वर्ष की बालिका की रेप के बाद हत्या हो या फिर असम के नगांव में पांच वर्ष की बच्ची के रेप का मामला हो जिसमें 90% जली बच्ची ने कुछ दिनों तक अस्पताल में संघर्ष करने के बाद दम तोड़ दिया या फिर बिहार के सासाराम में 6 वर्ष की बच्ची से रेप का मामला हो ,,,सभी घटनाएं समाज के दूषित और घृणित चेहरे को हमारे सामने लाती हैं।

अपहरण कहा जाए या फिर बाल तस्करी क्योंकि इस मामले में कोई प्रकाश अभी तक नहीं डाला गया है लेकिन इस संबंध में देश की राजधानी दिल्ली  NCR क्षेत्र के नोएडा में उत्तराखंड से संबंध रखने वाली कशिश रावत को गुम हुए दो वर्ष हो गए,,, सामाजिक कार्यकर्ता और कशिश रावत मुहिम से जुड़े श्री नन्दन सिंह रावत जी ने बताया कि सर्व समाज की कड़ी मेहनत, राजनीति में मुख्य मंत्री से केबिनेट मंत्री और प्रशासन पर निरंतर मुलाकात व दबाव, भूख हड़ताल, और सैकड़ों धरने प्रदर्शन, सैकड़ों संस्थाओं के पत्र व्यवहार के बाद भी कोई हल नहीं निकल सका । जब देश की राजधानी में ये हाल है तो अन्य राज्यों की स्थिति तो और भयावह होगी।

जब  बच्चीयों पर हो रहे इन अपराधों के विरुद्ध सरकार और सिस्टम कड़े कानून बनाती है तो ये आपराधिक प्रवृत्ति के नर पिशाच अपनी यौन पिपासा का शिकार लड़कियों के स्थान पर बालकों को बनाते हैं और दिल्ली का प्रद्युम्न हत्याकांड इस बात का ज्वलंत उदाहरण है।

सवाल ये है कि इन जैसे आपराधिक प्रवृति के लोगों की मानसिकता क्या होती है? इसके पीछे कई कारण हैं,,, मसलन ,,,,अनियंत्रित कामेच्छा, उच्चवर्ग हो ,संभ्रांत वर्ग या फिर निम्न वर्ग इन सभी में ऐसी आपराधिक प्रवृति के लोग मिल जाएंगे जो इस तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं।उच्च वर्ग में ये मानसिकता कि निम्न वर्ग को जब चाहे कुचला रौंदा जा सकता है,, धन के बूते,, सत्ता के प्रभुत्व में,,,निम्न वर्ग की यह कुंठा कि वो उच्च वर्ग के किए गए अन्याय का न्याय कर रहे हैं और मध्यम वर्ग की सोच कि वे उच्च और निम्न वर्ग से कदमताल नहीं कर सकते। समाज में समरसता और आर्थिक, सामाजिक व शैक्षिक स्तर पर असमानता की कमी इस तरह के अपराधियों को बढ़ावा देने के लिए आग में घी का काम करती है।

आर्थिकी असमानता सर्वप्रथम दूर करने की आवश्यकता है यदि ऐसा हुआ तो उन लोगों के बच्चे भी स्कूल का मुख देख सकेंगे जो झुग्गियों में बसर कर रहे हैं और स्कूली शिक्षा में यौन शिक्षा का अनिवार्य करना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है क्योंकि बाल मन पर जैसा प्रभाव शिक्षा का होगा समाज को वैसा ही भविष्य देखने को मिलेगा जब झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को भी शिक्षा उपलब्ध होगी तो वो सस्ता यौन साहित्य और विकृतियों को बढ़ावा देने वाली चीजों से सजग होंगे और आपराधिक मनोवृत्ति कम होगी। इन अपराधों को कम करने के लिए शिक्षा दीक्षा,,, रहन सहन दुरूस्त करने की आवश्यकता है। नई पौध के बच्चों को ठीक तहजीब और सही गलत का भेद बताने की जरूरत है।

इन खतरनाक अपराधों में बाल तस्करी भी एक बहुत बड़ा अपराध है जो कि एक बहुत मजबूत और संगठित कड़ी के रूप में किया जाता है,,,, नौनिहालों को बाल तस्करी के माध्यम से यौन उत्पीड़न,,, बाल मजदूरी,,,, भीख मांगने और अन्य प्रकार के गंभीर अपराधों का शिकार बनाया जाता है,,, यहां तक कि इसमें मानव अंग तस्करी भी शामिल है। 

इन समस्याओं पर अंकुश लगाने के लिए सरकारी व गैर सरकारी संगठनों का मानना है कि इस पर ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।साथ ही उनका दावा है कि जो आँकड़े बताए जाते हैं वो सही नहीं हैं क्योंकि कई हजारों मामले ऐसे हैं जो पुलिस तक नहीं पहुंच पाते या जो पहुंच कर भी कई बार पैसे या सत्ता के बूते दबा दिए जाते हैं,,, असली स्थिति और ज्यादा गंभीर है।

2015 में जो मामले दर्ज हुए वो कुल 94172 थे जबकि 2016 में बढ़कर 1.07 लाख हो गए 2017 में इसमें जबरदस्त उछाल आया जो कि वर्ष 2018  में भी जारी है। क्राई की नेशनल रिपोर्ट के अनुसार 2006 से 2017 तक इन मामलों में 600% से भी अधिक की वृद्धि हुई । जाहिर है कि इस समस्या की कोई एक वजह नहीं है इसलिए इसपर अंकुश लगाने के उपायों का भी बहुआयामी होना जरूरी है।

इसके अलावा समाज में ऐसे अपराधों के प्रति जागरूकता पैदा करना भी जरूरी है,, गरीबी, बेरोजगारी ,आर्थिक व लैंगिक असमानता जैसे मुद्दों पर ध्यान देकर इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए सभी को एकजुट  व एकमत होकर कार्य करना होगा। महज कानून और दिशानिर्देश बना कर इस समस्या पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता,,,, ऐसे मामलयों में शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाया जाना भी काफी हद तक कारगर साबित हो सकता है