मूर्धन्य साहित्यकार रतन सिंह जौनसारी पर केन्द्रित पुस्तक का लोकार्पण

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मनोज इष्टवाल
देहरादून  :  नव बर्ष की शुभ बेला पर जौनसार बावर क्षेत्र के साहित्यकार व समाजसेवी इंद्र सिंह नेगी द्वारा संपादित मूर्धन्य साहित्यकार कवि गीतकार व गायक रतन सिंह जौनसारी पर “ कुछ यादें।।।कुछ बातें!” पुस्तक का लोकार्पण वयोवृद्ध साहित्यकार अचलानंद जखमोला, लोकगायक, कवि, गीतकार/साहित्यकार नरेंद्र सिंह नेगी, प्रदेश भाजपा प्रवक्ता व जौनसार-बावर क्षेत्र के जाने माने जन नेता मुन्ना सिंह चौहान, श्रीमती जौनसारी व इंद्र सिंह नेगी द्वारा किया गया।

यह पहला अवसर था जब किसी साहित्यिक व्यक्तित्व के सम्मान में नगर निगम प्रेक्षागृह खच्चाखच भरा हुआ था। यह एक शुभ संकेत भी है कि साहित्यिक व्यक्तित्व पर आधारित किसी कार्यक्रम के दौरान देहरादून ही नहीं बल्कि प्रदेश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी मात्रा में बुद्धिजीवी, साहित्यकार, समाजसेवी इत्यादि इकठ्ठा हुए हों।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता व राजनेता मुन्ना सिंह चौहान ने अपने सारगर्वित वक्तब्य में जहाँ एक ओर स्व। रतन सिंह जौनसारी को अपने जीवन शैली का एक आदर्श स्वरुप मानते हुए उन्हें पथ प्रदर्शक कहा वहीँ उन्हें याद करते हुए उस दौर को जीवंत भी किया जब वे मसूरी में 11 वीं कक्षा के छात्र थे और रोडवेज बस कंडक्टर द्वारा किसी ब्यक्ति को टिकट न दिए जाने पर उसका उग्र विरोध में उतर आये थे। मुन्ना सिंह चौहान बताते हैं कि तब न वह यह जानते थे कि रतन सिंह जौनसारी कौन हैं और क्या हैं? लेकिन जब उनका हाथ पकड़कर एक व्यक्ति ने उन्हें अपनी बगल की सीट में बिठाकर कहा कि अन्याय के विरुद्ध अपने तल्ख़ तेवर हमेशा यूँहीं बनाए रखो यह भविष्य में आपके काम आयेंगे तब बहुत साल बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि यह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि रतन सिंह जौनसारी ही थे। उन्होंने कहा वे गुरूजी के उन्हीं आदर्शों को आजतक अपना रहे हैं। उन्हें इस बात का भी बेहद मलाल था कि वे इस किताब का हिस्सा नहीं बन पाए जिसमें देश प्रदेश के लगभग ५६ साहित्यिक व्यक्तित्वों ने अपनी कलम से उन्हें जीवंत बनाया है।

वहीँ लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने 1967 का वह दौर याद किया जब रतन सिंह जौनसारी रेडिओ शिलोंग के लिए जौनसारी गीत रिकॉर्ड करने आये थे। उन्होंने कहा लखनऊ में जब उन्होंने उन्हें पहली बार जौनसारी गीत गाते हुए सुना तब वे जौनसारी जी से मिले और उन्होने जौनसारी लोक संगीत पर उनसे चर्चा की। उनका मानना है कि उन्होंने जौनसारी शब्द से ही जौनसार की परिकल्पना की और देर सबेर कई कवि सम्मेलनों में या फोन पर भी उनसे जौनसारी साहित्य पर बातें की। लेकिन वे इस बात से निराश हुए कि जौनसारी जी ने जौनसारी गीतों के बनस्पत हिंदी कविताओं पर ज्यादा कार्य करना शुरू कर दिया था भले ही वह सब उच्च कोटि की कवितायें हुई लेकिन उनके जौनसारी शब्दों के पुरोई धागे अनमोल हैं और अनमोल रहेंगे। उन्होंने जौनसारी गीतों में बिखरे शब्दों की व्यापकता को भी सराहा है। उन्होंने वर्तमान पीड़ी से आग्रह किया कि वे अब इस शब्द संसार को संभाले ताकि रतन सिंह जौनसारी उनके बीच निर्विवाद बने रहें।

