बेदाग़ अधिकारियों की उपेक्षा और दागदारों को गले लगाती सरकारें

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चतुर्वेदी जैसे ईमानदार अधिकारी की उपेक्षा से आहत हैं बेदाग़ अफसर 

”राका” के कई चेले आज भी वर्षों से कब्जा जमाये बैठे हैं मलाईदार कुर्सियों पर 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नयी दिल्ली  :  देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ कडे रूख के लिए चर्चित भारतीय वन सेवा के अधिकारी संजीव चतुर्वेदी को भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने के लिए काम करने में जिस प्रकार से हरियाणा, केन्द्र व उत्तराखण्ड की सरकारें अवरोध खड़ी उससे न केवल सरकारों की भ्रष्टाचार के खिलाफ अंकुश लगाने के मामले में पूरी तरह से बेनकाब हो कर इनकी हकीकत जनता के सामने आ गयी। सरकारें जिस प्रकार ईमानदार अधिकारियों की उपेक्षा करती है और दागदार अधिकारियों को जनता के भारी विरोध के बाबजूद बडे से बडे पद पर आसीन करती है, उससे इन सरकारों की भ्रष्टाचार को संरक्षण देने वाला चेहरा खुद ही बेनकाब हो जाता है।

अधिकारी ही नहीं सरकारें व राजनैतिक दलों में यह देखने में आया कि सरकारे ईमानदार व साफ छवि के नेता, नौकरशाह, जानकारों को महत्वपूर्ण पदों में आसीन करने के बजाय अपने निहित स्वार्थ के लिए दागदार छवि के लोगों व कम जानकारों को आसीन करके देश व प्रदेश की व्यवस्था से खिलवाड़ करके उसको जहां भ्रष्टाचार के गर्त में धकेलते हैं वहीं संस्थानों को कमजोर करते है। संजीव चतुर्वेदी ही नहीं हरियाणा में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले अधिकारी अशोक खेमका, उप्र में पूर्व में कार्यरत वरिष्ठ आईएएस डॉ. सूर्य प्रताप सिंह व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अमिताभ  ठाकुर सहित अनेक ईमानदार अधिकारी सदैव हर दल व हर सरकार की आंखों की किरकिरी बने होते हैं।

गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन प्रमुख सचिव डॉ. सूर्य प्रताप सिंह ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान सरकार से वेतन नहीं लिया और मिलने वाले वेतन को प्रधानमन्त्री राहत कोष में डलवाया जबकि ठीक इसी तर्ज पर उत्तराखंड में आये संजीव चतुर्वेदी भी अपना वेतन प्रधानमन्त्री राहत कोष में देते आये हैं।वहीँ डॉ. सूर्य प्रताप सिंह यूपी के शायद पहले व आखिरी ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने मायावती को समाजविरोधी एक बयान पर जेल भिजवा दिया था।

एक ज़माने में भारतीय प्रशासनिक सेवा में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहते हुए खुला आंदोलन करने वाले धर्मसिंह रावत की हुंकार से पूरा तंत्र में भूकम्प सा आ गया था। उन्ही के संघर्ष के बाद ईमानदार अधिकारियों को आवाज उठाने की हिम्मत जुटी और सूचना के अधिकार की राह बनी। यही नहीं उप्र में भारतीय प्रशासनिक अधिकारियों ने प्रदेश में सबसे भ्रष्ट अधिकारियों को चिन्हिकरण करने की अनौखी मुहिम छेड़ी जो आज भी जारी है।

जिस प्रकार से देश के विख्यात अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए संजीव चतुर्वेदी ने कड़े कदम उठाये उससे देश की वर्तमान मोदी सरकार न केवल असहज हो गयी, क्योंकि चतुर्वेदी ने एम्स में दवा खरीद में बहुत बड़ा भ्रष्टाचार पकड़ा था, जिसे भाजपा का एक बड़ा नेता चलाता था।  मोदी सरकार ने इस ईमानदार अधिकारी को सम्मानित करने के बजाय उनसे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का वह दायित्व ही छीन लिया। इसके बाद संजीव चतुर्वेदी  ने अपनी जान को खतरा बताते हुए अपना कैडर हरियाणा से उत्तराखंड कराने की मांग की। इसके बाद दिल्ली की आप सरकार की मांग पर पिछले साल अक्टूबर में प्रदेश की हरीश रावत सरकार ने उन्हें दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर जाने की इजाजत दे दी लेकिन दो महीने बाद न जाने क्या हुआ कि उनकी प्रतिनियुक्ति का अनापत्ति प्रमाण पत्र हरीश सरकार ने ही रद्द कर दिया।

