त्रियुगी नारायण शिव-पार्वती का विवाह स्थल

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रुद्रप्रयाग में स्थित ‘त्रियुगी नारायण’ यात्रा की एक पवित्र जगह है, माना जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की राजधानी था। रोचक तथ्य यह है कि जिस हवन कुण्ड की अग्नि को साक्षी मानकर विवाह हुआ था वह अभी भी प्रज्वलित है। मान्यता के आधार पर इस हवन कुण्ड की राख, भक्तों के वैवाहिक जीवन को सुखी रहने का आशीर्वाद देती है। वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था।

पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रासन पाने के लिए राजा बलि को सौ यज्ञ करने थे, इनमें से बलि 99 यज्ञ पूरे कर चुके थे तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर उन् रोक दिया जिससे कि बलि का यज्ञ भंग हो गया यहां विष्णु भगवान वामन देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

इसी पवित्र स्थान के आस-पास ही एक विष्णु मंदिर भी है। इस मंदिर की वास्तुशिल्प शैली भी केदारनाथ मंदिर की ही तरह है। इस जगह के भ्रमण के दौरान पर्यटक रुद्र कुण्ड, विष्णु कुण्ड और ब्रह्म कुण्ड भी देख सकते हैं। इन तीनों कुण्डों का मुख्य स्त्रोत ‘सरस्वती कुण्ड’ है। मान्यताओं के अनुसार, इस कुण्ड का पानी भगवान विष्णु की नाभि से निकला है। इस जगह को महिलाओं के बांझपन का इलाज करने के लिए भी जाना जाता है।

शिवरात्रि पर भगवान शिव-पार्वती की शादी हुई थी इसलिए इस पर्व को भगवान की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। भगवान शिव के विवाह को लेकर कई तरह की कथाएं अलग-अलग धर्म ग्रंथों में प्रचलित हैं।मान्यता है कि भगवान शंकर ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था। इसका प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के समक्ष विवाह के फेरे लिए थे।

तब से अब तक यहां अनेकों जोड़े विवाह बंधन में बंधते हैं। लोगों का मानना है कि यहां शादी करने से दांपत्य जीवन सुख से व्यतीत होता है। त्रेतायुग का यह शिव पार्वती के विवाह का स्थल रुद्रप्रयाग जिले के सीमांत गांव में ‍त्रियुगीनारायण मंदिर के रूप में वर्तमान में आस्था का केंद्र है।

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पार्वतराज हिमावत या हिमावन की पुत्री थी। पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था। पार्वती ने शुरू में अपने सौंदर्य से शिव को रिझाना चाहा लेकिन वे सफल नहीं हो सकी। त्रियुगीनारायण से पांच किलोमीटर दूर गौरीकुंड कठिन ध्यान और साधना से उन्होंने शिव का मन जीता। जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं। पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव ने पार्वती के समक्ष केदारनाथ के मार्ग में पड़ने वाले गुप्तकाशी में विवाह प्रस्ताव रखा था। इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी साेन आैर गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ।

ऐसा भी कहा जाता है कि त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।

विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।

जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक ‍जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।