सड़क किनारे मल-मूत्र त्याग करने को मजबूर तीर्थयात्री 

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  • -होटलों में पर्याप्त शौचालय की नहीं है सुविधा
  • -स्वच्छता अभियान बन गया सिर्फ अभियान 
रुद्रप्रयाग । स्वच्छता अभियानः चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात। मामला स्वच्छता का हो या किसी और बात का, अभियान स्वयं में उद्देश्य की प्राप्ति नहीं करते। अभियानों का मुख्य मकसद लोगों को मुद्दे के प्रति सचेत करना और उन्हें समुचित दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना है। यदि मकसद पूरा हो सका और समस्या को लेकर कुछ कर पाने की संभावना लोगों में निहित हो जाए तो अभियान की सार्थकता सिद्ध हो जाती है। अन्यथा अभियान अभियान मात्र बन कर रह जाता है। आप प्रतिदिन अभियान नहीं चला सकते और न ही आम जन उसमें रोज-रोज भागीदारी निभा सकते हैं। 
स्वच्छता को लेकर आज भी हम गंभीर नहीं हैं। इन दिनों चारधाम यात्रा चल रही है। देश के विभिन्न हिस्सों से तीर्थयात्री यात्रा पर आए हैं। स्थिति यह है कि यात्री सड़क किनारे और नदी में जहां-तहां मल-मूत्र कर रहे हैं। इस पर किसी तरह की रोकथाम नहीं है। स्थिति यह है कि होटल स्वामी यात्रियों को हाॅल देकर ठहरा तो देते हैं, लेकिन उनके लिए शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं होती। ऐसे में यात्री सड़क किनारे कहीं पर भी मल-मूत्र त्याग देते हैं। जगह-जगह शौचालय न होने से भी यह समस्या सामने आ रही है। 
स्थानीय निवासी सौरभ तिवारी कहते हैं कि जहां तक स्वच्छता का मामला है, मैं समझ नहीं पाता कि अपनी तरफ से सफाई बरतने के लिए लोगों से अनुरोध क्यों करना पड़ता है। यह बात उनके जेहन में खुद-ब-खुद क्यों नहीं आती ? अपने परिवेश को स्वच्छ रखें, इस आशय के संदेश कई स्थलों पर लिखे दिखते हैं, फिर भी गंदगी फैलाने वाले गंदगी फैलाते रहते हैं। संदेशों का कोई असर क्यों नहीं पड़ता? सड़क के किनारे दीवारों पर अक्सर लिखा रहता है “यहां मूत्रत्याग या पेशाब न करें” फिर भी पेशाब करने वालों की कमी नहीं रहती। लोगों से यही अपेक्षा रहती है कि सड़कों, सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी न फैलाएं। 
इसके बावजूद लोग सड़कों पर पान की पीक थूकते हैं, सड़क किनारे खड़े होकर पेशाब करते हैं, जहां-तहां कूड़ा फेंक दते हैं, नालियों में प्लास्टिक की थैलियां डाल देते हैं। इन दिनों यात्रा सीजन के चलते यात्री कहीं पर भी शौच करते हुए नजर आ जाएंगे। एक तरफ हम स्वच्छता अभियान की बात करते हैं, वहीं यात्रियों के लिए शौचालय की सुविधा तक नहीं है। जिन होटलों में यात्री रूकते हैं, वहां भी एकाध शौचालय ही होते हैं। यात्रियों की संख्या अधिक होने से उन्हें मजबूरी में सड़क किनारे या नदी में जाना पड़ता है। जब तक हरेक आदमी सफाई को लेकर जागरूक नहीं होगा, तब तक स्वच्छ भारत अभियान सफल नहीं हो सकता।