अब संजीव चतुर्वेदी ने दिल्ली के बजाय उत्तराखण्ड में ही भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (विजिलेंस) में काम करने की इच्छा वाला पत्र मुख्य सचिव को दोबारा सौंपा है। लेकिन उत्तराखण्ड सरकार भी तुरंत उनको कोई ऐसा दायित्व देने को तैयार सी नहीं दिखती जहाँ उसकी पोल पट्टी खुले । ऐसा नहीं कि यह पहला मामला है हरियाणा ही नहीं दिल्ली से लेकर उत्तराखण्ड सहित सभी राज्यों में इसी प्रकार की स्थिति देखने को मिलती है। सरकारें दागदार व भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात नौकरशाहों को ही नहीं नेताओं को भी मुख्य पदों पर आसीन करके जन भावनाओं के साथ तथा व्यवस्था के साथ भी खिलवाड़ करती है।

यहाँ यह भी गौरतलब है कि उत्तराखंड में ”राका” के बाद उसके कई ऐसे चेले हैं जिन्हें मलाईदार विभाग लगातार मिलते रहे है जबकि कई बेदाग़ व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी आज भी प्रसासनिक कार्यों की  मुख्यधारा से आज भी किनारे किये हुए हैं. सूबे में ही नहीं बल्कि देश में दक्षिण भारतीय अधिकारियों को साफ़ प्रशासनिक छवि व ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों के रूप में जाना जाता था लेकिन उत्तराखंड सूबे में तैनात कई दक्षिण भारतीय अधिकारियों की छवि ख़राब हुई है और वे अति भ्रष्ट अधिकारियों के रूप में जनता की नज़रों में चिन्हित  हो चुके हैं।

इन हुक्मरानों को हमेशा भय रहता है कि ईमानदार अधिकारी व व्यक्ति उनके निहित स्वार्थो की पूर्ति के लिए उनके इशारों पर काम नहीं करेगा, जिससे न तो ये अकूत दौलत इकटठा कर पायेगे अपितु इनकी सरकारों में हो रहे भ्रष्टाचारों को भी ईमानदार अधिकारी बेनकाब करने में पीछे नहीं रहेगे। इसी भय से सभी सरकारें प्रायः न किसी ईमानदार अधिकारी, नेता व वकील को कभी महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करते है।

प्रायः यह भी देखने में यह आता है कि दागदार व कुख्यात अधिकारी तो निरंतर महत्वपूर्ण व मलाईदार पदों पर आसीन किया जाता है पर संजीव चतुर्वेदी जैसे ईमानदार अधिकारियों को काम ही नहीं दिया जाता है या काम करने नहीं दिया जाता।  कहने को सरकारें भाजपा की रहे या कांग्रेस की या किसी अन्य दल की, चेहरे बदल सकते हैं, इनके बोल बदल सकते हैं परन्तु काम करने के तरीके सभी के एक ही है। वह है ईमानदार अधिकारियों व व्यक्तियों की उपेक्षा व दागदार प्यादों को ही महत्वपूर्ण पदों पर आसीन करते है।

भले ही जनता की आंखों में धूल झौंकने के लिए ये कुछ समय के लिए किसी पद पर तैनात भी कर दे, पर कुछ ही समय बाद उनको उस काम से भी हटा दिया जाता है। नौकरशाहों की तरह ही ईमानदार वरिष्ठ वकील को न तो कोई सरकारे महाधिवक्ता बनाने की हिम्मत जुटा पाती है व नहीं इनको न्यायाधीश ही बनाया जाता। पूरा तंत्र एक प्रकार से ईमानदार व भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वालों व काम करने वालों की राह में अवरोध खड़ा करते हुए दिखता है। तंत्र में प्रायः प्यादे या दागदार लोगों को ही महत्वपूर्ण संस्थानों में नियुक्ति में वरियता दी जाती है। इसी कारण पूरा तंत्र आज निकम्मा, भ्रष्ट व पतन के गर्त में आकण्ठ डूबा हुआ है।