षड्यंत्र का सरताज,कभी नहीं आएगा बाज !

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  • अभिरक्षा में बीमार, छूटते ही चमत्कार
  • वायरल चित्रों ने खोली ब्लैकमेल   के आरोप में बंद कथित पत्रकार की पोल

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : कानून की आंखों में कैसे धूल झोंकी जा सकती है और किस तरह व्यवस्था का लाभ उठाया जा सकता है, उमेश कुमार से बेहतर उसका उदाहरण नहीं हो सकता । उत्तराखंड की सियासत में हलचल लाने के लिए एसीएस ओम प्रकाश और मुख्यमंत्री की टीम सहित उनके परिजनों को लालच देकर स्टिंग कराने की असफल कोशिश करते पकड़े गए उमेश कुमार का कार्यक्षेत्र केवल उत्तराखंड तक ही नहीं फैला था। उसकी स्टिंग और दलाली के क्षेत्र में बड़े कद की जानकारी लोगों को तब हुई जब झारखंड से भी एक पीड़ित की सुनवाई पर उसे झारखंड पुलिस देहरादून से गिरफ्तार करके ले गई । झारखंड पुलिस की गिरफ्तारी ने इस बात पर मोहर लगाई उमेश कुमार द्वारा पत्रकारिता की आड़ में दलाली का व्यवसाय पेशेवर तरीके से फैला हुआ है।

रांची के रिम्स अस्पताल में उमेश कुमार ने गंभीर बीमारी का नाटक करके जेल प्रशासन को भी बरगलाने की पूरी कोशिश की। आमतौर पर बंदी या कैदी बीमारी का बहाना करके सिस्टम की मानवीय संवेदनाओं का लाभ लेते आए हैं। उमेश के सहयोगियों ने उसे निर्दोष, पीड़ित और गंभीर बीमार दिखाते हुए सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया। उसने रांची के रिम्स अस्पताल के फर्श पर लेटकर और फोटो खिंचवाकर सोशल मीडिया पर जोर-शोर से चलवाई भी कि किस तरह एक ईमानदार पत्रकार का उत्पीड़न किया जा रहा है।

यही नहीं गंभीर रोगी की मुद्रा में ऑक्सीजन मास्क लगाकर उमेश के चित्र जारी किए गये, उसकी टीम के द्वारा न्याय व्यवस्था पर भी जमानत के बाद रिहाई के घंटों को लेकर सवाल उठाए गये। जमानत मिलते ही जिस तरह इस तथाकथित गंभीर बीमार चेहरे पर उल्लास दिखाई दिया वह साबित करता है कि किस तरह उमेश कुमार अपनी संदिग्ध और चकमा देने वाली हरकतों से अभी तक अपना साम्राज्य बढ़ाता रहा। जमानत के बाद सोशल मीडिया में तैरते चित्रों में उसका अपने मित्रों के साथ, अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ और बाकायदा पार्क में चद्दर बिछाकर नाश्ता करते हुए चित्र भी वायरल हो गए, जिसने इस तथाकथित लाचार की हकीकत से पर्दा उठा दिया।

उमेश कुमार अभी जमानत पर रिहा है, न कि वह निर्दोष साबित हुआ है। उसने राज्य की सरकार को अस्थिर करने का कुत्सित कृत्य किया। जनमत का अपमान किया। शासन प्रशासन की टीम को झांसे में लेने का अपराध किया है। आश्चर्य का विषय है कि अभी तक राजनेता और अधिकारियों को अपने ट्रैप में लेकर दबदबा कायम करने वाले उमेश कुमार पर कोई हाथ डालने का साहस नहीं कर पाया। पहली बार वह उत्तराखंड पुलिस की कड़ी कार्रवाई का शिकार हुआ है ।

इस बार वह अपने को पूर्व की भांति एक ईमानदार पत्रकार बताने, या अपने पर कार्रवाई को पत्रकारिता का उत्पीड़न साबित करने में असफल रहा। पूरी पत्रकार बिरादरी द्वारा जहां उससे दूरी बनाई गई, वहीं उसका पीआईबी कार्ड भी उसकी षड्यंत्रकारी गतिविधियों के कारण निरस्त कर दिया गया। पत्रकार बिरादरी भी अपने बीच पनप रही इस दलाल मानसिकता से पीड़ित है। पत्रकार जगत द्वारा उमेश कुमार को सिरे से नकारने और दूरी बनाने के कारण उसके कारनामे खुद मीडिया ने जनता के सामने रखें, कि किस तरह खोजी पत्रकारिता की आड़ में ब्लैक मेलिंग का साम्राज्य इस तथाकथित पत्रकार ने खड़ा किया।