नेता प्रतिपक्ष ने अपने बेटे की हार का ठीकरा हरीश समर्थकों पर फोड़ा

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  • हरदा पर हार के बाद कांग्रेस दो खेमों में बंटी 
  • निकाय चुनाव कुप्रबंधन से हारे, अब मंथन हो : कुंजवाल
  • पीसीसी ने रुद्रपुर से कोटद्वार जाने का आदेश दिया : हरीश
  • महासचिव के नाते प्रचार की स्वाभाविक जिम्मेदारी थी : प्रीतम
  •  हरदा को नहीं दिया पीसीसी ने महत्व : किशोर 

देहरादून। निकाय चुनाव पर मिली हार के बाद भी कांग्रेस आत्ममंथन करने की बजाय हार का ठीकरा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सिर फोड़ने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। मामले में हरीश रावत के करीबी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल का कहना है कि कुप्रबंधन और बड़ी चुनावी सभाएं न होने से कांग्रेस को वह जीत नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी। उन्होंने भी कहा है कि  अब प्रदेश संगठन को हार पर गहरा चिंतन करना चाहिए। 

इस संबंध में हरीश रावत से पूछा गया तो उनका कहना था कि इंदिरा ने उन्हें फोन किया गया था। उन्होंने हल्द्वानी में प्रचार के लिए अपनी सहमति भी दे दी थी, लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने उनका चुनाव कार्यक्रम बदलकर रुद्रपुर के बाद कोटद्वार का कर दिया। पीसीसी का आदेश मानते हुए मैं कोटद्वार चला गया। हरीश रावत का यह भी कहना है कि हल्द्वानी में प्रचार न कर पाने का उन्हें मलाल है, क्योंकि वहां कांग्रेस प्रत्याशी काफी कम मतों से हारा है , साथ ही उन्होंने यह भी कहा चुनाव में किस नेता का उपयोग कहां करना है, यह काम पीसीसी का है। उन्होंने कहा थराली उपचुनाव में मैने घाट में बड़ी सभा की तो लोगों ने उस सभा को ही हार का कारण बता दिया।

गौरतलब हो कि निकाय के परिणाम आने के बाद प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह भी राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत पर निशाना साध चुके हैं। प्रीतम यहां तक कह चुके हैं कि पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव होने के नाते चुनाव प्रचार करने की एक स्वाभाविक जिम्मेदारी उनकी भी बनती थी। प्रीतम पहले ही बोल चुके हैं कि रावत के असम दौरे पर व्यस्त होने के चलते बात नहीं हो पाई, लेकिन जब वे दिल्ली लौटे तो दो बार फोन पर बात हुई।

वहीं हरीश रावत का चुनाव प्रचार में अधिक उपयोग न करने के आरोपों के बीच कांग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने भी प्रीतम सिंह पर हरीश रावत की अनदेखी करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि वाट्सएप के माध्यम से हरीश रावत की ओर से पार्टी अध्यक्ष को कह दिया था कि वे 8 से 17 नवम्बर तक चुनाव प्रचार के लिए उपलब्ध हैं, लेकिन प्रीतम सिंह की तरफ से कोई जवाब नहीं आया तो वे भी चुप रहे। खुद किशोर भी उम्मीदवारों के आग्रह पर ही प्रचार के लिए गये। उन्हें पीसीसी द्वारा कोई निर्देश नहीं दिए गए।  लिहाज़ा अब हार का ठीकरा किसी के सिर फोड़ने का कोई मतलब नहीं रह गया है। 

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