कभी बजी सारंगी तो कभी ”राका” राज, अब बजा ”गंजा” साज

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राजेन्द्र जोशी 

उत्तराखंड सचिवालय से लेकर राज्य के जिलों तक एक ज़माने में लम्बे समय तक कभी ”सारंगी” बजती थी तो कभी ”राका” की तूती बोलती थी,ठीक उसी तर्ज पर अब सत्ता के गलियारों से लेकर सत्ता के शीर्ष तक ”गंजे” की तूती बोलनी शुरू हो गयी है, फर्क सिर्फ इतना है ”राका” गुटबाजी कम करता तो था लेकिन अपने आका को खुश करने के लिए। यहाँ तो ”गंजा” गुटबाजी के तहत अपने प्यादों को शतरंज की मुहरों की तरह मालदार और रसुकदार पदों पर बैठाने की जुगत में लगा रहता है उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि उसकी इन चालों से उसके ”आका” को कहीं कोई परेशानी न झेलनी पड़े। लेकिन ”गंजे” की चालों से अब तक ”आका” को कई बार नीचा देखना पड़ा है जबकि ”सारंगी” व ”राका” के कार्यकाल में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो। हाँ चर्चाएं तो यहाँ तक आम हैं कि ”सारंगी” व ”राका” ने अपने कार्यकाल के दौरान कभी भी अपने ”आकाओं” पर आंच नहीं आने दी और ”पाप” का सारा ठीकरा अपने  ही सर फुडवा दिया।

बात सरकार के गठन से लेकर आज तक की करें तो ”गंजे” के खिलाफ पूर्व से चल रहे कई मामलों को लेकर संघ से लेकर सत्ता के गलियारों तक कई किस्से सुनाई देने लगे यहाँ तक कि अग्निकांड के वे  12 नर  कंकाल जमीन में कई फीट गहरे दबे हुए थे वे भी कब्र से बाहर आकर ”गंजे” की दास्तां गाने लगे। तो वहीँ गरीबों के लिए सरकारी दवा घोटाले का 600 करोड़ का जिन्न भी बाहर निकल अपनी गाथा सुनाने लगा,ऐसे में कई बार तो ”आका” अपने आप को असहज महसूस करने लगे थे। लेकिन पता नहीं क्यों आखिरकार ”आका” ने गंध से भरी इस पोटली को ढ़ोने का इरादा मजबूत कर लिया और सारे ज़माने की बुराइयाँ मोल लेने का ठेका ले लिया। ऐसा नहीं कि ”आका” के दरबार में और हीरे नहीं लेकिन उन नायाब हीरों को छोड़ ”आका” का ”गंजे” से प्यार किसी के गले नहीं उतर रहा है।

”गंजे” का एक ख़ास ”शागिर्द” है जिसे लाट साहब से लेकर पूर्ववर्ती कई ”आकाओं” ने कभी गले लगाया तो कभी दूध की मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंका। लेकिन ”शागिर्द” भी कम खेला खाया नहीं तमाम विवादों के साये के साथ में होने के बावजूद आज तक कोई उसका बाल बांका नहीं कर पाया है। एक कहावत है ना कि खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है ठीक इसी तर्ज पर ”शागिर्द” कहने को तो मास्टर है लेकिन ”गंजे” के साथ रहते-रहते अपने आप को साहब समझने लगा है। साहब समझे भी क्यों नहीं, गंजे ने जितने भी पद सूबे में साहबों के लिए बने थे लगभग ”शागिर्द” को सभी पर बैठाकर देख लिया, लेकिन ”शागिर्द भी पक्का गुरु का चेला निकला जहाँ – जहाँ बैठा वहां- वहां बन्ठाधार करता चला गया। आखिरकार ”गंजे” ने तमाम विरोधों के बावजूद ”शागिर्द” को देश की राजधानी में साहब बनाकर भेजा। अब ”शागिर्द” तो कहाँ चुप चाप साहब की कुर्सी पर बैठने वाला था लगा वहां भी खुड्पेंच करने, ”शागिर्द” ने ऐसा ताना बना बुना की एक बजीर के कंधे का इस्तेमाल कर अब लगा दनादन गोली चलाने, अब यह देखना है कि गोली उसके निशाने पर लगती है या वह खुद ही आत्महत्या करता है।
 बहरहाल अब यह देखने वाली बात यह होगी कि ”गंजे” और ”शागिर्द” की यह जोड़ी ”आका” की 58 नाविकों वाले जहाज ”टायटेनिक” को पार लगाते हैं या ”टायटेनिक” के साथ ही डूब जायेंगे।