जनता ने लिखी सियासत की नई इबारत

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मजबूत सरकार बनाने के लिए इससे बड़ा नहीं कोई जनादेश 

योगेश भट्ट 

सोलह साल से राजनीतिक अस्थिरता झेल रहे उत्तराखंड ने इस बार सियासत की नई इबारत लिख दी है। विधानसभा चुनाव में ऐसा जनादेश दिया कि इतिहास ही रच दिया। एक मजबूत सरकार बनाने के लिए इससे बड़ा जनादेश हो भी नहीं सकता है। दरअसल प्रदेश का अब तक का सियासी अनुभव बेहद बुरा रहा है।

अंतरिम सरकार के कार्यकाल के बाद प्रदेश में तीन निर्वाचित सरकारें आ चुकी हैं, लेकिन हर बार राजनीतिक अस्थिरता हावी रही। हर सरकार का मुखिया प्रदेश चलाने के बजाय अपनी कुर्सी बचाने में ही लगा रहा। कुर्सी के लिए सत्ताधारी दल के भीतर सत्ता संघर्ष चलता रहा। कोई कुर्सी बचाने में लगा रहा तो कोई कुर्सी हथियाने की जुगत में लगा रहा। नतीजा, सोलह साल में आठ मुख्यमंत्री। इस दौरान हर सरकार दबाव में ही काम करती रही। कभी कर्मचारियों के दबाव में, तो कभी नौकरशाहों के दबाव में, कभी मंत्रियों के दबाव में तो कभी मंत्रिपद चाहने वाले विधायकों के दबाव में, सरकारें अपनी भूमिका के साथ अन्याय करती रहीं। दबाव का आलम यह रहा कि एक मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर यह बात कबूली कि, सरकार बचाने के लिए उन्हें अपने मंत्री, विधायकों के कारनामों पर आंखें मूंदनी पड़ी।

आश्चर्य ये है कि जब-जब सरकार की इस बेचारगी का मुद्दा उठा तो गेंद हर बार यह कह कर जनता के पाले में डाल दी गई कि उसने सरकार को कमजोर जनमत दिया है। लेकिन इस बार ‘कटघरे’ में खड़ी जनता ने एक दल को प्रचंड बहुमत देकर इस बहाने का मौका ही खत्म कर दिया है। अब जो भी उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनेगा, उसे न तो अल्पमत का डर होगा, न बागियों के दबाव का सामना करना पड़ेगा, ना विपक्ष की ब्लैकमेलिंग झेलनी पड़ेगी और ना ही केंद्र से होने वाले भेदभाव का डर रहेगा, क्योंकि केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है।

70 विधानसभा सीट वाले प्रदेश में 57 विधायकों का सत्ता में होना एक मजबूत सरकार का परिचायक है। ऐसी सरकार जिसे लीक से अलग हटकर काम करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए। जिस तरह जनता ने नई इबारत लिखी है, उसी तरह अब सरकार को भी नई इबारत लिखने में पीछे नहीं रहना चाहिए। राज्य हित में मजबूत और परिवर्तनकारी फैसले लेने से नहीं डरना चाहिए। जनता ने इसी लिए सरकार को इतनी ज्यादा ताकत दी है।

इस मजबूत सरकार के आगे अनियंत्रित और अराजक हो चुकी नौकरशाही भी दंडवत होगी। इतना ही नहीं बल्कि दबाव की राजनीति करने वाले तमाम राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठन भी सरकार पर मनचाहा दबाव नहीं डाल सकेंगे। ऐसे में सरकार से अब सिर्फ मजबूत इच्छाशक्ति की दरकार है। उन फैसलों को लेने की दरकार है, जिन्हें लेने की बात तो पिछली सरकारें भी करती थीं, लेकिन हर बार कमजोर बहुमत का रोना रोकर चुप हो जाती थीं। कुल मिलाकर जनादेश के लिहाज से देखें तो प्रदेश की तकदीर बदलने का वक्त आ गया है। अब उम्मीद की जाती है कि सरकार खनन, शराब और जमीन से आगे की बात करेगी। उम्मीद की जाती है कि अब प्रदेश में रीति-नीति की बात होगी और सरकार आम जनता की आकाक्षाओं के अनुरूप काम करेगी।

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