मंत्रियों के बंगलों में भ्रष्टाचार की ‘त्रिवेणी’

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जिस मंत्री के पास बिना नक्शा स्वीकृत किए कोई भी निर्माण कार्य न होने देने का जिम्मा है, उसी मंत्री के यहां सरकारी आवास पर बिना मानचित्र स्वीकृति के निर्माण कार्य कराया जा रहा है। इस आवास में अभी कुछ ही साल पहले लाखों रूपये की लागत से बने भारी भरकम हाल को तुड़वा कर एक नया हाल बनाया जा रहा है, जिसकी कीमत 30 लाख से भी ऊपर बताई जा रही है।

योगेश भट्ट 

उत्तराखंड में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है। इसलिए, क्योंकि सरकार खुद भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का दावा करती है। लेकिन सवाल ये है कि जब भ्रष्टाचार की ‘त्रिवेणी’ सरकार के ‘घर’ यानि मंत्रियों के बंगलों से निकल रही हो, तो फिर दावों पर कैसे यकीन किया जाए? जब जब विकास योजनाओं का दायरा बढ़ाने की बात होती है, नये रोजगार सर्जित करने की बात होती है, कर्मचारियों की जायज मांगें मानने की बात होती है, तब तब सरकार बजट का और आर्थिक तंगी का रोना रोती है। तब सरकार मितव्ययता की दलील देती है।

मगर इन दलीलों की धज्जियां कैसे उड़ती है, इसका नजारा मंत्रियों के बंगलों में खुलेआम देखा जा सकता है। नियम- कानून, मितव्ययता और सादगी की बात करने वाले मंत्रियों के बंगलों में इन दिनों जमकर इनकी धज्जियां उड़ रही हैं। सरकार की तमाम दलीलें यहां फरेब हैं ,मंत्री अपने-अपने सरकारी आवासों में अपने मन-मुताबिक साज-सज्जा के अलावा बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य कराने में लगे हैं। यहां जिस तरह खर्च हो रहा है उसे देखकर कतई नहीं लगता कि राज्य कर्ज के दलदल में है। आश्चर्यजनक यह है कि निर्माण कार्यों पर होने वाले खर्च का वहन राज्य संपत्ति विभाग के साथ-साथ आफ द रिकार्ड तरीके से मंत्रियों से संबंधित विभागों से भी हो रहा है।

अपवाद स्वरूप कुछ एक मंत्रियों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी मंत्रियों के आवास पर बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। प्रदेश के शहरी विकास मंत्री एवं आवास मंत्री के आवास का तो नजारा ही अलग है। जिस मंत्री के पास बिना नक्शा स्वीकृत किए कोई भी निर्माण कार्य न होने देने का जिम्मा है, उसी मंत्री के यहां सरकारी आवास पर बिना मानचित्र स्वीकृति के निर्माण कार्य कराया जा रहा है। इस आवास में अभी कुछ ही साल पहले लाखों रूपये की लागत से बने भारी भरकम हाल को तुड़वा कर एक नया हाल बनाया जा रहा है, जिसकी कीमत 30 लाख से भी ऊपर बताई जा रही है।

राज्य संपत्ति विभाग के अलावा अन्य संस्थाओं से भी इस पर खर्च किया जा रहा है। राज्य की व्यवस्था के लिए यह बड़ा सवाल क्यों नहीं है? कोई यह पूछने वाला क्यों नहीं कि एक तरफ तो नियमों की अनदेखी और दूसरी तरफ मितव्ययता के दावे का उपहास क्यों ? क्या ये मंत्री यह मान बैठे हैं कि ये उनका स्थाई निवास या पैतृक सम्पत्ति है? रेनोवेशन के नाम पर इतना निर्माण तो शायद ही कोई अपने स्थाई निवास में भी करता हो। यह आलम तब है, जब पहले से ही इन आवासों मे मंत्री रहते आए हैं और साज-सज्जा कराते रहे हैं।

इस पूरे प्रकरण में एक अहम बात यह भी है मंत्रियों के बंगलों में चल रहे इस काम को कराने के लिए मंत्री अफसर और ठेकेदार की ‘त्रिवेणी’ बनी है, जो राजकोष का जमकर दुरूपयोग कर रही है। नियमत: मंत्रियों को टाइप-V एवं टाईप-Vl कैटेगरी के सरकारी आवास अनुमन्य हैं। इन सरकारी आवासों में किसी भी तरह का अन्य निर्माण कार्य नहीं कराया जा सकता । इसके बावजूद जो भी इनमें रहने आता है , इस तरह खर्च कराता है मानो उसे ताउम्र यहीं रहना हो ।

आश्चर्य तो यह है कि इस गलत परंपरा के बीज पिछली हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में पड़े और वर्तमान सरकार इसे शिद्दत से आगे बढाने का काम कर रही है। जिस तरह मंत्रियों के आवासों में यह सब चल रहा है, वह भ्रष्टाचार का खुला प्रमाण है। इसके बावजूद सरकार अगर सादगी के दावे करती है, तो उन पर कैसे यकीन किया जाए? वाकई यदि भ्रष्टाचार पर प्रहार करना है, तो इसकी शुरूआत तो फिर मंत्रियों के इन्हीं बंगलों से होनी चाहिए।