श्रीमती जौनसारी ने स्व. रतन सिंह जौनसारी के साथ अपनी यादें बांटते हुए भावुकता से जहाँ पूरा माहौल ग़मगीन कर दिया वहीँ दर्शक दीर्घा में बैठे जौनसारी जी के परचितों की आँखें भी नम कर दी। उन्होंने बताया कि जौनसारी जी अस्वस्थता के बाद भी लगातार अध्ययन व लेखन में जुटे रहते थे। देर रात तक जगे रहना उनका सगल था और जब वह इसका विरोध करती थी तब जौनसारी जी यह कहकर उन्हें शांत करते थे कि उन्हें अभी बहुत कुछ लिखना है। बहुत कुछ लिखने को बाकी है। उन्हें अपने क्षेत्र से बेहद लगाव था उनकी एक ही कसमकस रहती थी कि किस तरह वह अपनी लोक संस्कृति की व्यापकता कि बरकरार रख सकें।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वयोवृद्ध साहित्यकार अचलानंद जखमोला भी बेहद भावुक नजर आये शायद उसकी वजह ये भी रही कि उनसे पूर्व श्रीमती जौनसारी का संवोधन था। अचलानंद जखमोला ने चेताया कि हमें अपनी लोक बोलियों के प्रति सजग रहना होगा ठीक वैसे ही जैसे जौनसारी जी थे वहीँ मंच संचालन की जिम्मेदारी निभा रहे वरिष्ठ पत्रकार व लोक भाषा/बोली संवर्धन परिषद के अध्यक्ष गणेश खुगशाल गणी ने पूर्व संस्कृति मंत्री नारायण सिंह राणा के उद्बोधन पर जौनसारी जी द्वारा रचित जसपाल राणा पर कविता को जौनसारी बोली से संबद्ध करते हुए कहा कि ये बोलियाँ संग्रहित होनी चाहिए क्योंकि यही भाषा भी है जिसे हम लोकभाषा के स्वरूप के रूप में प्रस्तुत करते हैं क्योंकि सबकी ग्रामर भी है शब्द भले ही अलग हों लेकिन समझ आ जाते हैं बशर्ते वह कागजों में उतरें।

देर से आये मेयर विनोद चमोली ने अपने उद्बोधन में जहाँ रतन सिंह जौनसारी जी को भावभीनी श्रधांजलि दी वहीँ उन्होंने साहित्यिक पृष्ठभूमि के व्यक्तित्वों से आग्रह किया कि वे भी ऐसा कुछ करें ताकि समाज उन्हें यूँहीं याद करे। नम आँखों से जौनसारी जी को याद करते हुए उनकी पुत्री सीमा जौनसारी ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि मुन्ना सिंह चौहान, नारायण सिंह राणा, मुन्ना सिंह राणा सहित कई प्रबुद्ध लोगों का सानिध्य उनके परिवार को मिलता ही रहता है वे इसकी आभारी हैं। उन्होंने बताया कि आगामी 1 अप्रैल को वे व उनका परिवार स्व। रतन सिंह जौनसारी की उन लिखित दो पुस्तकों को प्रकाशित करेंगे जो जौनसारी जी लिख गए हैं।

वहीँ पूर्व संस्कृति मंत्री व भाजपा नेता नारायण सिंह राणा ने कहा कि रतन सिंह जौनसारी के आगे स्व। शब्द का उपयोग न करें क्योंकि वे अमर हैं और वे जो कुछ हमारे समाज को दे गए हैं वह अनमोल है। उन्होंने मंच से घोषणा की कि आगामी 1 अप्रैल को जौनसारी जी की याद में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया जाएगा जिसे हर बर्ष आयोजित किया जाएगा वहीँ धुमसू मंच की अध्यक्ष शांति वर्मा द्वारा “जा मेरी जिकुड़ीये तू जा।।।गीत सुनाया गया जिसमें कोरस पर मीनू वर्मा व सितारा ने उनका साथ दिया।वहीँ स्वरांजलि विद्यालय के बच्चों द्वारा मनमोहन प्रस्तुती दी गयी। गायिका सितारा ने भी संगीतकार बिमला भंडारी के संगीत में जौनसारी गीत सुनाया। जौनसार के उभरते गायक सन्नी दयाल ने सबको अपनी शैली के गीत से झुमाने को मजबूर कर दिया । वहीँ लोकगायिका रेशमा शाह ने भी भरी आँखों से रतन सिंह जौनसारी जी की एक रचना सुनाकर सबको भावविभोर कर दिया। कार्यक्रम के अंत में जौनसार बावर क्षेत्र के प्रसिद्ध बांसुरी वादक सुरजू ने बांसुरी से सबका मन मोह लिया जिन्हें संगत देने उनके गुरु नन्द लाल भारती स्वयं मंच पर खंजरी लेकर आ पहुंचे। गुरु चेले की यह जुगलबंदी कमाल की थी।