जैन मुनि तरुण सागर महाराज का निधन

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  • जीवन की अंतिम साधना ”संलेखना” उपवास में थे संत तरुण सागर
  • कड़वे प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध थे क्रांतिकारी संत 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नयी दिल्ली  : जैन मुनि और राष्ट्र संत तरुण सागर जी महाराज का दिल्ली में शनिवार प्रातः  51 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। 20 दिन पहले उन्हें पीलिया के उपचार के लिए  मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कहा जा रहा है कि जैन मुनि ने इलाज कराने से इन्कार कर दिया था और कृष्णा नगर (दिल्ली) स्थित राधापुरी जैन मंदिर चातुर्मास स्थल पर जाने का निर्णय लिया। 

मुनिश्री अपने अनुयायियों के साथ दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित राधापुरी जैन मंदिर चातुर्मास स्थल पर थे। बताया जा रहा है कि मुनिश्री अपने गुरु पुष्पदंत सागर महाराजजी की स्वीकृति के बाद संलेखना (आहार-जल न लेना) कर रहे थे। तरुण सागर महाराज जी के गुरु पुष्पदंत सागर महाराज जी ने भी एक वीडियो जारी किया। इसमें उन्होंने बताया कि उनके शिष्य की हालत गंभीर है। उन्होंने इस संबंध में एक पत्र भी लिखा। साथ ही, मुनिश्री सौरभ सागर और मुनिश्री अरुण सागर से दिल्ली पहुंचने और तरुण सागर जी की संलेखना में सहयोग करने के लिए कहा।

अपने कड़वे प्रवचनों के लिए प्रसिद्ध तरुण सागर जी को क्रांतिकारी संत भी कहा जाता रहा है। वहीं, कड़वे प्रवचन नामक उनकी पुस्तक काफी प्रचलित है। समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने में उन्होंने काफी प्रयास किए हैं।’’ तरुण सागर जी को मध्यप्रदेश सरकार ने 6 फरवरी 2002 को राजकीय अतिथि का दर्जा दिया था।

तरुण सागर जी महाराज का मूल नाम पवन कुमार जैन था। उनका जन्म दमोह (मध्यप्रदेश) के गांव गुहजी में 26 जून, 1967 को हुआ। मुनिश्री ने 8 मार्च 1981 को घर छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ में दीक्षा ली। 

जैन धर्म के मुताबिक, मृत्यु को समीप देखकर धीरे-धीरे खानपान त्याग देने को संथारा या संलेखना (मृत्यु तक उपवास) कहा जाता है। इसे जीवन की अंतिम साधना भी माना जाता है। राजस्थान हाईकोर्ट ने 2015 में इसे आत्महत्या जैसा बताते हुए उसे भारतीय दंड संहिता 306 और 309 के तहत दंडनीय बताया था। दिगंबर जैन परिषद ने हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी।