अध्यादेश के खिलाफ अध्यादेश आखिर कैसे ?

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  • वोट बैंक के लिए सरकारी ड्रामा!
  • मलिनबस्तीवासियों को मकड़जाल में फंसाने की सरकार की तैयारी?
राजेश शर्मा 
देहरादून। उत्तराखण्ड में एक सौ चालीस के लगभग मलिन बस्तियां हैं जिसमें लाखों लोग निवास कर रहे हैं और ये बस्तियां नदी के किनारे भी नहीं बसी जिसके चलते नगर निगम उनसे हर वर्ष टैक्स वसूल रहा है और सरकार ही वहां सडक, बिजली, पानी का इंतजाम किये हुए है। 18 सालों से मलिन बस्तियों को मालिकाना हक देने के लिए सरकारों ने उन्हें अपने वोट बैंक के लिए छला। कांग्रेस सरकार ने अपने शासनकाल में मलिन बस्तियों को मालिकाना हक देने के लिए विधानसभा में अध्यादेश पास किया और इस अध्यादेश पर राज्यपाल ने भी अपनी मोहर लगा दी थी लेकिन जब उच्च न्यायालय ने मलिन बस्तियों को तोडने का आदेश दिया तो भाजपा सरकार ने उच्च न्यायालय में कांग्रेस शासनकाल में मलिन बस्तियों को लेकर लाये गये अध्यादेश के बारे में सम्भवतः अंधेरे में रखा और लाखों लोगों को वह बेघर करने के लिए आगे आने लगी।
बस्तीवासियों के आक्रोश के चलते भाजपा सरकार दम भर रही है कि आज वह कैबिनेट की बैठक में दो साल तक मलिन बस्तियों को न तोडने का अध्यादेश लायेगी? बहस छिड रही है कि जब कांग्रेस शासनकाल में मलिन बस्तियों को लेकर बनाये गये अध्यादेश पर राज्यपाल ने अपनी मोहर लगा रखी है तो फिर एक अध्यादेश के खिलाफ कैसे भाजपा सरकार दूसरा अध्यादेश ला सकती है? उत्तराखण्ड में इस बात को लेकर बहस छिड गई है कि भाजपा सरकार निकाय चुनाव व 2019 के चुनाव को देखते हुए सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए मलिन बस्तीवासियों के साथ बडा ड्रामा करने के लिए आगे आने का मन बना चुकी है? आज की कैबिनेट बैठक में मलिन बस्तियों को लेकर आने वाला अध्यादेश कहीं न कहीं लाखों मलिन बस्तीवासियों को अपने मकडजाल में फसाने को लेकर सरकार ने ताना-बाना बुना है लेकिन सरकार का यह अध्यादेश लाखों मलिन बस्तीवासियों को रास नहीं आयेगा क्योंकि यह उन्हें राहत नहीं बल्कि वोट बैंक के लिए उनके साथ खुला धोखा माना जायेगा?
उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड में लगभग 140 मलिन बस्तीयां मौजूद हैं और इन बस्तीयों में लाखों लोग निवास करते हैं तथा 18 सालों से सभी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में मलिन बस्तीवासियों को मालिकाना हक देने का वायदा करते आ रहे हैं। कांग्रेस की पूर्व सरकार ने मलिन बस्तीवासियों को मालिकाना हक देने की दिशा में अपने कदम आगे बढाये थे और राजपुर से पूर्व विधायक राजकुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाकर उन्हें राज्यभर की मलिन बस्तीयों का  सर्वे कराया था। राजकुमार ने सदन में अपनी रिपोर्ट रखी थी जिसके बाद मलिन बस्तीयों को न उजाडने को लेकर विधानसभा में अध्यादेश को पास कराकर उस पर राज्यपाल की मोहर लगवाई थी।
राज्यपाल की मोहर के बाद मलिन बस्तीयों को लेकर अध्यादेश बन गया। इसी बीच भाजपा सरकार में उच्च न्यायालय ने अतिक्रमण सभी मलिन बस्तीयों को तोडने के आदेश दिये जिस पर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की लेकिन आधी अधूरी तैयारी के साथ उसने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखी तो उस याचिका को खारिज कर दिया। हैरानी वाली बात यह रही कि उच्च न्यायालय में सरकार ने मलिन बस्तीयों को लेकर बनाये गये अध्यादेश पर सम्भवतः खामोशी साध कर रखी जिसके चलते मलिन बस्तीयों को तोडने का आदेश जारी कर दिया गया। मलिन बस्तीयों को तोडने का आदेश होते ही सरकार ने कुछ मलिन बस्तीवासियों को नोटिस दे दिया जिसके खिलाफ हजारों लोग सडकों पर उतर आये और सरकार नगर निकाय व 2019 के चुनाव को देखते हुए डर गई और उसने आज कैबिनेट बैठक में मलिन बस्तीयों को दो साल तक न तोडने के लिए अध्यादेश लाने का खाका तैयार किया है?
कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार का कहना है कि सरकार कैसे एक अध्यादेश के खिलाफ दूसरा अध्यादेश सदन में ला सकती है क्योंकि कांग्रेस शासनकाल में मलिन बस्तीयों को लेकर अध्यादेश बना हुआ है लेकिन सरकार वोट बैंक के लिए लाखों मलिन बस्तीवासियों को झूठ के मकडजाल में फंसाकर उनके साथ धोखा करने का प्लान बना चुकी है जिसे कांग्रेस किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेगी और सरकार का अध्यादेश आने के बाद वह अपनी रणनीति पर काम करेंगे।