पुलिस हिरासत में मृत्यु रोकने को पूछताछ में हिंसा व थर्ड डिग्री इस्तेमाल रोका जाए

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क्राइम पेट्रोल जैसे कार्यक्रमों में पुलिस हिंसा दिखाने पर भी लगे रोक

देहरादून । पुलिस हिरासत में मृत्यु रोकने को पूछताछ में हिंसा व थर्ड डिग्री इस्तेमाल रोकना होगा। इसके अतिरिक्त क्राइम पेट्रोल जैसे कार्यक्रमों में पुलिस हिंसा दिखाने पर भी रोक लगनी आवश्यक है। साथ ही पुलिस तफतीश में वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल तथा पुलिस के कार्यों व तैनाती में राजनैतिक हस्तक्षेप कम करके उस पर अवैध दबाव कम करना ररूरी है।

यह सुझाव सूचना अधिकार व मानवाधिकार कार्यकर्ता नदीम उद्दीन (एडवोकेट) ने काशीपुर के जिया उद्दीन पुलिस हिरासत मृत्यु मामले में चल रही मजिस्ट्रेटी जांच में लिखित रूप से दिये हैं । उल्लेखनीय है कि इस मजिस्ट्रेटी जांच में भविष्य में ऐसी घटनायें रोकने को भी सुझाव आमंत्रित किये गये है। श्री नदीम ने जिया उद्दीन पुलिस हिरासत जांच मृत्यु मामले के जांच मजिस्ट्रेट/उपजिला मजिस्ट्रेट, काशीपुर के समक्ष प्रस्तुत किये गये लिखित सुझाव में स्पष्ट लिखा है कि पुलिस हिरासत में मृत्यु मानवाधिकार हनन की पराकाष्ठा तथा अनुच्छेद 21 के मूल अधिकारों का हनन है। यह भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के आजीवन तथा मृत्यु से दण्डनीय हत्या, धारा 304 के अन्तर्गत आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की सजा से गैर इरादतन हत्या तथा 305 के अन्तर्गत आजीवन तथा दस वर्ष तक की सजा से दण्डनीय नाबालिग या उस व्यक्ति को आत्म हत्या को उकसाना तथा धारा 306 के अन्तर्गत दस वर्ष तक की सजा से दण्डनीय आत्म हत्या को उकसाने का अपराध हो सकता है। इसके अतिरिक्त अपराध कबूलवाने या पूछताछ के लिये बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये बन्दी बनाना धारा 348 के अन्तर्गत तीन वर्ष तक की सजा से दण्डनीय तथा पूछताछ में साधारण चोट पहुंचाना धारा 330 के अन्तर्गत सात वर्ष तथा गम्भीर चोट पहुंचाना धारा 331 के अन्तर्गत दस वर्ष तक की सजा से दण्डनीय अपराध है। इसके अतिरिक्त सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइनों के उल्लंघन के कारण न्यायालय अवमान तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग आदि के निर्देशों के उल्लंघन के कारण धारा 166 तथा 188 का भी अपराध है। इसके साथ यह अवैध हिंसा उत्तराखण्ड पुलिस अधिनियम की धारा 85 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध भी है। इससे कर्मचारी आचरण नियमावली का उल्लंघन होने के कारण सेवा नियमों के अन्तर्गत भी कार्यवाही योग्य है।

श्री नदीम ने हिरासत में मृत्यु जैसी घटनाये रोकने के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष दस सुझाव प्रस्तुत किये है। इन सुझावों में किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार केवल विधि के प्रावधानों के आधार पर, केवल आवश्यक होने पर दंड संहिता, माननीय सुप्रीम कोर्ट तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन का पालन करते हुये किया जाना, पुलिस अन्वेषण में थर्ड डिग्री इस्तेमाल, अवैध हिंसा को पूर्णतः रोका जाना तथा केवल वैज्ञानिक तकनीकों का ही प्रयोग किया जाना, पुलिस तफ्तीश में अवैध हिंसा को बढ़ावा देने वाले सोनी टीवी के क्राइम पेट्रोल व इस जैसे अन्य कार्यक्रमों में ऐसी हिंसा दिखाने पर रोक लगायी जाना, पुलिस की अवैध हिंसा में किये जाने वाले अपराधों की रोकथाम को पुलिस चौकियों तथा थानों का आकस्मिक निरीक्षण संबंधित जिला जज, जिला मजिस्ट्रेट, मुख्य न्यायिक मजिट्रेट, प्रभारी न्यायिक मजिस्ट्रेट, उप जिला मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाना तथा दोषी कर्मचारी, अधिकारियों के विरूद्ध मुकदमें दर्ज कराये जाये तथा विभागीय कार्यवाही करायी जाना, मानवाधिकार हनन संबंधी मामलों की शीघ्र तफ्तीश करके उससे संबंधित मुकदमों का विचारण मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 की धारा 30 के अन्तर्गत उत्तराखंड में हाल मेें ही विहित विशेष मानवाधिकार न्यायालयों के माध्यम से कराया जाना, मानवाधिकार हनन का मामला प्रकाश में आने पर उस क्षेत्र के थाना प्रभारी के अतिरिक्त पुलिस उपाधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक तथा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की जिम्मेदारी तय किया जाना, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइन तथा माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अक्षरशः पालन कराने को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को जिम्मेदार बनाया जाना, पुलिस चैकियों तथा पुलिस थानों में सी.सी.टी.वी कैमरे लगाये जाये तथा उनकी रिकाॅर्डिंग कम से कम एक वर्ष तक सुरक्षित रखने की व्यवस्था की जाना, पुलिस पर से अवैध राजनैतिक दबाव कम करने के लिये सुप्रीम कोर्ट के प्रकाश सिंह केस में दिये गये दिशा निर्देशों का पालन सुनिश्चित कराया जाना जिसके अन्तर्गत थाना प्रभारियों तथा पुलिस अधीक्षकों तथा परिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को निर्धारित न्यूनतम कार्यकाल अवधि से पूर्ण बिना किसी ठोस कारण के न हटाया जाना, उत्तराखण्ड पुलिस अधिनियम 2007 के अध्याय 4 के प्रावधानों का पालन करके राज्य पुलिस बोर्ड तथा अधिष्ठान समिति के प्रावधानों को प्रभावी रूप से लागू कराना जिससे पुलिस अधिकारियों तथा कर्मियों की तैनाती व कार्योें में राजनीतिक हस्तक्षेप समाप्त हो तथा राज्य पुलिस बोर्ड धारा 35 के अन्तर्गत अपने कर्तव्यों में शामिल मानव अधिकार मानक शामिल कर सके शामिल है।