स्वप्निल आंखों के राजकपूर का आर के स्टूडियो अब यादो में रह जाएगा। आर के स्टूडियो वो कला का मंदिर जहां ये सपने पूरे होते थेे। बरसात, आवारा, संगम श्रीचार सौ बीस, बाबी, मेरा नाम जोकर, जागते रहो, सत्यम शिवम सुंदरम , राम तेरी गंगा मैली जैसी फिल्मों की यादों को समेटे आर के स्टूडियो अब स्वयं में यादों में रह जाएगा। वो गीत, वो संगीत , वो चित्रों की छवियां, रीलें , वो जश्न, वो कसक, वो बातें, वो रंगों का कुंड , वो साज , अब किस्सों में रह जाएंगे।
वेद विलास उनियाल
मुंबई का आरके स्टूडियो अब यादों में रहेगा। भारतीय फिल्मों के शो मैन राजकपूर ने अपनी फिल्मों को साकार करने के लिए जिस चार सौ एकड़ पर इसे बनाया था, वह अब बिकने को है! मुंबई आने वाले लोगों के लिए फिल्मी सितारों की एक झलक पाने से कम रोमांचक नहीं होता था आरके स्टूडियो को बाहर से ही सही, जी भर निहार लेना। राजकपूर के जाने के बाद उन्हें चाहने वालों ने इस जगह को कहीं ज्यादा रूमानियत और भावुकता से देखा है।
‘बरसात’ फिल्म की सफलता, ‘आवारा’ की शोहरत, ‘श्री 420’ में युवा सपनों की कशमकश, ‘संगम’ की रूमानियत, ‘मेरा नाम जोकर’ का दर्शन, ‘बॉबी’ का चकाचौंध करता ग्लैमर, ‘राम तेरी गंगा मैली’ या फिर साठ के दशक से तय हुई कहानी ‘हिना’ का बनना-संवरना इसी आरके स्टूडियो में हुआ है। यही नहीं, आरके बैनर से बाहर की भी कई फिल्मों की शूटिंग इस स्टूडियो में हुई है। बिहार की कोयला खदान, कश्मीर के गुलमर्ग, लेह और दक्षिण के ऊटी जैसे इलाकों के सेट यहां इतनी सुंदरता से तैयार किए गए कि लगा उन्हीं जगहों पर कैमरा घूम रहा हो।
राजकपूर का आरके स्टूडियो केवल फिल्म निर्माण के लिए ही नहीं, बल्कि फिल्म जगत की संस्कृति और सुनहरी यादों के लिए भी लोगों के मन में आकर्षण जगाए रहा। कितना अजीब दुर्योग है कि राजकपूर ने जिस पहली फिल्म को ‘आग’ नाम दिया, उस आग ने उनका पीछा उनके निधन के करीब ढाई दशक बाद भी नहीं छोड़ा। बेशक शो मैन इस दुनिया से चले गए थे, लेकिन आरके स्टूडियो में संजोए बरसात, आवारा, संगम फिल्म के चित्र, पुरानी फिल्मों की रीलें, मेरा नाम जोकर का जोकर, पुरानी वायलिन, सब कुछ मौजूद था। कुछ समय पहले स्टूडियो के एक बडे हिस्से में लगी आग इन स्मृतियों को तो जला ही गई, कपूर परिवार के आरके स्टूडियो को खड़ा रख पाने की हसरतों को भी तोड़ गई। बेशक यहां 1998 के बाद किसी फिल्म या टीवी सीरियल की शूटिंग नहीं हो रही थी, फिर भी उस इलाके में खड़ा आरके स्टूडियो अपनी कई स्मृतियों के साथ था।
राजकपूर की फिल्म ‘आग’ में थियेटर व फिल्म कला के प्रति समर्पित नायक को फिर से खड़ा होता दिखाया गया है, लेकिन असल जिंदगी में थियेटर में लगी आग को बुझा तो दिया गया, आरके स्टूडियो को संवारने के मंसूबे तार-तार हो गए। कपूर परिवार के होनहार जिस आरके स्टूडियो में वह अपने पूर्वज पृथ्वीराज कपूर और राजकपूर की प्रतिमा को प्रणाम करने जाया करते थे, वह सब अब अतीत की दास्तान बन कर रह जाएगी। आरके स्टूडियो की कुछ स्मृतियां बचतीं भी, लेकिन शायद कपूर परिवार अब आगे नुकसान झेलने की स्थिति में नहीं है।
आरके बैनर स्थापित करने वाले राजकपूर, नरगिस, शंकर-जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत, मुकेश, मन्ना डे, के अब्बास जैसे कलाकार भले इस दुनिया में न हों, यहां की अनुगूंज में उनके वक्त को महसूस किया जा सकता था। ये सुने गए किस्से हैं कि आरके की होली के अपने कई रंग थे। इन रंगों में कत्थक नृत्यांगना सितारा देवी भी रंगती थीं और मशहूर कव्वाल शंकर शंभू की कव्वाली भी परवान चढ़ती थी। आरके स्टूडियो दूसरों से अलग इस रूप में भी रहा कि राजकपूर ने इस स्टूडियो को उत्सवी स्वरूप दिया, कल्पना के पंख लगाए। यहां की हलचलों को इतना आकर्षक बनाया कि आरके स्टूडियो आना किसी उत्सवी मेले में आने की तरह रहा।
जिस स्टूडियो में राजकपूर बेहद संजीदा होकर दिन-रात काम करते रहे, उसी के अनेकों रोमांचक पल लोगों तक किस्से कहानियों की तरह पहुंचते रहे। गणेशोत्सव की झांकियों के बीच यह भी रोमांचित होकर देखा गया कि इस बार आरके बैनर कैसी झांकी लेकर आ रहा है। होली में उत्सुकता रही है कि रंगों के तालाब में इस बार किस-किस को भिगोया जाना है। फिल्म जगत की तमाम हलचलों, गॉसिप्स के बीच आरके स्टूडियो ने हमेशा अपनी जगह बनाए रखी। शो मैन की तरह उनका स्टूडियो भी अपनी एक खास अदा के साथ रहा।